वह नोटबंदी के उस सर्वे के निष्कर्षों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहा है जो पीएम के ऐप से निकले हैं। कुल पाँच लाख लोगों की प्रतिक्रियाओं से निकले नतीजों को वह ब्रम्ह सत्य की तरह पेश कर रहा है जबकि सामान्य बुद्धि कहती है कि ये प्रचार का हथकंडा हो सकता है, क्योंकि बीजेपी के कार्यकर्ता ही सकारात्मक प्रतिक्रियाओं से एकतरफा नतीजों को गढ़ने में सक्षम हैं। वे ऐसा पहले भी करते रहे हैं।
सीधी सी बात है कि किसी भी जनमत सर्वेक्षण के नतीजों को पढ़ने के पहले देखा जाना चाहिए कि उसे करवा कौन रहा है, कर कौन रहा है, किस उद्देश्य से किया जा रहा है, कौन लोग उसमे भाग ले रहे हैं?
इन कसौटियों पर परखे बिना मीडिया का सर्वे को प्रचारित करना चापलूसी का ‘चरणोत्कर्ष’ है। @fb