ललित गर्ग
सुभाष लखोटिया के प्रशंसकों एवं चहेतों के लिए यह विश्वास करना सहज नहीं है कि वे अब इस दुनिया में नहीं रहे। भारत के शीर्ष टैक्स और निवेश सलाहकार के रूप में चर्चित एवं सीएनबीसी आवाज चैनल पर चर्चित शो ‘टैक्स गुरु’ के 500 से अधिक एपिसोड पूरा कर विश्व रिकार्ड बनाने वाले श्री लखोटिया अनेक पुस्तकों के लेखक थे। वे पिछले कई दिनों से जीवन और मौत से संघर्ष कर रहे थे। उनको कैंसर था। डाक्टरों ने बहुत पहले उनके न बचने के बारे में कह दिया था लेकिन अपने विल पावर और जिजीविषा के कारण वे कैंसर व मौत, दोनों को लगातार मात दे रहे थे। पर इस बार जब हालत बिगड़ी तो कई दिनों के संघर्ष के बाद अंततः दिनांक 11 सितम्बर 2016 की मध्यरात्रि में इस दुनिया को अलविदा कह गए। हम सबके लिए यह हृदय विदारक और मन को पीड़ा देने वाला क्षण है जब हम सब अपने अजीज एवं हजारों-हजारों के चेहते श्री लखोटिया के असामयिक निधन के संवाद से उबर नहीं पा रहे हैं, यह अविश्वसनीय-सा लग रहा है और गहरा आघात दे रहा है। क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से वे न केवल दिल्ली बल्कि देश की विभिन्न सार्वजनिक संस्थाओं की धड़कन बन गये थे। उनका मन अंतिम क्षण तक युवा-सा तरोताजा, सक्रिय, आशावादी और पुरुषार्थी बना रहा।
सुभाष लखोटिया के जीवन के दिशाएं विविध हैं। आपके जीवन की धारा एक दिशा में प्रवाहित नहीं हुई है, बल्कि जीवन की विविध दिशाओं का स्पर्श किया है। आपने कभी स्वयं में कार्यक्षमता का अभाव नहीं देखा। क्यों, कैसे, कब, कहां जैसे प्रश्न कभी सामने आए ही नहीं। हर प्रयत्न परिणाम बन जाता कार्य की पूर्णता का। यही कारण है कि राजधानी दिल्ली की अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक और जनकल्याणकारी संस्थाएं हैं जिससे वे सक्रिय रूप से जुड़े थे, वे अपने आप में एक व्यक्ति नहीं, एक संस्था थे। वे राजस्थान अकादमी, इनवेस्टर क्लब, लायंस क्लब नईदिल्ली अलकनंदा, मारवाड़ी युवा मंच, राजस्थान रत्नाकर और ऐसी अनेक संस्थाओं को उन्होंने पल्लवित और पोषित किया। उनकी अनेक अनूठी एवं विलक्षण विशेषताएं थीं और इसी कारण वे जन-जन में लोकप्रिय थे। वे एक सच्चे सामाजिक कार्यकर्ता थे, वहीं उत्कृष्ट समाज सुधारक और संवेदनशील जनसेवक एवं विचारक थे। वे चित्रता और मित्रता के प्रतीक थे। उनका जीवन घटनाबहुल था उसमें रचनात्मकता और सृजनात्मकता के विविध आयाम गुंथित थे।
अजमेर में जन्में श्री लखोटिया राजस्थान की संस्कृति एवं राजस्थानी भाषा के विकास के लिये निरन्तर प्रयत्नशील थे। दिल्ली में राजस्थानी अकेडमी के माध्यम से वे राजस्थानी लोगों को संगठित करने एवं उनमें अपनी संस्कृति के लिये जागरूकता लाने के लिये अनेक उपक्रम संचालित करते रहे हैं। न केवल राजधानी दिल्ली बल्कि देश-विदेश में राजस्थान की समृद्ध कला, संस्कृति व परंपरा पहुंचाने के लिये प्रयासरत थे। बीते 25 वर्ष से अकेडमी द्वारा लगातार दिल्ली में सांस्कृतिक कार्यक्रमों, विभिन्न प्रतियोगिताओं, कवियत्री सम्मेलन, मरु उत्सव, राजस्थानी लेखकों को सम्मानित करने के आयोजन उनके नेतृत्व में होते रहे हैं। वे राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलवाने