रवींद्र रंजन की पुस्तक द ग्रेट मीडिया सर्कस

‘द ग्रेट मीडिया सर्कस’ के कुछ रोचक अंश….

media-circusतमाशा स‌र्कस के पुराने चीफ की वापसी होने वाली है। वापसी का ऎलान हो चुका है। स‌र्कस के स‌भी छोटे-बड़े कलाकारों को इत्तिला कर दिया गया है। इस खबर से स‌र्कस में मिला-जुला माहौल है। स‌र्कस के पुराने कलाकार खुश हैं। उन्हें इस चीफ की आदत पड़ चुकी है। जब तक चीफ की डांट नहीं खाते पेट ही नहीं भरता। चीफ की डांट खाने के बाद ही वह अच्छा खेल दिखा पाते हैं। लिहाजा उनका खुश होना लाजिमी है। चीफ की इस ‘वाइल्ड कार्ड एंट्री’ से कुछ कलाकार परेशान भी हैं। ये वो कलाकार हैं, जिनके हाथ-पैर चीफ का नाम सुनते ही कांपने लगते हैं। वह ये सोचकर परेशान हैं कि अब पुराना वाला चीफ हर वक्त रिंग में होगा। जब-तब हंटर फटकारेगा। स‌र्कस में खौफ का माहौल बनाएगा।


चीफ ने आते ही हाथ-पांव मारने शुरू कर दिए हैं। इतने दिनों तक खाली बैठे-बैठ जंग लग गया था। इस बार पहले से ज्यादा चुनौतियां हैं। पुराना हिसाब-किताब अब काम नहीं आएगा। दोबारा खुद को साबित करना होगा। आज स‌र्कस जहां पर है, उससे आगे ले जाना होगा। दिखाना होगा कि नकल के अलावा भी उसे कुछ आता है। वह सिर्फ दूसरे स‌र्कसों के शो कॉपी नहीं करता। उसके पास भी आइडिये भी होते हैं।

पहले कलाकार ढूंढे नहीं मिलते थे। अब एक ढूंढो हजार मिलते हैं। कम पैसे में भी काम करने को तैयार रहते हैं। इससे स‌र्कस के मालिकान खुश हैं। उन्होंने अपनी कार्यशैली बदल दी है। अब मेहनताना नहीं बढ़ेगा। कलाकार भी कम रखे जाएंगे। काम भी ज्यादा लिया जाएगा। जो ज्यादा पैसा मांगेगा उसे नौकरी ही नहीं मिलेगी। कम पैसे वालों से काम चलाया जाएगा। कुछ नहीं आता होगा तो सीख जाएगा। आर्ट अब ‘सींखने’ की चीज हो गई है। वह जमाना गया जब खून में आर्ट होती थी। रगों में कला बहती थी। कलाकार जन्मजात होते थे। अब ना तो ऎसे फनकार रहे और ना ही फन के कद्रदान।”

ये कुछ अंश हैं प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित पुस्तक ‘द ग्रेट मीडिया सर्कस’ के। लेखक ‘रवींद्र रंजन’ हैं. मीडिया की हकीकत से एक अलग ही अंदाज में रूबरू कराने वाली ये पुस्तक इसी महीने के आखिर तक आपके हाथों में होगी। रवींद्र रंजन से उनके ईमेल- ravindraranjan@hotmail.com और उनके फोन नंबर 9873908854 पर संपर्क किया जा सकता है।

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