हाल ही में पंजाब के पूर्व डीजीपी जूलियो रिबेरो ने कहा है कि देश के बिगड़ते माहौल से उन्हें डर लगता है.
काफी सम्मानित आईपीएस अधिकारी रहे जूलियो रिबेरो ने एक अखबार में लिखा कि – ‘’ एक वो वक्त था जब 29 साल पहले पंजाब में आतंकवाद से निपटने के लिए एक ईसाई पुलिस अफसर को चुना गया था. पंजाब के उस दौर में हिंदुओं ने मेरा स्वागत किया था. आज मैं 86 साल की उम्र में अपने ही देश में बेगाना, अवांछित और खतरे में पड़ा हुआ महसूस कर रहा हूं…वही लोग जो मुझ पर भरोसा करते थे, आज दूसरे धर्म को मानने की वजह से मुझे निशाना बनाने को तैयार हैं. कम से कम हिंदू राष्ट्र के समर्थकों की नज़र में मैं अब एक भारतीय नहीं हूं. पिछले साल मई में नरेंद्र मोदी की बीजेपी सरकार बनने के बाद से जिस तरह सिलसिलेवार तरीके से एक छोटे और शांतिप्रिय समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है, क्या वो सिर्फ संयोग है या कोई सोची समझी साजिश?. ये बेहद दुख की बात है कि नफरत और अविश्वास के माहौल में इन चरमपंथी ताकतों के हौसले हद से ज्यादा बढ़ गए हैं ‘’
जूलियो रिबौरो का यह बयान कुछ समय पूर्व कुछ गिरिजाघरों पर हुए हमलों और पश्चिमी बंगाल में नन के साथ हुए सामुहिक गैंगरेप के परिपेक्ष्य में सामने आया है. गिरिजाघरों पर हुए इन हमलों से ईसाई समुदाय हताशा में है और उसका मानना है कि मोदी सरकार इसके खिलाफ कुछ ठोस कदम नहीं उठा रही है. लेकिन जूलियो रिबैरो साहब जैसे जिम्मदार अधिकारी की तरफ से इस तरह का बयान निश्चित रुप से चौंकाने वाला है. क्यों कि जहां तक मैं समझता हूं. किसी भी धर्म पर आस्था रखने वालों पर किसी भी तरह का आतंक और हमला, न केवल भारत की विविधरंगी संस्कृति पर हमला है बल्कि इससे हमारी धार्मिक सहिष्णुता को भी गहरा आघात पहुंचता है.
भारत बहुरंगी संस्कृतियों का देश है जहां हर धर्म और संप्रदाय सैकड़ों सालों से अपने अपने ढंग से पल्लवित और पुष्पित होते आए हैं. लेकिन चर्च पर हुए हमलों को अगर राजनीतिक दृष्टिकोण से देखने की कोशिश की जाएगी तो दिक्कत होगी क्यों कि हमले केवल चर्च पर ही नहीं बल्कि दो सौ मंदिरों पर भी हुए हैं, हां ये एक अलग बात है कि वो खबरों की सुर्खियां नहीं बन सके. यहां सवाल बड़ा है. क्या रिबेरो साहब वाकई में असुरक्षित हैं? क्या वो सच बोल रहे हैं. क्या नरेंद्र मोदी की सरकार केंद्र में बनने के बाद ही चर्चों और ईसाईयों पर हमलों की घटनाएं बढ़ गई हैं. मेरे ख्याल से अगर हम पीछे देखें तो पाएंगे कि कैसे पांच लाख कश्मीरी हिंदू घर से बेइज्जत करके निकाले गए. उनकी औरतों पर अंतहीन पाशविक अत्याचार हुए. कितने हिंदू अमेरिका और ब्रिटेन से मदद मांगने गए या भारत में असुरक्षित होने का बयान दिया? उस समय तो नरेंद्र मोदी या भाजपा की सरकार सत्ता में नहीं थी. फिर रिबैरो साहब का ये बयान देना कि दूसरा धर्म मानने की वजह से वो आज खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं ये एक गंभीर आरोप है.
