मनीष कुमार
टाइम्स ऑफ इंडिया का क्रिसमस
कभी कभी लगता है कि जस्टिस काटजू की बात बिल्कुल सही है कि पत्रकारिता में मूर्खों की कमी नहीं है. आज टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसका उदाहरण पेश किया. फ्रंट पेज की पहली खबर ऐसी है जिसका मकसद देश में एक और विवाद पैदा करना. वह इसलिए क्योंकि यह खबर न सिर्फ झूठी है साथ ही इस खबर में जो पैंतरेबाजी की गई है वो भी मूर्खतापूर्ण है. मुझे उम्मीद ही नहीं, बल्कि यकीन है कि इसी ग्रुप के चैनल टाइम्स नॉउ पर अरनब गोस्वामी आज रात इस पर बहस करते नजर आएंगे. टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा कि सरकार ने आदेश दिया है कि क्रिसमस के दिन स्कूलों में अवकाश न हो. बल्कि अटल बिहारी वाजपेयी और मदन मोहन मालवीय का जन्मदिन और सुशासन दिवस के तौर पर मनाया जाए. अब ये खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी तो दूसरे अखबारों ने भी इस खबर को अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित कर दिया.
इस खबर में यह लिखा गया कि सरकार ने आदेश जारी किया है और सीबीएसई ने अपने स्कूलों को इसकी जानकारी नहीं भेजी है. लेकिन नवोदय विद्य़ालय में इस आदेश को जारी कर दिया गया है. जिसमें 24 और 25 दिसंबर के दिन स्कूलों में निबंध लेखन प्रतियोगिता का आयोजन होगा. टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा कि नवोदय विद्यालयों के लिए क्रिसमस की छुट्टी खत्म कर दी गई है और बाकी दूसरे सीबीएसई द्वारा संचालित
स्कूलों को लेकर कन्फ्यूजन है. इसके बाद इस अखबार ने बिना नाम के “सूत्रो”, “एक वरिष्ठ अधिकारी”, “प्रध्यापक” “कुछ प्रिंसिपल” जैसे अज्ञात लोगों के हवाले से पूरी कहानी लिख डाली. लेकिन खबर के आते ही शिक्षा मंत्री ने इस खबर को झूठा और शरारतपूर्ण करार देते हुए इसका खंडन कर दिया.
अब जरा इस खबर की खबर लेते हैं. पहली बात यह कि नवोदय विद्यालय रेसिडेंसिल स्कूल है. यानि छात्र स्कूल-परिसर के छात्रावास में ही रहते हैं. इसमें छुट्टी होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है. यहां छुट्टी का मतलब बस इतना ही होता है कि उस दिन सवेरे की पीटी और क्लास नहीं होती है. बाकि कार्यक्रम सुचारू रूप से चलते हैं. अगर इस दिन स्कूल में निबंध लेखन प्रतियोगिता आयोजित की जाती है तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा. इन स्कूलों में राष्ट्रीय छुट्टियों के दिन जैसे कि स्वतंत्रता दिवस, गांधी जयंती या गंणतंत्र दिवस के दिन भी छुट्टियां होती है लेकिन साथ में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं. लेकिन इन महान अखबारों के महान संपादकों और महान रिपोर्टरों को यह साधारण सी बात समझ में नहीं आई कि नवोदय विद्यालय के विद्यार्थियों पर छुट्टी से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है.
इस खबर में यह बताया गया कि सरकार इसे मदन मोहन मालवीय के जन्म दिन के रूप में मनाना चाहती है. अखबार के मुताबिक मदन मोहन मालवीय एक हिंदू नेता थे. हिंदू महासभा के नेता थे. बिजनेस स्टैंडर्ड ने टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर को उद्धृत करते हुए लिखा कि मदन मोहन मालवीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष थे और भारतीय जनता पार्टी से पहले हिंदू महासभा राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का राजनीतिक संगठन था. इन अखबारों का मकसद साफ है. ये चाहते हैं कि एक ऐसा विवाद उठाया जाए जिसमें सरकार इसाई-विरोधी नजर आए. अगर ऐसा नहीं है तो हिंदू महासभा, आरएसएस और बीजेपी की बात उठाने का कोई मतलब नहीं रहता. मुझे भरोसा है कि इन बड़े बड़े अखबारों के बड़े बड़े संपादक व संवाददाता इतने भी मूर्ख नहीं हैं कि उन्हें यह पता नहीं हो कि मदन मोहन मालवीय दो-दो बार इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं. गांधी से पहले और गांधी के भारत आने के बाद वे कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. पहली बार 1909 में और दूसरी बार 1919 में. साथ ही मदन मोहन मालवीय ने बनारस हिंदू विश्वविद्य़ालय की स्थापना भी की. सवाल यह है कि इन अखबारों में मदन मोहन मालवीय के बारे में यह क्यों नहीं बताया?
यहां एक और सवाल उठता है. क्या अलग अलग धार्मिक-त्योहारों के दिन छुट्टियां मनाने से किसी देश का सेकुलर्जिम तय होता है? क्रिसमस की छुट्टियों हो जाए तो सेकुलर और नहीं तो कम्यूनल.. ये कौन सी दलील है यह समझ में नहीं आता है. ब्रिटेन का उदाहरण देता हूं. ब्रिटेन में 1.5 फीसदी जनसंख्या हिंदू है. अगर ब्रिटेन में हिंदू प्रवासियों को जोड़ दें तो ब्रिटेन में हिंदूओं की संख्या 3 फीसदी से ज्यादा हो जाती है. भारत में ईसाईयों की जनसंख्या लगभग वैसी ही है. भारत में 2.3 फीसदी ईसाई हैं. हाल में ही दीपावली को लेकर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने बधाई दी थी लेकिन जब उनसे यह पूछा गया कि दीपावली के दिन छुट्टी क्यों नहीं होती है तो उन्होंने कहा कि ज्यादातर ब्रिटिश नागरिक क्रिसमस को वीकएंड्स पर मनाते हैं. क्रिसमस के दिन छुट्टी तो होती है लेकिन जो काम करने वाले हैं वो काम करते हैं. उन्होंने कहा कि इस युग में हमारी इकॉनोमी एक दिन की भी छुट्टी सहन नहीं कर सकती है. हम त्यौहार मनाते हैं लेकिन उसके लिए नुकसान नहीं उठा सकते हैं. बात भी सही है.
त्योहारों के नाम पर काम न करना भारतीय बीमारी है. पर्व-त्यौहारों के नाम पर दुनिया में सबसे ज्यादा छुट्टियां भारत में होती है. एक साल में 52 सप्ताह होते हैं. साल में 104 दिन तो रविवार और शनिवार के नाम पर छुट्टियां हो जाती है. इसके अलावा हर राज्य में दशहरा, दिवाली, ईद, बकरीद, क्रिसमस और न जाने क्या क्या.. 50 छुट्टियां हो जाती है. इसके अलावा हर कर्मचारी को 25 दिन की छुट्टियां लेनी की छूट है. मतलब यह कि हम एक साल में आधे दिन काम करते हैं और आधे दिन छट्टियां मनाते हैं. फिर, यह शिकायत भी करते हैं कि देश में काम नहीं होता है. सरकार को छुट्टियों को लेकर कोई सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है. अविलंब देश में वर्क-कल्चर को बदलने की जरूरत है. रही बात टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट की, ये मान लेना चाहिए कि अखबारों ने अब अफवाह फैलाने को संपादकीय नीति में शामिल कर लिया है.
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