एनडीटीवी के श्रीनिवासन को न कभी पैनिक होते देखा और न ही दर्शकों को पैनिक करते देखा

विनीत कुमार

srinivasan jain awardश्रीनिवासन जैन( मैनेजिंग एडिटर, एनडीटीवी 24×7 ) को साल 2012 के लिए जर्नलिस्ट ऑफ द इयर का अवार्ड दिया गया. मुझे नहीं पता कि बतौर मैनेजिंग एडिटर वो चैनल के भीतर किस रूप में जाने जाते हैं और न ही उनसे मेरी कोई मुलाकात है..लेकिन एक दर्शक की हैसियत से पिछले दस सालों मैं जिस श्रीनिवासन जैन को जानता हूं, वो न तो मधु त्रेहन के साथ बड़े ही इत्मीनान से बैठे मीडियाकर्मी हैं और न ही ग्लैमरस लुक में लोकसभा स्पीकर से रामनाथ गोयनका सम्मान लेते मैनेजिंग एडिटर.

श्रीनिवासन जैन भारतीय टेलीविजन जिसे कि टेक्नीकली ट्रांसनेशनल टेलीविजन कहना ज्यादा सही होगा, उन गिने-चुने मीडियाकर्मियों में से हैं जब टाइम्स नाउ की अट्टालिका में बैठकर अर्णव ग्राउंड जीरो रिपोर्टिंग मुहावरे का इस्तेमाल करते हैं तो इनका चेहरा अपने आप याद हो आता है. आतंकवादी गतिविधियों, अपराध, ब्लास्ट, तबाही से जुडे जिन मुद्दे पर वो लगातार रिपोर्टिंग करते आए हैं, उन सबको कवर करना इनके लिए जितना मुश्किल रहा होगा, उतना ही मुश्किल खबरों को नारे और चैनल के खोमचे बना दिए जाने के दौर में दर्शकों के लिहाज से समझना भी. लेकिन श्रीनिवासन की रिपोर्टिंग की सबसे खास बात है कि वो खुद दनादन बोलने के बजाय बहुत ही शांत अंदाज में पहले जी-भरकर विजुअल्स को बोल लेने देते हैं और उसके बाद ही हथेली से फिसलती हुई सरसों जैसी अंग्रेजी में अपनी बात रखते हैं. मैंने उनकी जितनी भी रिपोर्ट जिनसे से कई लाईव भी हैं, देखी है..वो कम्फर्ट जोन की रिपोर्टिंग नहीं है. उनमे से कुछ तो ऐसा भी कि थोड़ी सी चूक होने पर जान तक चली जा सकती है. मुंबई बम बलास्ट, इराक हमले और अभी हाल ही में गाजा से की गई रिपोर्टिंग इसके उदाहरण हैं..

लेकिन दिल्ली की यमुना में जलस्तर बढ़ने के साथ ही स्वीमिंग कॉस्ट्यूम लादे, मोटरवोट में हमारे अधिकांश संवाददाता जहां बार-बार ये जताने की कोशिश करते हैं कि वो हमारे लिए अपनी जान हथेली पर रखकर रिपोर्टिंग कर रहे हैं, चंद्रग्रहण-सूर्यग्रहण के कर्मकांड की लाइव कवरेज के लिए रातभर सोए नहीं हैं, इन सबके बीच इस विपरीत और अपने नियंत्रण में न होनेवाली परिस्थितियों के बीच न तो श्रीनिवासन को कभी पैनिक होते देखा और न ही दर्शकों को पैनिक करते देखा. जिस गंभीरता से वो एक-एक चीज को बताने से ज्यादा दिखाते हुए( जाहिर है इसमे वीडियो जर्नलिस्ट की भूमिका रहती है) अपनी बात रखते हैं, आप तात्कालिक उतावलेपन या गर्माहट के बजाय टीवी जैसे माध्यम के बीच होकर भी ठहरकर गंभीरता से चीजों से गुजर रहे होते हैं..दरअसल वो टीवी पर बोल नहीं रहे होते हैं, स्क्रीन एडिटोरियल लिख रहे होते हैं. जो ज्यादा गहरा असर करता है..आप अगर श्रीनिवासन जैन की रिपोर्ट से लगातार गुजरें तो बिना कुछ कहे कई रिपोर्टर आपको आर्टिफिशयल हाव-भाव में कूदते-काथते नजर आएंगे..

हम कामना करते हैं कि हम आगे श्रीनिवासन जैसे को टीवी पर जब भी देखेंगे, कांख के नीचे का हिस्सा पसीने से भींगा होगा,फील्ड के बीच का इत्मिनान होगा, सिर्फ स्टूडियो का नहीं.
उन्हें बहुत बधाई.

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