युवाओं के बीच ‘लप्रेक’ के चढ़े सुरूर के बीच ‘सार्थक’ ने आज विश्व पुस्तक मेले में अपनी अगली किताब ज़ेड प्लस फिल्म की औपन्यासिक कथा का लोकार्पण कराया। ‘ज़ेड प्लस’ के बारे में बोलते हुए प्रसिद्ध कवि मंगलेश डबराल ने कहा कि, ‘यह सिनेमा और साहित्य की दूरियों को पाटने का काम करेगी। इसकी भाषा पठनीय है। यह एक पोलिटिकल पार्स है।’ वहीं जाने माने पत्रकार रामशरण जोशी ने कहा कि, ऐसे समय में जब साहित्य और सिनेमा को लेकर परिस्थितियां जटिल होती जा रही है, वैसे में इस किताब का आना सार्थक पहल है। बतौर एक प्रयोग इस पुस्तक का बहुत महत्व है। पाठक प्रिय कथाकार असगर वज़ाहत ने कहा कि, मुझे खुशी है कि हिन्दी सिनेमा में कुछ बढ़ रहा है। किसी निर्देशक निर्माता को यह कहानी प्रभावित की और उसने इस पर फिल्म बनाई। हिन्दी सिनेमा और साहित्य के बीच में जो दूरी है, उस पर सोचने की आवश्यकता है। कथाकार व जानकीपुल व्लॉग के संपादक प्रभात रंजन ने कहा कि, यह हिन्दी में पहला मौका है, जब किसी उपन्यास पर फिल्म पहले बनी है और उसका प्रकाशन बाद में हुआ है। अपनी किताब के बारे में बताते हुए लेखक रामकुमार सिंह ने कहा कि, ‘यह उपन्यास साहित्य व सिनेमा की जर्नी है। यह एक आम आदमी की कहानी है, जो राजनीतिक खेल से परेशान है। मुझे पूरा विश्वास है कि इस उपन्यास को पढ़ कर आप वाह! कहे बिना नहीं रह सकते। यह थ्रिलर की तरह चलती है। यह बहुत ही मज़ेदार है’।
ध्यान रहे कि ज़ेड प्लस से पहले राजकमल प्रकाशन समूह के नए इम्प्रिंट ‘सार्थक’ से तीन किताबें दर्दा-दर्रा हिमालय (अजय सोडानी), सफ़र एक डोंगी में डगमग (राकेश तिवारी) और ‘इश्क़ में शहर होना’ जिसे टीवी पत्रकार रवीश कुमार ने लिखा पाठकों के बीच जबर्दस्त मांग में है। इस बावत राजकमल प्रकाशन समूह के संपादकीय निदेशक सत्यानंद निरुपम ने आशा व्यक्त करते हुए कहा कि जिस तरह से सार्थक की बाकी किताबों को पाठकों से प्यार मिला है, उसी तरह इस किताब को भी स्नेह मिलेगा।
लेखक परिचय
राम कुमार सिंह
दिलचस्प किस्कागोई के साथ मौलिक और जमीन से जुड़े कथाकार के रूप में पहचान।सिनेमा और साहित्य में समान रूप से सक्रिय। फतेहपुर शेखावटी, राजस्थान के बिरानियां गांव में 1975 में किसान परिवार में पैदा हुए। कहानिया लिखीं। हिन्दी साहित्य से एम.ए.। राजस्थान में हिन्दी पत्रकारिता में नाम कमाया। पुरस्कृत भी हुए। पहला कहानी-संग्रह भोभर तथा अन्य कहानियां चर्चित और प्रशंसित। राजस्थानी की चर्चित फिल्म भोभर की कथा, संवाद और गीत लिखे। ज़ेड प्लस उपन्यास पर बनी फिल्म की पटकथा और संवाद भी निर्देशक के साथ मिलकर लिखे।
महुआ माजी, वीरेन्द्र सारंग व मलय जैन के उपन्यासों का हुआ लोकार्पण
विश्व पुस्तक मेले का छठा दिन पुस्तक लोकार्पणों के नाम रहा। राजकमल प्रकाशन समूह के स्टॉल (237-56) में तीन किताबों महुआ माजी की ‘मरंग गोड़ा निलकंठ हुआ’, मलय जैन की ‘ढाक के तीन पात’ व वीरेन्द्र सारंग का उपन्यास ‘हाता रहीम’ का लोकार्पण किया गया।
