उत्तर प्रदेश में चाहें मायावती हों या अखिलेश यादव, ये दोनों ही सीएम के रूप में दावे तो बड़े बड़े करते रहे पर यूपी के दंगों पर लगाम लगाने में पूर्णतः विफल ही रहे हैं . इस कड़वी हक़ीक़त का खुलासा सामाजिक संस्था ‘तहरीर’ के संस्थापक ई० संजय शर्मा की एक आरटीआई पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के जन सूचना अधिकारी के० पी० उदय शंकर द्वारा दिए गए एक जबाब से हुआ है .
*’तहरीर’ लोक जीवन में पारदर्शिता संवर्धन, जबाबदेही निर्धारण और आमजन के मानवाधिकारों के संरक्षण के हितार्थ उत्तर प्रदेश में जमीनी स्तर पर कार्यशील संस्था है .
संजय को उपलब्ध कराई गयी सूचना के अनुसार उत्तर प्रदेश में साल 2010 में 4186,साल 2011 में 5022 ,साल 2012 में 5676 और साल 2013 में
दंगों की 6089 घटनाएं सरकारी आंकड़ों में दर्ज हैं . गौरतलब है कि वर्ष 2010 से मार्च 2012 तक सूबे की कमान मायावती के हाथ में थी और मार्च 2012
से वर्ष 2013 तक की अवधि में अखिलेश यादव सूबे के मुखिया रहे हैं .इन आकड़ों से स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में साल 2011 में साल 2010 के मुकाबले दंगों की 836 अधिक घटनाएं (19.97%) हुईं . साल 2012 में साल 2010 के मुकाबले दंगों की 1489 अधिक घटनाएं (35.57%) हुईं तो वही साल 2013 में साल 2010 के मुकाबले दंगों की 1903 अधिक घटनाएं (45%) हुईं हैं .
संजय कहते हैं कि इन आकड़ों के साल-दर-साल विश्लेषण से भी यह स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में साल 2011 में साल 2010 के मुकाबले दंगों की 836
अधिक घटनाएं ( 19.97%) हुईं . साल 2012 में साल 2011 के मुकाबले दंगों की 654 अधिक घटनाएं ( 13.02%) हुईं तो वही साल 2013 में साल
2012 के मुकाबले दंगों की 413 अधिक घटनाएं (6.78%) हुईं हैं जो यह सिद्ध कर रहा है कि साल 2010 से 2013 तक यूपी में लगातार दंगों की घटनाओं
में वृद्धि ही हो रही है और फिर चाहें वह मायावती के नेतृत्व में बनी बहुजन समाज पार्टी की सरकार हो या अखिलेश यादव के नेतृत्व में बनी समाजवादी पार्टी की सरकार, सभी सरकारें दंगे रोकने के मामले में महज कोरी बयानवाजी कर जनता को गुमराह ही करती रही हैं और दंगों को रोकने में पूर्णतया विफल रही हैं .
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