– पुष्य मित्र –
न जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि यह टीवी न्यूज मीडिया के आखिरी दिन हैं। मैंने लंबे अरसे से इन्हें देखना छोड़ दिया है और कई दूसरे मित्रों से भी यही सुन रहा हूँ। ऑनलाइन मीडिया की वजह से कोई अभाव नहीं खटकता। हाँ, अख़बार जरूर पलट लेता हूँ।
इस बीच प्रोमो देख कर लगता है कि इनके स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। अद्भुत, अकल्पनीय और अविश्वनीय का नारा सुनकर ऐसा लगता है जैसे कोई फेरेवाला हरेक मॉल 35 रुपये बेच रहा हो। रोज बहस होती है और हर बहस बेनतीजा रह जाती है। एंकर माफ़ी मांग लेता है। खबरें फटाफट के शोर में दम तोड़ती रहती हैं। लाइव न हो तो रिपोर्टर के पास चेहरा दिखाने की गुंजाइश भी कम ही होती है। तभी सारी खबरें अख़बार वाले ब्रेक करते हैं और तमाम अपडेट एजेंसियों से मिलते हैं।
जिओ मोबाइल ने हर 4 जी यूजर को 24 घंटे ऑनलाइन रहने की लत लगा दी है। फेसबुक पर शोर हुआ तो लोगों ने कल वाले प्राइम टाइम की वीडियो देख ली। यहीं रिपीट टेलीकास्ट की घोषणा हो रही है। हर सिलेब्रिटी सोशल मीडिया पर अनाउंस करता है कि फलां टाइम में वह फलां चैनल पर है। यह सब बातें बहुत कुछ कह रही हैं।
न विश्वसनीयता, न स्तर और न ही कंटेंट। ऐसे में कब तक चलेगा यह भारी भरकम कुनबा। कहना मुश्किल है। ऑनलाइन का दौर आ रहा है दोस्त। यहीं बने रहिये।
@fb