सत्यमेव जयते अब नरेन्द्र मोदी की सरकार के लिए अब श्रमेव जयते हो गया है.इसमें गलत कुछ नहीं है बस एक सवाल है कि जो चीजें सालों से हमारे जेहन में जब इस कदर घुल-मिल गयी है कि उसमे छेड़छाड़ करना अटपटा लगता है लेकिन बिना ज़रूरत के उसके साथ छेड़छाड़ जारी है…
तो क्या ये सिलसिला उन चीजों के साथ नहीं चल रहा, जो हमें सत्यमेव जयते की तरह दिखाई नहीं दे रहा..
ये पूरी कलाकारी विज्ञापन और इवेंट कंपनियों की है..इसमें क्रिएटिविटी नहीं उसका अतिक्रमण है..आपको लगता हैं कि इसी बूते संस्कृति और परंपरा के बचाये रखने के दावे पुख्ता बने रहेंगे?
(विनीत कुमार के ब्लॉग से साभार)