‘अकबर’ उपन्यास के लेखक शाज़ी ज़माँ के साथ मुगल दरबार से जुड़े कुछ एतिहासिक स्थलों की यात्रा
नई दिल्ली (प्रेस विज्ञप्ति): वरिष्ठ पत्रकार एवं जल्द आने वाले उपन्यास ‘अकबर’ के लेखक शाज़ी ज़माँ के नेतृत्व में मुगल बादशाह अकबर से जु़ड़े ऐतिहासिक स्थलों की एक हैरिटेज वॉक 23 अक्टूबर को आयोजित की गई। इंडिया हेबिटेट सेंटर द्वारा आयोजित यह वॉक रविवार सुबह आठ बजे पुराना किला से शुरू हुआ । हैरिटेज वॉक का कारवाँ बादशाह अकबर के जीवनकाल से जुड़ी दो महत्वपुर्ण जगहों पर रुका, जहाँ पर इस वॉक में शामिल बादशाह अकबर और आने वाले उपन्यास को लेकर उत्साहित लोगों को शाज़ी ज़माँ ने इन इमारतों की दीवारों में दफ़्न कई अनछुई कहानियों से रूबरू करवाया।
इस विरासत यात्रा का पहला पड़ाव था पुराने किले में स्थित शेर महल। इसी जगह सीढ़ियों से फिसलकर गिरने के कारण अकबर के पिता हुमायूँ की असमय मृत्यू हो गई थी जिसके बाद मुगल सत्ता की गद्दी पर यूवा अकबर को बैठाया गया। हुमायूँ की मौत की खबर को गुप्त रखा गया। उनके जैसा ही दिखने वाला कोई और झरोखा-दर्शन देता था जिससे लोगों को लगता रहे कि हुमायूँ ज़िन्दा है। पँजाब में अकबर की ताजपोशी के ठीक बाद हुमायूँ की मौत को सार्वजनिक किया गया।
पुराने किले से निकलने वाली सड़क के ठीक सामने स्थित एक इमारत ख़ैर-उल-मनाज़िल मस्जिद या महामंगा का मदरसा इस वॉक का दूसरा पड़ाव थी। ख़ैर-उल-मनाज़िल फारसी का शब्द है जिसका मतलब होता है ‘सब इमारतों में श्रेष्ठ’। इसी जगह 1564 में बादशाह अकबर पर कातिलाना हमला हुआ था। इस हमले के बारे में अभी तक पूरी तरह नहीं मालूम है। भरे बाजार में तीर से उन पर यह हमला उस वक्त हुआ जब वो निजामुद्दीन दरगाह से लौट रहे थे।
हम सब अकबर को मुगल साम्राज्य के सबसे महान बादशाह के रूप में जानते हैं लेकिन उनके जीवन के कईं मंत्रमु्ग्ध कर देने तथ्य है जो अभी तक अनछुए हैं। शाज़ी ज़माँ ने इस वॉक में ऐसे ही अकबर की ज़िन्दगी से जुड़े कई अनसुने पहलूओं से रूबरू करवाया।
इतिहास के प्रति शाज़ी ज़माँ की रूचि और 20 सालों का रिसर्च जो ‘अकबर’ उपन्यास के रूप में आ रहा है, उनके द्वारा दिये जा रहे विवरण में साफ झलक रहा था।
“अकबर के जीवन की महत्वपुर्ण घटनाओं को समझने के लिए बाबरनामा, अकबरनामा और हुमायूँनामा प्राथमिक स्त्रोत है। उसके साथ ही साथ मुगल मिनिअेचर को पढ़ना भी जरूरी है। हालांकि अकबर के जीवन पर रिसर्च करने के लिए मैं अपना समय उसकी बनाई और उसके जीवन से जुड़ी इमारतों की खोजबीन में लगाया । इससे में अकबर के समयको अच्छे से महसूस किया । अब में हुमायूँ के शेर मंडल में सीढ़ियों से लड़खड़ाकर गिरने की और अकबर जब महामंगा के मदरसे में हमले के बाद सबको अपने को लगा तीर निकालकर दिखाता है उन दृष्यों ठीक से कल्पना कर सकता हूं। इसी उत्साह को मैंने अकबर उपन्यास में लिखा है। और यही उत्साह मैं पर्सनली इस वॉक में शेयर करना चाहता था।”
-शाज़ी ज़माँ
शाज़ी ज़माँ लिखित और हिन्दी में राजकमल से प्रकाशित उपन्यास ‘अकबर’ लेखक के 20 साल के रिसर्च का परिणाम है। दो दशकों में पहली बार इतिहास और कहानी के पाठकों के लिए इस उपन्यास में अकबर का कैरेक्टर इतनी मजबूती से पेश किया जायेगा। लेखक ने अकबर के बारे में उपलब्ध हो सके सारे स्त्रोतों का गहराई से अध्ययन किया है। इन्होंने इसके लिए कलकता के इंडियन म्यूजियम से लेकर के लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट म्यूजियम तक की यात्राएँ की और हर एक छोटी से छोटी पेंटिंग से लेकर अकबर और उसके समकालीन मुगल स्थापत्य का गहराई से अध्ययन किया।
यह उपन्यास प्री-बुकिंग के लिए amazon.in पर 15 नवम्बर से उपलब्ध होगा।
शाज़ी ज़माँ के बारे में-
शाज़ी ज़माँ भारत के इलेक्ट्रोनिक मीडिया के बड़े पत्रकार हैं और कुछ समय पूर्व तक एबीपी न्यूज़ नेटवर्क के ग्रुप एडिटर के रूप में काम कर रहे थे। इन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफन कॉलेज से पढ़ाई की। उन्होंने बीबीसी वर्ल्ड सर्विस, स्टार न्यूज़, आजतक, ज़ी न्यूज और दूरदर्शन में काम किया है। इससे पहले उनके दो उपन्यास ‘प्रेम गली अति सांकरी’ और ‘जिस्म जिस्म के लोग’ राजकमल प्रकाशन से छप चुके हैं।
राजकमल प्रकाशन के बारे में-
60 सालों से अधिक समय से विश्वसनीयता बनाये हुए राजकमल प्रकाशन समुह भारत का बड़ा प्रकाशक है। और यह भारत में साहित्यिक ऊंचाई सहित इसकी विविधता और इसके मुल्यों का पर्यायवाची रहा है। राजकमल प्रकाशन का 65 वर्षों का प्रकाशन का इतिहास रहा है और यह लगभग भारत के सभी बड़े हिन्दीभाषी लेखकों के साहित्य बढ़ावा दिया है। इसके अलावा दूसरी भाषाओं की किताबों का भी हिन्दी अनुवाद करके उसे पाठकों तक पहुंचाया है।