टेलीग्राफ अखबार नहीं, हत्यारों का मुखपत्र है। एक समुदाय विशेष द्वारा किये गये हत्याकांड को देखिए कम्युनिस्टों का यह अखबार न्यायसंगत ठहरा रहा है।
बता रहा है कि तृणमूल नेता की हत्या की प्रतिक्रिया में आठ लोगों को जला दिया। इसके बाद ये भी समझा रहा है कि जलानेवाले गुस्से में थे।
इस अखबार को पढनेवाला मन में यही सोचेगा, चलो जो किया सही किया। आखिर अगर आप किसी मुस्लिम की हत्या करेंगे तो बदले में आपका सामूहिक नरसंहार हो जाए तो गलत क्या है?
अगर कम्युनिस्ट प्रतिक्रिया में हुई हत्याओं को जस्टिस मानते हैं तो इसी लॉजिक को आज तक गुजरात पर क्यों लागू नहीं कर पाये? क्या वो किसी समुदाय विशेष द्वारा की गयी हिंसा को हिंसा नहीं मानते? क्या उनके लिए मोमिनी हिंसा हिंसा नहीं होती, नेचुरल जस्टिस होती है?
(वरिष्ठ पत्रकार संजय तिवारी मणिभद्र के सोशल मीडिया वॉल से साभार)