ताबिश का पैगाम उत्सव का दीया जलाना मत भूलिए

ताबिश
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इस्लाम में उत्सव की विचारधारा बिलकुल ख़त्म कर दी गयी है.. पैग़म्बर मुहम्मद जब मक्का वालों के ज़ुल्मों से तंग आकर बचते बचाते हुवे जब मदीना वापस आये थे तो मदीना में भी उनके समर्थकों ने नाच और गा कर उत्सव मनाया था.. वो दिन इस्लाम में बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि इसी दिन इस्लाम की नींव पड़ी थी..

बाद में कुछ वर्षों तक लोगों ने इसे उत्सव रूप में मनाया मगर धीरे धीरे बाद के धर्मशास्त्रियों ने नाचना, गाना और उत्सव मनाने को हराम ही बना दिया.. उत्सव मनाना पूरी तरह से इस्लाम से ख़त्म कर दिया गया.. इस्लाम के अब जितने भी त्यौहार हैं वो सब इबादत से जुड़े हैं.. बेमतलब उत्सव को इस्लाम पसंद नहीं करता है

भारत की परंपरा रही है उत्सव मनाने की.. बेमतलब भी और मतलब वाले भी.. यहाँ हमे नाचने और गाने का बहाना चाहिए होता है.. और यही तो जीने और जिंदादिली की निशानी है.. जिन जिन मुल्क़ों में इस्लामिक क़ानून को पूरी तरह से माना जाता है वहां उत्सव की कोई जगह नहीं होती है.. और बिना उत्सव के नीरस जीवन का अंत कैसा होता है ये आज हम सब देख रहे हैं

आप उत्सव मनाईये और इसे जीवन से ख़त्म न होने दीजिए.. उत्सव से पाप और पुण्य को किनारे रखिये.. नाचिए गाईये और बिना मतलब ही एक दुसरे से ख़ुशी बाँटिये.. राम जी अयोध्या से वापस आये या पांडव अपने वनवास से वापस आये.. वजह कोई भी हो मगर दिए जलाना मत भूलिए

आप सभी भारतवासियों को दीपावली की बहुत शुभकामनाएं.. आप सभी का जीवन मंगलमय हो और देश में खुशियां फैले और अज्ञानता का अन्धकार दूर हो

शुभ दीपावली

~ताबिश

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