अमितेश कुमार ओझा
किशोर कलम से : बेरोजगारी…। यानी एक एेसा शब्द जिसे कोई पसंद नहीं करता। लेकिन फिर भी देश – समाज में इसकी प्रासंगिकता आजादी के बाद से ही कायम रही है। शायद ही कोई एेसा चुनाव हो जिसमें बेरोजगारी का मसला शामिल न रहा हो। एक एेसे दौर में जब सरकार फिर बेरोजगारों को रोजगार देने को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बता रही है, यह मसला पुनः सुर्खियों में है।
क्या सरकार की ओर से एेसी व्यवस्था नहीं की जा सकती कि परीक्षा में बैठने वाले अभ्यर्थियों से ही पोस्टल आर्डर लिए जाएं। परीक्षा स्थल तक पहुंचने से लेकर दूसरे खर्चों के मामलों में भी अब तक सरकार की ओर से घोषणाएं तो बहुत हुई, लेकिन व्यवहार में युवाओं को कुछ नहीं मिल पाया। बेरोजगार युवकों को परीक्षा के लिए कहीं जाने के लिए मुफ्त पास की घोषणा कई बार हुई। लेकिन वास्तविक धरातल पर यह अमल में नहीं आ पाया। जबकि शिक्षा लोन का चलन शुरू होने के बाद निचले स्तर के छात्रों का भी उच्च शिक्षा में दखल बताता है कि यदि अवसर मिले तो हर वर्ग का युवा सफलता हासिल कर सकता है। पहले शिक्षा ऋण की सुविधा न होने की स्थिति में बड़ी संख्या में युवक उच्च शिक्षा की उम्मीद ही छोड़ देते थे। लेकिन सुविधा दिए जाने पर गरीब विद्यार्थियों ने भी खुद को बखूबी साबित किया है । इसी तरह दूसरी सुविधाएं भी मिले तो युवा वर्ग अपना कमाल दिखा सकता है। आज एक परीक्षा पर होने वाला खर्च वहन कर पाना सामान्य परिवारों के लिए कठिन हो रहा है। इसलिए राज्य व केंद्र सरकार को बड़े – बड़े वादे करने के बजाय बेरोजगारों की इन व्यावहारिक कठिनाईयों को समझने व दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
(लेखक बी.काम प्रथम वर्ष के छात्र हैं।)