मात्र कुछ धार्मिक रुप से अधकचरी सोच और कट्टरपंथी विचारधाराओं वाले पथभ्रष्ट लोगों द्वारा किए गए अनैतिक कृत्य के लिए पूरी हिंदु संस्कृति को दोषी ठहरा देना और इस मसले पर ऐसा गंभीर आरोप सरकार पर मढ़ देना मेरे ख्याल से उचित नहीं है. जहां तक मैं समझ पाया हूं ये वो ही देश है जिसमें उन्हें इतनी इज्जत, शोहरत के साथ इतनी बड़ी जिम्मेदारी निभाने में सहयोग मिला है. और जहां खुद देश के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश के अल्पसंख्यक समुदाय को एक बार नहीं कई बार भरोसा दिलाया है कि उनकी सरकार किसी भी समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता पर किसी भी तरह का हमला बर्दाश्त नहीं करेगी, मुझे लगता है कि रिबैरो साहब को उन पर अविश्वास का कोई कारण नहीं है, उन्हें अपने प्रधानमंत्री पर कुछ तो भरोसा रखना ही चाहिए.
मिशनरियों और मंदिरों पर हमले क्या हमारे देश में पहले नहीं हुए हैं. हमें दूर जाने की जरुरत नहीं बल्कि पिछले कुछ सालों में इस देश में चर्चों से ज्यादा मात्रा में मंदिर टूटे हैं, ईसाई हों या फिर मुसलमान या फिर हिंदु सब कहीं न कहीं इस सांप्रदायिकता के शिकार हुए हैं और भारी मात्रा में नुकसान झेला है. लेकिन इस तरह से मुखर होकर सरकार को अक्षम करार कभी नहीं दिया गया. क्या ऐसा केवल इसलिए है कि केंद्र में भाजपा की सरकार है और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नरेंद्र मोदी विराजमान हैं. ये कहां का न्याय है ? मैं यहां गृहमंत्री राजनाथ सिंह के उस बयान का भी जिक्र करना चाहूंगा जिसमें उन्होंने कहा है कि इस बात पर बहस होनी चाहिए कि क्या भारत में धर्मांतरण का सहारा लिए बिना समाजसेवा नहीं की जा सकती है? मेरे ख्याल से उनका ये कहना एक बहस को जरुर जन्म देता है कि आखिर समाजसेवा के नाम पर कुछ लोग अपने एजेंडे को साधने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं? ये कहां कि समाजसेवा है कि आप किसी गरीब की मदद के नाम पर उसका धर्मपरिवर्तन जैसी बड़ी साजिश को अंजाम दें. धार्मिक सहिष्णुता हमेशा से ही हमारे देश का आभूषण है और हम सब नागरिकों को अपनी अपनी तुच्छ भावनाओं से ऊपर उठकर सर्वप्रथम राष्ट्र के बारे में सोचना चाहिए और सभी धर्मों के प्रति आदरभाव रखना चाहिए और समेकित रुप से किसी भी धर्म और संप्रदाय पर किसी तरह के हमले का मिलकर मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए. सरकार की जिम्मेदारी ला एंड ऑर्डर सम्हालने की है. लेकिन हम नागरिकों को भी एक दूसरे की भावनाओं का आदर करना होगा जैसा कि इस देश में हजारों सालों से चलता आया है और हिंदु संस्कृति ने सभी दूसरे संप्रदायों का खुले दिल से स्वागत किया है, अपनाया है तभी जाकर आज इस सवा अरब की आबादी में अलग अलग धर्म और संप्रदाय अपनी विविधरंगी छटा बिखेर रहे हैं. हाल में जो भी घटनाएं हुईँ हों चाहे वो ईसाईयो पर हों, मुसलमानों पर हों या फिर हिंदुओँ पर. सबकी एक स्वर से निन्दा होनी चाहिए न कि बयानबाजी करके तनाव को और बढाने का काम किया जाए. क्यों कि रिबैरो साहब जैसे जिम्मेदार लोग केवल अपने संप्रदाय पर हुए छिटपुट हमलों से आहत होकर अगर ऐसा बयान जारी करते रहे तो वे देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा होगा..