हड़ताल की कवरेज पर दो टिप्पणियाँ :
SK Chaudhary Sonu
क्या गजब का इत्तेफाक हैं,,,मजदूरों के खिलाफ दिन भर भागदौड़ करके मीडिया मजदूर बनाते रहे खबर । आज के भारत बंद मे शामिल मजदूरों को मीडिया ने चंद लोगों की तोड़फोड़ की वजह से विलेन (गुंडा) बना दिय औऱ कंपनी के मालिक और मैनेजरों (मोटी तनख्वाह) को पिड़ीत । क्या इसलिए कि मीडिया कंपनीयों मे काम करने वाले मजदूरों को मजदूर केटगरी से अलग किया जा सके । कुछ मीडिया कंपनीयों को छोड़ दें तो सभी मीडिया घरानों के, (न्यूज चैनल या अखबार) मजदूरों (कर्मचारियों) की हालत, किसी फैक्ट्री के मजदूरों से भी बदतर हैं ।। यहां भी न्यूनतम मजदूरी, 5 हजार से लेकर 7 हजार तक हैं, जबकी लुटे-पिटे कंपनी के अधिकारियों की सैलरी लाख के आसपास हैं ,,,,और कंपनी मे 10 हजार से निचे काम करने वालों की संख्या लगभग आधी हैं ।। इन बेचारों मजदूरों की हालत तो इतनी खराब हैं कि ये ना तो हड़ताल कर सकते हैं और ना हीं कोई मांग,,, आखिर पत्रकार जो कहलाना हैं इन्हे, इसलिए अपने आपको उन मजदूरों की केटेगरी से अगल रखते हैं ।।
Akbar Rizvi
देश को अरबों का नुकसान हो रहा है। हड़ताल के कारण प्रधानमंत्री भी चिंतित हैं। सभी न्यूज़ चैनल पर एक ही डायलॉग सुनते-सुनते वह भन्ना उठा। एक भद्दी सी गाली उसके मुँह से निकली। बड़बड़ाया- अबे किसके नुकसान की बात कर रहे हो? 9-9 घंटे खटवाते हो। 5-10 हजार में टरकाते हो। तन्ख्वाह देते वक्त ऐसे एहसान जताते हो, जैसे मजदूरी नहीं दान दे रहे हो। शर्म नहीं आती-सुअर। ख़ून-पसीना मेरा। मेहनत मेरी। मुनाफा तेरा। वाजिब हक़ मागूँ तो सीधे मुँह बात नहीं करोगे। हड़ताल करूँ तो फटकारोगे धमकाओगे। अबकि मिलो आमने-सामने… कहीं। फिर बताते हैं नुकसान किसका हुआ? अभी तो दो ही दिन का है। सकून तो तब मिले जब शोषण की तमाम चक्कियाँ अनिश्चितकाल के लिए बंद हो जाएँ। हम तो आज भी कंगले हैं, कल भी थे और आगे भी वैसे ही रहने वाले हैं क्योंकि तुम उसके आगे हमें जाने ही नहीं दोगे।
(स्रोत – फेसबुक)