के लिए पिछले कई वर्षो से प्रयासरत थे। महिलाओं के लिए यह संस्था विशेष कार्यक्रमों का आयोजन करती है और विशेष कार्य करने वाली महिलाओं को सम्मानित भी करती है। संस्था का उद्देश्य देश-विदेश में रह रहे लोगों को एक साथ एक मंच पर लाना और आपसी भाई-चारे का मजबूत करना भी है। संस्था राजस्थान से जुड़ी हर परम्परा और उन क्षेत्रों से जुड़े कलाकार, विशेषज्ञ तथा बेहतर कार्य करने वालों को सहयोग कर आगे बढ़ावा देती है।
श्री सुभाष लखोटिया को सम्पूर्ण जीवन लाॅयनिज्म को समर्पित रहा है। वे 1970 में ही लायंस इंटरनेशनल के द्वारा सर्वश्रेष्ठ युवा लायंस के रूप में सम्मानित हो गये थे। वे लायंस क्लब नई दिल्ली अलकनंदा के संस्थापक एवं आधारस्तंभ थे। उनकी भारत में लाॅयनिज्म को आगे बढ़ाने के लिए अविस्मरणीय एवं अनुकरणीय सेवाएं रही हंै। वे इस क्लब के माध्यम से सेवा, परोपकार के अनेक जनकल्याणकारी उपक्रम करते रहते थे। हाल ही में उन्होंने सेवा की गतिविधियों को प्रोत्साहन देने के लिये प्रतिवर्ष एक लाख रूपये का ‘सुभाष लखोटिया सेवा पुरस्कार’ देना प्रारंभ किया। वे क्लब के विकास में न केवल सहभागी बने बल्कि उसे बीज से बरगद बनाया, उन सब घटनाओं और परिस्थितियों का एक अलग इतिहास है। उनसे जुड़े अनेक प्रसंग और घटनाएं हैं जिन्हें लांयस क्लब नई दिल्ली अलकनंदा के लिए ऐतिहासिक कहा जा सकता है। श्री रामनिवास लखोटिया के वे पुत्र थे। पिता और पुत्र दोनों ने अजमेर में विक्टोरिया अस्पताल के समीप मोहनलाल गंगादेवी लखोटिया धर्मशाला का निर्माण करके समाजोपयोगी एवं प्रेरणादायी कार्य किया। वे पुष्कर के विकास के लिये भी तत्पर रहते थे। उन्होंने पद-प्रतिष्ठा पाने की न कभी चाह की और न कभी चरित्र कसे हासिये में डाला। स्वस्थ चिंतन से परिवर्तन की जो बुनियाद तैयार होगी वही स्वस्थ समाज एवं लोकमंगलकारी जीवन का नव-विहान करेगी- यही लखोटियाजी के जीवन का हार्द है।
श्री सुभाष लखोटिया अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हुए है। सन् 2010 में ‘साहित्यश्री पुरुस्कार’, ‘सूर्यदत्त राष्ट्रीय अवार्ड’ एवं सन् 2014 में उन्हें लायंस इंटरनेशनल के द्वारा ‘सद्भावना के राजदूत पुरुस्कार’ से सम्मानित किया गया। सन् 2010 में टैक्स गुरु बिसनेस शो के लिये राष्ट्रीय टेलीविजन अवार्ड भी प्रदत्त किया गया। हर व्यक्ति को लखपति और करोड़पति बनाने के लिये उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तकें काफी लोकप्रिय हुई है। वे समृद्धि की ही बात नहीं करते बल्कि हर इंसान को नैतिक एवं ईमानदार बनने को भी प्रेरित करते। देश के दर्जनों अखबारों में उनके न केवल टैक्स सलाह एवं निवेश से संबंधित बल्कि जीवन निर्माण एवं आध्यात्मिक मूल्यों से प्रेरित लेख-साक्षात्कार प्रकाशित होते रहते थे। लखोटियाजी सतरंगी रेखाओं की सादी तस्वीर थे। गहन मानवीय चेतना के चितेरे थे। उनका हंसता हुआ चेहरा रह-रहकर याद आ रहा है।
