एनडीटीवी पर अचानक पी चिदंबरम का इंटरव्यू जारी नहीं करने , देशहित में ज्ञापन जारी करने साथ ही राष्ट्रवाद की ओर कदम बढ़ाने का अभिप्राय ये बिलकुल नहीं है कि एनडीटीवी ने सरकार के सामने घुटने टेक दिया। ये सरासर कोरी बकवास है। एनडीटीवी और उसके कुछ पत्रकारों पर देश विरोधी होने के आरोप लगना कोई नयी बात नहीं है 2014 के बाद इसमें काफी तेजी आयी है ये सत्य है।
लेकिन कई मुद्दों जैसे अख़लाक़ की हत्या, असहिष्णुता का मुद्दा, पुरस्कार वापसी, रोहित वेमुला,जेएनयू प्रकरण, उना प्रकरण, बिहार चुनाव, जीएसटी पर नकारात्मक डिबेट जैसे अनेकों प्रकरण है जिसमे एनडीटीवी ने सरकार का खुलकर विरोध किया क्या उस समय सरकार इनका कुछ बिगाड़ पायी जो अब बिगाड़ लेगी । रवीश कुमार के ब्लॉग,और सरकार के किसी नेता के नाम ख़त उनके सरकार विरोध की मानसिकता को दर्शाते है ।
एनडीटीवी को कांग्रेसी चैनल का तमगा पहले से हासिल है ये जगजाहिर है। लेकिन कांग्रेस की बदतर हालत ने वैकल्पिक तौर पर उसे आम आदमी पार्टी के नजदीक जाने का मौका दिया।अक्सर देखा गया है की आप के नेता अपनी काली करतूतों के कारण चैनलों की डिबेट से भागते फिर रहे है लेकिन एनडीटीवी पर वे काफी सहज सहज और सर्वसुलभ रहते है ।सरकार से उनके मतभेद इस कदर है की सरकार के हर काम की आलोचना करना अपना परम धर्म समझते है एनडीटीवी भी इससे अछूता नहीं है।
क्या इतने विरोधभास के बाद भी एनडीटीवी को घुटनों पर लाना सरकार के लिए संभव होगा ? जम्मू कश्मीर में उरी की आतंकी घटना के बाद भारतीय जनमानस का आक्रोश इतना तीव्र था की सरकार के पसीने छूट गए ।सरकार समर्थक और विरोधी एक सुर में कारवाई की मांग करने लगे लेकिन जब केरल में मोदी ने भाषण दिया तो इसकी सराहना रवीश कुमार,बरखा दत्त,बुद्धिजीवियो,वामपन्थियो ने सबसे पहले की।लेकिन जनमानस ,सरकार को मनमोहन की फोटोकॉपी कहने में बिलकुल नहीं चूका ।
लेकिन जब सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक कर दी जिसकी देशभर में अभूतपूर्व सराहना हुई तो विपक्ष को साँप सूंघ गया तो उन्होंने सबूत मांग लिया लेकिन तत्काल वे जनाक्रोश के आगे नतमस्तक हो गए।
ऐसे जनाक्रोश में सर्जिकल स्ट्राइक को कमतर दिखाने की कोशिश मे एनडीटीवी को चिदंबरम का इंटरव्यू जारी करना महंगा पड़ता । एनडीटीवी को आज अपनी देश विरोधी छवि से दूर निकलने की छटपटाहट है न की सरकार के दबाव में आने की ।
अभय सिंह
राजनैतिक विश्लेषक