‘रवीश की रिपोर्ट’ बंद हुई तो सोशल मीडिया में जमकर स्यापा हुआ. एनडीटीवी को जमकर कोसा गया. एनडीटीवी ने काम भी ऐसा ही किया था.
टीआरपी और बाज़ार में रवीश की रिपोर्ट का हाल जरूर बेहाल था, लेकिन कार्यक्रम दर्शकों के दिल के बहुत करीब था. इसीलिए कार्यक्रम बंद होने के बहुत दिनों बाद तक चैनल कार्यक्रम का इस्तेमाल प्रोमो और अपनी ब्रांडिंग के लिए करता रहा.
ख़ैर रवीश की रिपोर्ट बंद होने के बाद रवीश न्यूज़रूम में कैद हो गए. अब रिपोर्टर की जगह एंकर रवीश का उदय हुआ. ये एंकर के रूप में उनकी दूसरी पारी थी और एंकर रवीश को देखते ही रिपोर्टर रवीश नज़र के सामने से गुजर जाता था. यही वजह रही कि एंकरिंग की अपनी पहली पारी में वे रंग जमा नहीं सके और एक औसत एंकर के रूप में ही जाने गए जो प्रोड्यूसरों द्वारा तैयार बुलेटिन को पढता है. इसलिए वे रिपोर्टिंग की तरह एंकरिंग में कोई छाप नहीं छोड़ सके.
एंकरिंग में उनकी दूसरी पारी इस लिहाज से उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं थी. लेकिन इस बार वे तैयारी के साथ आए थे. फिर पंकज पचौरी के पीएम के मीडिया सलाहकार बनकर चले जाने से रवीश के पास मौके भी काफी थे और एनडीटीवी उनको लेकर प्राइम टाइम में दांव भी खेलने के लिए तैयार था.
यूँ रवीश का ‘प्राइम टाइम’ का सफर शुरू हुआ और देखते – ही – देखते शो भी जम गया और साथ ही प्राइम टाइम के एंकर के रूप में रवीश कुमार का उदय हुआ.
रवीश ने बड़ी चतुराई से प्राइम टाइम बुलेटिन को बहस के अखाड़े के रूप में तब्दील किया और धीरे – धीरे करके ये अखाड़ा बुद्धिजीवियों के अलावा आम दर्शकों को भी रुचिकर लगने लगा. इसमें रवीश कुमार का खास ठेठपन भरा अंदाज़ भी खूब काम आया.
डांटते,डपटते, लुलयाते और कभी हामी भरते रवीश कुमार का मौलिक अंदाज़ दर्शकों को खूब भाता है और रिपोर्टर की छवि से अलग एक बहसबाज धाँसू एंकर के रूप में स्थापित करता है.