भारत बंद की एकतरफा नकरात्मक रिपोर्टिंग. भारत बंद की कवरेज पर दो टिप्पणियाँ :
Mayank Saxena भारत बंद की एकतरफा नकरात्मक रिपोर्टिंग क्या ये साफ करने के लिए काफी नहीं कि देश और मीडिया को कौन चला रहा है…मीडिया के जन-सरोकारों के दावे सुनते वक़्त आगे से ग़ौर कीजिएगा…आदिवासियों पर बंदूकें तान, गोलियां चला कर और रेप कर के विस्थापन करवाने के नज़ारों को ब्लैक आउट कर देने वाली मीडिया को मजदूरों की हिंसा तो दिखती है…पूंजीपतियों का हज़ारों करोड़ का नुकसान दिखता है…लेकिन सत्ता और पूंजीपतियों की हिंसा से परहेज़ किया जाता है…ज़ाहिर है कुछ तो गड़बड़ है…अगली बार जब कोई बड़ा पत्रकार किसी मंच से कहे कि इस देश में मीडिया ही है जो काफी कुछ बचाए हुए है, तो हंसते हुए उनके मुंह पर हंसते हुए निकल जाइएगा…
Jagadishwar Chaturvedi दो दिन की हड़ताल के बाद मीडिया में जनता बनाम मजदूरवर्ग के हितों के सवाल को खड़ा किया जा रहा है। बार-बार यह दिखाया जा रहा है हड़ताल के कारण बीमार को अस्पताल पहुँचने में तकलीफ हुई,बच्चे स्कूल नहीं जा पाए, आदि सामान्य जीवन के त्रासद दृश्यों को मजदूरों की हड़ताल को जनविरोधी साबित करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। सच यह है कि अपनी मांगों की सुनवाई के लिए मजदूर सालों-साल इंतजार करते रहे हैं ,कोई उनकी बात नहीं सुन रहा। औने-पौने मेहनताने पर काम कर रहे हैं। अधिकांश मजदूर अकल्पनीय शारीरिक कष्ट में रहकर काम कर रहे हैं। मीडिया में मजदूरों के कष्टों को न बताना मजदूरों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है। यह उल्लंघन हमारा तथाकथित लोकप्रिय मीडिया रोज करता है। वे साल में एक भी दिन मजदूर की बस्ती में नहीं जाते।
एबीपी न्यूज चैनल बहस करने जा रहा है जनता की परेशानी के लिए जिम्मेदार कौन ? ये चैनलवाले यह विषय बनाते तो बेहतर होता कि मजदूरों की परेशानी के लिए जिम्मेदार कौन ?
(स्रोत – एफबी)