देश में राजनीतिक पार्टियों के बीच इस कदर अविश्वास का माहौल बन गया है कि सरकार,सेना और पुलिस के हर काम को विपक्ष शक की नज़र से देखने लगा है.सर्जिकल स्ट्राइक हो तो शक और सिमी के आतंकी मारे जाए तो भी शक. आज एक बार फिर शक की सियासत बवंडर बनकर देश में फ़ैल रहा है. मामला भोपाल सेंट्रल जेल से फरार सिमी के 8 आतंकियों के एनकाउंटर को लेकर है.कांग्रेस इसे लेकर आक्रामक मुद्रा में है और इस मुद्दे के बहाने भाजपा को कटघरा में खड़ा करना चाहती है. बहरहाल इसी मुद्दे पर आज ज़ी न्यूज़ पर रोहित सरदाना ने ‘ताल ठोक के’ कार्यक्रम में बहस की और कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया. रोहित सरदाना ने ट्वीट करते हुए लिखा कि – “आतंकी भाग जाए तो समस्या,मार दिया जाए तो समस्या,फांसी टांग दिया जाए तो समस्या! बैठा के खिलाते रहो आतंकियों को सब नेता खुश रहते हैं!”
इसी मुद्दे पर और प्रकाश डालते हुए रोहित लिखते हैं –
कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह और उनकी ‘निजी राय’* का समर्थन करने वाले कई लोगों को लगता है कि आतंकी संगठन SIMI के लोगो के एनकाउंटर की जांच होनी चाहिए।यहाँ निजी राय को तारांकित करना इसलिए जरूरी है कि हो सकता है कांग्रेस पार्टी यही कहे कि ये पार्टी की राय नहीं है।
बहरहाल, दिग्विजय सिंह ने बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद भी यही इच्छा जताई थी। जिसे उनके अपने सहयोगी और उस समय के गृह मंत्री पी चिदंबरम ने खारिज कर दिया था।
पी चिदंबरम का अपना कार्यकाल इशरत जहां केस में हलफनामे बदलने को ले कर सवालों के घेरे में है। वोट बैंक की पॉलिटिक्स ही थी, जिसकी वजह से आतंकी इशरत जहां के नाम पर इस देश में एम्बुलेंस तक चल निकली।
मुम्बई हमले के बाद जब भारत सरकार दुनिया भर को पाकिस्तान की कारस्तानी के सुबूत दिखा रही थी, दिग्विजय सिंह 26/11 की साज़िश में आरएसएस का हाथ होने का दावा करने वाली किताब का विमोचन कर रहे थे।
याकूब मेमन को फांसी के बाद दिग्विजय सिंह ने कहा कि “उम्मीद है न्यायपालिका और सरकार,और आतंकी मामलों में भी ऐसी ही ‘जल्दबाज़ी’ दिखाएंगे, उनके धर्म और जाति के बारे में सोचे बगैर।”
जबकि उनकी अपनी सरकार ने अफ़ज़ल गुरु को अचानक एक सुबह फांसी के फंदे पे टांग दिया था।
राजनीति का ये डबल स्टैण्डर्ड क्यों है?
कार्यक्रम का वीडियो –