महुआ माजी की किताब ‘मरंग गोड़ा निलकंठ हुआ’ के लोकार्पण के अवसर पर बोलते हुए वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल ने कहा कि, महुआ माजी के इस उपन्यास का पेपरबैक में आना खुशी की बात है। पेपर बैक से ही साहित्य का भविष्य है। इस उपन्यास के महत्व पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि इस उपन्यास का समाजशास्त्रीय महत्व है। वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी ने मंगलेश जी की बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा कि, आमतौर पर आदिवासी विमर्श को सतही ढंग से देखा जा रहा था, लेकिन अब बदलाव आया है। आदिवासी समस्या लेखक समझने लगे हैं। कवि संपादक लीलाधर मंडलोई ने कहा कि हमलोगों को भी एक खास तरीके की लिटरेसी की जरूरत है। इस किताब से मैं भी लिटरेट हुआ हूं। आलोचक वीरेन्द्र यादव ने इस मौके पर कहा कि, हिन्दी में इस विषय पर पहले उपन्यास नहीं लिखा गया था। इसका समाजशास्त्रीय महत्व तो है ही साथ में एक उपन्यास के रूप में भी महत्व है। विकास बनाम विनाश का प्रश्न एक साथ उठाया गया है। यह पारंपरिक कसौटी से इतर आस्वादपरक मनःस्थिति से मुक्त होकर नई दिशाओं का अन्वेषक है। कथाकार असगर वजाहत ने कहा कि, यह किताब हिन्दी साहित्य पर लगे उस आरोप का खंडन करती है जिसमें कहा गया है कि हिन्दी साहित्य मध्यमवर्ग तक ही सीमित रहा है। लेखक संपादक प्रियदर्शन ने कहा कि यह उपन्यास बहुत ही शोध कर के लिखी गयी है। इस किताब के बारे में बताते हुए उपन्यासकार महुआ माजी ने कहा कि, इस उपन्यास में मैंने विकिरण, प्रदूषण व विस्थापन से जूझते आदिवासियों की गाथा को पेश किया है। यह उपन्यास तथाकथित सभ्य देशों द्वारा किए जाने वाले सामूहिक नरसंहार के विरूद्ध निर्मित एक नई मुक्तिवाहिनी की कथा है। वास्तविक अर्थों में यह उपन्यास इक्कीसवीं सदी का और ‘आज का’ उपन्यास है।
राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित मलय जैन की किताब ‘ढाक के तीन पात’ का लोकार्पण के अवसर पर बोलते हुए आलोचक वीरेन्द्र यादव ने कहा कि यह उपन्यास गांव, पुलिस, अध्यापक की पृष्भूमि लिए हुए 21 सदी में तेजी से भागते भारत और पिछड़ते भारत के अंतर्द्वंद्व की कथा है। रोचक मुहावरे में सामाजिक यथार्थ पर लिखा हुआ उपन्यास है। वहीं वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी ने कहा कि मलय जी का यह उपन्यास व्यंग प्रधान उपन्यास है। जब श्रीलाल शुक्ल का उपन्यास ‘रागदरबारी’ 1968 में आया था तब उसने ग्रामीण भारत के यथार्थ को झकझोरा था। उसी कड़ी में यह भी उपन्यास है। मलय जी ने नई जटिलताओं को इस उपन्यास में उठाया है। लेखक मलय जैन ने कहा कि यह उपन्यास नए संदर्भों में गांव व सरकारी समस्याओं को समझने का मौका देगा।
वीरेन्द्र सारंग का उपन्यास ‘हाता रहीम’ का लोकार्पण केदारनाथ सिंह, मदन कश्यप, रंजीत वर्मा, हृषिकेश सुलभ, लीलाधर मंडलोई, कृष्ण कल्पित, पंकज चतुर्वेदी, महुआ माजी व अजंतादेव की उपस्थिति में हुआ। इस मौके पर केदारनाथ सिंह ने उपन्यास की सफलता की कामना की। स्टॉल पर निरंतर बढ़ रही पाठकों के भीड़ के बीच स्टॉल पर दिन भर स्थापित व नवोदित लेखकों का आना-जाना बना रहा। राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने सदाबहार पुस्तकों के साथ-साथ नई पुस्तकों के लिए भी पाठकों का रूझान देखकर खुशी व्यक्त की।
(प्रेस विज्ञप्ति )