दीपक शर्मा,पत्रकार,आजतक
मोदी और मीडिया : १६ मई के बाद कथनी और करनी में फर्क ना हो
आप अपनी ही बात कहना चाहें और दूसरे की बात सुनना ना पसंद हो तो ये किसकी प्रॉब्लम है ? आप खुद की सोची समझी दुनिया में जी रहे हों तो फिर संवाद की जगह कहाँ बचती है ? दरअसल ये लक्षण बताते है की आप तटस्थ नहीं हैं. दुर्भाग्य से आप टीवी एंकर है और इससे बड़ा दुर्भाग्य ये की मै आपको जानता हूँ.
एक टीवी एंकर मुझसे बहस करने लगे की मोदी को बनारस में छींके आ जायेंगी और शायद वो हार जायेंगे. उन्होंने कहा की मोदी की हवा निकल चुकी है और बनारस में वो मुह की खाने वाले हैं. मित्रों हो सकता है मोदी सरकार ना बना पाएं…लेकिन वो बनारस में मुह की खा जायेंगे ऐसा मुझे नही लगता . बहरहाल मै इस एंकर की भड़ास सुनता रहा जब तक उनकी स्काच और मेरी पेप्सी खत्म नही हो गयी.
मै एकतरफा बहस मै नही पड़ता . एक ही लकीर पीटने वाले फकीर मुझे रास नही आते. आपको भी एक तरफ़ा बहस में नही पड़ना चाहिए. एकतरफा मतलब एकपक्षीय. मतलब असंतुलित. अंग्रेजी में मतलब BIASED. जो पत्रकार मोदी से नफरत करते हैं उनसे मुझे परहेज नहीं.
गुजरात दंगो के लिए मोदी की आलोचना करना पत्रकार का धर्म है. लेकिन २४ घंटे मोदी को कोसना भी धर्म नही हो सकता . ऐसे पत्रकार जो दिल्ली के प्रेस क्लब और मीडिया सेंटर में बैठकर मोदी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला रहे हैं उनसे मेरा कहना की अगर मोदी प्रधानमंत्री बनते है तो उस वक्त भी वो अपने स्टैंड पर कायम रहे.
धर्म निरपेक्ष पत्रकारों से मेरा अनुरोध है की पहले तो वो मोदी की पराजय सुनिश्चित करें और अगर फिर भी मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं तो उनका बहिष्कार करे. कांग्रेस शासन में मोदी को गाली और मोदी के सत्ता में आने के बाद नमो नमो …ये दोहरा चरित्र होगा . सनद रहे कथनी और करनी में फर्क …चरित्र को तिरस्कृत कर देता है.
(स्रोत-एफबी)