एबीपी न्यूज़ के पूर्व एडिटर-इन-चीफ शाजी ज़मा के साहित्य प्रेम से पूरी न्यूज़ इंडस्ट्री परिचित हैं. साहित्य और भाषा की ये उनकी समझ ही थी कि पहले स्टार न्यूज़ और बाद में एबीपी न्यूज़ का कलेवर दूसरे चैनलों की तुलना में बिल्कुल अलग ही नज़र आता था.बहरहाल अब न्यूज़ इंडस्ट्री से फूर्सत पाकर वे पूरी तरह से साहित्यिक दुनिया में आ गए हैं. जल्द ही उनका नया उपन्यास ‘अकबर’ प्रकाशित होकर आने वाली है. राजकमल प्रकाशन समूह इसे प्रकाशित कर रहा है. खास बात ये है कि साहित्यकार बनने की चाह में टीवी न्यूज़ के कई दूसरे पत्रकारों की तरह उन्होंने आनन-फानन में उपन्यास नहीं लिखा है,बल्कि लंबे अरसे से इसपर काम करते रहे हैं. पूरा रिसर्च किया है, संग्रहालयों की ख़ाक छानी और तब जाकर ‘अकबर’ प्रकाशित होने की राह पर है.उम्मीद करते हैं कि जिस तरह अपने कंसेप्ट से उन्होंने न्यूज़ इंडस्ट्री पर छाप छोड़ी, ठीक उसी तरह अपने उपन्यास के जरिए वे साहित्य की दुनिया में भी छाप छोडेंगे.
बहरहाल राजकमल प्रकाशन ने इस संबंध में सोशल मीडिया पर जानकारी दी है. राजकमल प्रकाशन के संपादक सत्यानंद निरुपम में ‘अकबर’ के जल्द प्रकाशित होने की खबर देते हुए लिखा –
सत्यानंद निरुपम
किसी लेखक की 20 सालों की मेहनत मायने रखती है। जाने वह एक ही विषय पर सामग्री का संधान किस जतन और धैर्य से करता है! 8 सालों की लिखाई-मंजाई के बाद वह उपन्यास का एक फाइनल ड्राफ्ट तैयार करता है। अब वही उपन्यास ‘अकबर’ नाम से छपने की राह में है। अकबर, जिसकी तलवार ने साम्राज्य की हदों को विस्तार दिया, जिसने मज़हबों को अक़्ल की कसौटी पर कसा, जिसने हुकूमत और तहज़ीब को नए मायने दिए, उसी बादशाह की रूहानी और सियासी ज़िन्दगी की जद्दोजहद का सम्पूर्ण खाका पेश करते इस उपन्यास को शाज़ी ज़माँ ने लिखा है।
शाज़ी ज़माँ दिल्ली के सेंट स्टीफ़ेंस कॉलेज से इतिहास में स्नातक हैं। बरसों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में हैं। राजकमल से उनके दो उपन्यास ‘प्रेमगली अति सांकरी’ और ‘जिस्म जिस्म के लोग’ पहले से प्रकाशित हैं। अब तीसरा उपन्यास ‘अकबर’ जल्द ही सामने आने वाला है।
इस उपन्यास को लेखक ने कल्पना के बूते नहीं, बाज़ार से दरबार तक के ऐतिहासिक प्रमाण के आधार पर रचा है। शाज़ी साहेब ने कोलकाता के इंडियन म्यूज़ियम से लेकर लंदन के विक्टोरिया ऐल्बर्ट तक बेशुमार संग्रहालयों में मौजूद अकबर की या अकबर द्वारा बनवायी गयी तस्वीरों पर ग़ौर किया है। बादशाह और उनके क़रीबी लोगों की इमारतों का मुआयना किया है और ‘अकबरनामा’ से लेकर ‘मुन्तख़बुत्तवारीख़’, ‘बाबरनामा’, ‘हुमायूंनामा’ और ‘तज़्किरातुल वाक़यात’ जैसी किताबों का और जैन और वैष्णव संतों और ईसाई पादरियों की लेखनी का भी अध्ययन किया है। बतौर संपादक मैं लेखक की इस तैयारी से गहरे मुत्मइन हूँ। उपन्यास पढ़ कर पाठक किस हद तक संतुष्ट होते हैं, यह आने वाले समय में देखना है।
पिछले 6 महीनों में लेखक-संपादक की हुई तमाम बैठकियों में उपन्यास के बहुत सारे बारीक रेशे सुलझाए गए। कई पहलुओं पर बात हुई। हम दोनों एकराय होते और आगे बढ़ते रहे। उपन्यास का आवरण इस दौरान Puja Ahuja ने तैयार किया है। इस पर आप जिस ढाल को देख रहे हैं, वह अकबर की असल ढाल है जो फ़िलहाल छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय (मुम्बई) में संरक्षित है। हमने वहीँ से इसका प्रकाशनाधिकार लिया है। पृष्ठभूमि में जो दीवार है वह फतेहपुर सिकरी के एक हिस्से का है। यह फोटो अनिल आहूजा के सौजन्य से हमें प्राप्त हुआ है। टाइटल की कैलिग्राफी Rajeev Prakash Khare ने की है। उपन्यास के अंदर न केवल कुछ दुर्लभ रंगीन चित्र होंगे, बल्कि पहली बार अकबर की जीवन-यात्रा को समझने के लिए एक संग्रहणीय नक्शा भी सामने आएगा। परिशिष्ट में और भी इंफोग्राफिक्स मुमकिन हैं।
उपन्यास के पेपरबैक और सजिल्द संस्करणों की प्री-बुकिंग अगले हफ्ते से शुरू होने वाली है। इसकी सूचना राजकमल प्रकाशन समूह के पेज से आपको सही समय पर मिल जाएगी। अक्टूबर महात्मा गाँधी और लालबहादुर शास्त्री का ही नहीं, अकबर का भी महीना है। देश की मिट्टी, हवा और पानी का हक़ अदा करने वालों में अकबर का नाम भी अग्रणी है। अकबर अक्टूबर में ही जन्मे, इसी महीने में मरे। यह पूरा महीना ‘अकबर’ उपन्यास के नाम!