दयानंद पाण्डेय
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सचिन तेंदुलकर की किताब आज पहले ही दिन डेढ़ लाख बिक गई । और यहां हिंदी में किसी की कोई किताब किसी पुस्तक मेले में दस किताब भी बिक जाती है तो वह फूल कर कुप्पा हो जाता है । बताता फिरता है , यह बताते अघाता नहीं है । और तो और बीते साल एक लेखिका की दो सौ किताब बिक जाने पर उस लेखिका पर फ़िदा प्रकाशक ने दिल्ली के इंडिया इंटर नेशनल सेंटर में बाकायदा जश्न मनाया सब को बटोर कर।
चेतन भगत जैसे लेखक साल में सात करोड़ सालाना रायल्टी पाने का दम भरते हैं और यहां हिंदी के किसी एक प्रकाशक का सालाना टर्न ओवर भी सात करोड़ का नहीं बनता। बनता भी हो तो वह ऐलान कर के बताता नहीं। उलटे रोना रोता रहता है कि किताब तो बिकती ही नहीं। हिंदी का प्रकाशक सिर्फ़ दो प्रतिशत लेखकों को ही आधी-अधूरी रायल्टी देता है । इन में भी एक प्रतिशत वह लेखक हैं जो उस प्रकाशक के लिए अमूमन दलाली का काम करते हैं । उलटे कई प्रकाशक तो हिंदी लेखकों से पैसा ले कर किताब छापने में प्रवीण हैं । और यह सब तब है जब हिंदी में बनी शाहरुख खान जैसे वाहियात अभिनेताओं की फ़िल्में भी हफ़्ता भर में करोड़ों रुपए कमा लेती हैं , बल्कि अरबो रुपए।
तो यह दुर्भाग्य सिर्फ़ हिंदी की ही किताबों के साथ ही स्थाई भाव बन कर उपस्थित क्यों है ? हिंदी प्रकाशकों की बेईमानी , सरकारी खरीद का दीमक और हिंदी लेखकों की यह कायरता हिंदी को किस ठौर ले जाएगी, भला कौन जानता है ?
@एफबी