यूपी की जनता को सबका(सपा, बसपा,कांग्रेस)साथ की बजाय मोदी का साथ पसन्द है क्योंकि नोटबंदी जैसे शक्तिशाली निर्णय के बाद उनकी छवि इंदिरा गांधी की तरह मजबूत,भरोसेमंद नेता के तौर पर उभरी है एवं मध्य,निम्न मध्यमवर्ग गरीब तबके के बीच उनकी छवि अधिक मजबूत हुई है ।
कल उड़ीसा के पंचायत चुनावो में मृतप्राय बीजेपी का एकाएक ताकतवर होकर उभारना सत्तासीन बीजद के लिए खतरे की घंटी का संकेत दे गया वहीँ कांग्रेस की बदतर हालत को भी इंगित किया है।
नोटबंदी के बाद बीजेपी का हर चुनाव में जीतना अचंभित करने वाला है।
यदि नोटबंदी विपक्ष के लिए बड़ा मुद्दा है तो बीजेपी को हर जगह जनता का समर्थन नहीं मिलना चाहिए था लेकिन इसके उलट वे हर जगह जीत रहे है।
यूपी में सारे राजनीतिक विश्लेषक,मीडिया,पत्रकार जातीय,धार्मिक समीकरण के आधार पर आकलन कर रहे है एवं असमंजस की स्थिति में है।लेकिन इस सब से इतर एक ताकतवर निर्णय पर जनमानस के मूड को भांपने में वे बुरी तरह से नाकाम रहे है।
11 मार्च के नतीजे चाहे जिसके पक्ष में हों मात्र 41 विधायको वाली बीजेपी के पास खोने को कुछ भी नहीं है लेकिन पाने को बहुत कुछ है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
अभय सिंह-