TOI के नाम खुला पत्र छाप देने पर द हिन्दू को हीरो और टीओआई को गटर में फेंकने का अतिउत्साह

विनीत कुमार

the-hindu toiTOI और द हिन्दू के बीच विज्ञापन के जरिए एक-दूसरे का मजाक उड़ाने से लेकर नीचा दिखाने की कवायदें बहुत पुरानी रही है. इन विज्ञापनों के दर्जनों वीडियो यूट्यूब पर मौजूद हैं. ऐसे में ये बहुत संभव है कि द हिन्दू अपना अगला विज्ञापन दीपिका पादुकोण के बहाने कुछ इस तरह से बनाए कि जिसमे लगे कि TOI स्त्री को कॉर्पोरेट प्रोडक्ट से ज्यादा कुछ नहीं समझता जबकि द हिन्दू सीमोन और वर्जिनिया की तलाश में भटकता फिरता है.

पिछले दिनों सुहासिनी हैदर( स्ट्रैटजिक एंड डिप्लोमेटिक एफेयर एडिटर, द हिन्दू) को सुनने का मौका मिला. वो मीडिया संस्थानों में महिला पत्रकारों की स्थिति पर बात कर रही थीं. उन्होंने अपने अखबार का अलग से नाम नहीं लिया लेकिन जो कुछ भी कहा उनमे उनके अखबार के अनुभव शामिल थे जिसका आशय यही था कि कभी ओवर प्रोटेक्टिव एप्रोच तो कभी स्टोरी के महत्व के नाम पर उनके साथ भेदभाव किया जाता है. सुहासिनी के पहले हमने सेवंती निनन के कॉलम मीडिया मैटर्स के साथ अखबार ने जो कुछ किया, वो हम सब जानते हैं और हाल में अखबार के भीतर जिस तरह के उठापटक हुए हैं और शोध के नाम पर पी.साईंनाथ जैसे पत्रकार तक को जाना पड़ा, ये हमसे छुपा नहीं है. कैंटीन में शाकाहारी-मांसाहारी को लेकर पत्रकारों के बीच जिस तरह के भेदभाव किए जाते हैं, सब पब्लिक डोमेन में हैं.

ऐसे में टीओआई के नाम खुला पत्र छाप देने पर द हिन्दू को हीरो और टीओआई को गटर में फेंकने का जो अतिउत्साह है वो दरअसल गोदरेज के विज्ञापन की तरह एक-एक सफेद बाल पहले काटने और फिर एक ही रंग से पूरे बाल को रंग लेने वाला रवैया है.

बेशक द हिन्दू की इस चिठ्ठी के छापे जाने की सराहना की जानी चाहिए लेकिन इस सवाल के साथ कि तस्वीर तो तस्वीर एफआइआर में इंडिया टीवी की न्यूज एंकर दर्ज करवा रही है कि उन्हें इस तरह दिखने के लिए दवाब बनाए जाते रहे, तब ऐसे अखबार कहां थे, स्टार न्यूज की सायमा सहर का मामला हाईकोर्ट तक में चला गया, अखबार ने एक लाइन की खबर न छापी..

(स्रोत-एफबी)

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