शांतिभूषण के मेल टुडे में छपे लेख पर हंगामा

शकुनि दाँव” किसने चला होगा

मेल टुडे में शाँति भूषण का एक लेख प्रकाशित हुआ है जिसमें आम आदमी पार्टी के प्रयोग को बचकाना बताया गया है। नाराजगी उसके लोकसभा चुनाव में उतरने पर है। कहा गया है कि ये मोदी को रोकने की कोशिश है जिनकी जीत ”आप” की दुकान बंद कर देगी।..हैरान था कि ”आप” बनाने में सक्रिय सहयोग देने वाले शँति भूषण को अचानक क्या हो गया..कोई नतीजा निकालता इससे पहले ही पता चला कि उन्होंने ऐसा कोई लेख लिखने से इंकार किया है। यही नहीं, उन्होंने मेल टुडे के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की धमकी भी दी है। सोच रहा हूं कि ऐसा ”शकुनि दाँव” किसने चला होगा…… (पंकज श्रीवास्तव, स्रोत:एफबी)

नवभारत टाइम्स में छपी खबर

नई दिल्ली. वरिष्ठ वकील और आम आदमी पार्टी के फाउंडर मेंबर शांति भूषण के नाम से छपे एक लेख ने हंगामा मचा दिया है। इंग्लिश अखबार मेल टुडे में छपे इस लेख में शांति भूषण ने कहा है अरविंद केजरीवाल ने बड़ी ही चालाकी से कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी को भी करप्शन के आरोप में घेर लिया, ताकि अल्पसंख्यक वोट बटोर लिए जाएं। उन्होंने लिखा है कि बाहर से भले ही केजरीवाल कांग्रेस का विरोध कर रहे थे, लेकिन चुपचाप बीजेपी के खिलाफ भी जुटे हुए थे। बाद में शांति भूषण ने एक न्यूज चैनल को बताया कि यह लेख उन्होंने नहीं लिखा है।

बीजेपी के सांसद और कानून मंत्री रहे शांति भूषण के नाम से छपे इस लेख में लिखा गया है कि अरविंद केजरीवाल ने बड़ी ही चतुराई से करप्शन के मुद्दे पर बीजेपी को भी निशाने पर लिया और उसे कांग्रेस के एक समान बताया। वहीं खुद वह सेक्युलरिजम के नाम पर मुस्लिम नेताओं से मिले, ताकि उन मुसलमानों को अपने पक्ष में कर सकें, जो बीजेपी का विरोध करते रहे हैं मगर कांग्रेस से उकता गए हैं। केजरीवाल और उनकी पार्टी अन्ना हजारे के उस आंदोलन की देन हैं, जो कांग्रेस के करप्शन और मनमोहन सरकार की कारगुजारियों के खिलाफ शुरू हुआ था। लेकिन बाद में अरविंद केजरीवाल की मदद से इस पूरे आंदोलन ने अपना रुख मोड़कर बीजेपी की तरफ भी कर दिया गया। इससे जनता कन्फ्यूज हो गई और आंदोलन की धार कुंद पड़ गई। नतीजा यह हुआ कि केजरीवाल और कंपनी के पास भी कोई काम नहीं बचा।

इस लेख में कहा गया है कि आंदोलन फ्लॉप होने के बाद भी केजरीवाल ने हार नहीं मानी। जिस राजनीति का वह कड़ा विरोध करते रहे थे, उन्होंने उसी राजनीति में आने का फैसला लिया। अन्ना इससे सहमत नहीं हुए। अन्ना की असहमति केजरीवाल की महत्वाकांक्षाओं की राह में अड़चन बन गई थी। इसलिए केजरीवाल ने अन्ना को दरनिकार करते हुए आम आदमी पार्टी के नाम से पार्टी बना ली और इसे दोनों बड़ी नैशनल पार्टियों के खिलाफ खड़ा कर दिया। केजरीवाल ने जानबूझकर शरारतपूर्ण ढंग से गडकरी के करप्शन की बात उठाई और उन्हें कांग्रेस के करप्ट नेताओं की कतार में खड़ा कर दिया ताकि खुद को सेक्युलर दिखा सकें। एक खास वर्ग को तुष्ट करने के लिए बीजेपी का नाम खराब किया गया। वरना बीजेपी तो सत्ता के आसपास भी नहीं थी, ऐसे में उसके करप्शन का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।

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