वेद उनियाल
साध्वी कही जाने वाली निरंजना आखिर किन योग्यताओं के आधार पर मंत्री बनी थी। एक समय में जन समस्याओं से जूझने वाले, लंबा सामाजिक अनुभव रखने वाले , प्रशासनिक समझ रखने वाले लोग मंत्री बनते थे। अब समय आया है कि एक साध्वी बिना किसी प्रशासनिक अनुभव के मंत्री बन जाती हैं। इसका नतीजा होता है उन्हें शब्दों का भी अहसास नहीं होता।
एक संत या संतन से समाज क्या अपेक्षा करता है। कायदे से संत संतनों का मंत्री बनना ही गलत है। समाज को दिशा देने , उसे रोशनी देने के लिए इनकी अलग भूमिका होती है। बाबा फरीद, बाबा बुुल्लेशाह ने समाज से क्या मांगा। और मीरा तो सब कुछ मिलने पर छोड़कर चली गई। लेकिन आज के साध्वी संत लोभ लिप्सा में फंसे हैं।
संसद में इन साध्वी की क्या उपयोगिता। मंत्री बनने के लिए इतनी ललक क्यों। क्या यह कह नहीं सकती थी कि ये काम मेरे लिए नहीं। पर आज का समय अलग है। साध्वी क्या कहती हैं , बाबा क्या कर रहे हैं और संतों ने कैसी वाणी सीख ली है। यह हम सबके लिए चिंता की बात है। अगर हम हिदूं समाज के होने का अभिमान करते हैं ,, तो सबसे ज्यादा डर हिंदू समाज को इन भटके , कदम कदम पर उत्तेजित होने वाले साधु संतो से ही है। @fb