इस संसार में जन्म-मृत्यु का क्रम सदा से चलता रहा है। कुछ लोग अपने चुंबकीय व्यक्तित्व से अमिट छाप छोड़ जाते हैं। ऐसे ही दुर्लभ व्यक्तित्व के धनी थे लखोटियाजी। मिलनसार एवं हंसोड़ व्यक्तित्व उनका था, जो उन्हें हर किसी से एकाकार कर देता था। गुणग्राहकता ने उनके इस व्यक्तित्व को और भी लुभावना रूप दे दिया था। सरल व्यवहार से संपर्क में आने वाले हर व्यक्ति को वे आकर्षित कर लेते थे। उनके जीवन की दिशाएं विविध हैं, वे एक दिशा में प्रवाहित नहीं हुई है, बल्कि जीवन की विविध दिशाओं का स्पर्श किया है। उनके जीवन की खिड़कियाँ समाज को नई दृष्टि देने के लिए सदैव खुली रही। वे एक सच्चे सामाजिक कार्यकर्ता थे, वहीं उत्कृष्ट समाज सुधारक और संवेदनशील जनसेवक एवं विचारक थे। वे चित्रता और मित्रता के प्रतीक थे।
लखोटियाजी की अनेकानेक विशेषताओं में एक प्रमुख विशेषता यह थी कि वे सदा हंसमुख रहते थे। वे अपने गहन अनुभव एवं आध्यात्मिकता के कारण छोटी-छोटी घटना को गहराई प्रदत्त कर देते थे। अपने आस-पास के वातावरण को ही इस विलक्षणता से अभिप्रेरित करते थे। यही मानक दृष्टि उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व को समझने की कुंजी है।
लखोटियाजी कहा करते थे कि जितना हो सके दूसरों के लिए सुख बांटो क्योंकि इस संसार में उसके समान अन्य कोई धर्म नहीं है। किसी को पीड़ित मत करो, किसी का दिल मत दुखाओ, क्योंकि उसके समान अन्य कोई पाप नहीं है। यह प्रयोग, समस्याओं के आर-पार जाने की क्षमता, वास्तविकता पर पडे़ आवरणों को तोड़ देने की ताकत और मनुष्यों की चिंता उनके अनुभवों में भी दिखाई पड़ती थी। इतिहास और वर्तमान-दोनों जगह वह उत्पीड़न के खिलाफ हैं और उसकी अभिव्यक्ति में पूरी तरह भयमुक्त हैं। अपनी तेज आंखों से वे उस सच को पहचान ही लेते हैं जो आदमी को तोड़ता है और उसे मशीन का केवल पुर्जा बनाकर छोड़ देता है।
लखोटियाजी के जीवन के सारे सिद्धांत मानवीयता की गहराई से जुड़े हैं और उस पर वह अटल भी रहते हैं किंतु किसी भी प्रकार की रूढ़ि या पूर्वाग्रह उन्हें छू तक नहीं पाता। वह हर प्रकार से मुक्त स्वभाव के हैं और यह मुक्त स्वरूप भीतर की मुक्ति का प्रकट रूप है। यह उनके व्यक्ति की बड़ी उपलब्धि है। स्वभाव में एक औलियापन है, फक्कड़पन है और फकीराना अंदाज है और यह यह सब नैसर्गिक रूप में विद्यमान है जिसका पता उन्हें भी नहीं है। उनका दिल और द्वार सदा और सभी के लिए खुला रहा अनाकांक्ष भाव से जैसे यह स्वभाव का ही एक अंग है। मित्रों की सहायता में सदा तत्पर रहे। अपना दुख कभी नहीं कहा किन्तु दूसरों का दुख अवश्य बांटते रहे। छोटी बातों को बड़ा बनाकर कभी नहीं कहते, बड़ी बात को सहज भले बना दें।
लखोटियाजी में विविधता थी और यही उनकी विशेषता थी। उन्हें प्रायः हर प्रदेश के और हर भाषा के लोग जानते थे। उनकी अनेक छवि, अनेक रूप, अनेक रंग उभर कर सामने आते हैं। ये झलकियां बहुत काम की हैं। क्योंकि इससे सेवा का संसार समृद्ध होता है।
लखोटियाजी का जितना विशाल और व्यापक संपर्क है और जितने अधिक लोग उन्हें करीब से जानने वाले हैं, अपने देश में भी और विदेशों में भी, उस दृष्टि से कुछ शब्दों से उनके बारे में बहुत नहीं जाना जा सकता, और भी आयाम और अनेक रोचक प्रसंग उजागर हो सकते हैं। यह काम कठिन अवश्य है, असंभव नहीं। इस पर भविष्य में ठोस काम होना चाहिए, ताकि उनकी स्मृति जीवंत बनी रहे।