रवीश कुमार टीवी पर भात-भुजिया खाने से कोई गरीबों का मसीहा नहीं बन जाता
ओम प्रकाश
चीन के सामान का बहिष्कार करने की मुहिम अभी ठीक से शुरू भी नहीं हुई कि रवीश कुमार ने लेख लिखकर उसपर गरीबी का खूँटा गाड़ दिया। वकालत कर दी कि इस दिवाली चीन का माल ज़रूर ख़रीदें क्योंकि उन्हें उन गरीबों की चिंता है जो दीवाली के लिए चीन के बने सामान खरीद कर अपने शहर – कस्बों में वापस जा चुके हैं.लेकिन उनका लेख पढकर प्रतीत होता है कि गरीबों से ज्यादा उन्हें चीन की चिंता है और उसकी चिंता में दूसरे वामपंथियों की तरह वे भी घुले जा रहे हैं. दूसरी तरफ उनका विरोध इसलिए भी है क्योंकि मोदी समर्थक भी चीन की चीजों के बहिष्कार में शामिल है. अपने ब्लॉग में इस संदर्भ में पहली लाइन में ही अपनी मंशा प्रकट करते हुए वे लिखते हैं –
“रेहड़ी पटरी पर बैठ कर सस्ता माल बेचने वालों ध्यान से सुनो।मुझे पता है आपके पास ख़बरों का कूड़ेदान यानी अख़बार पढ़ने और चैनल देखने का वक्त नहीं है।जिनके पास फेसबुक और ट्वीटर पर उल्टियाँ करने का वक्त हैं वो आपके माल की जात पता करना चाहते हैं।ज़ोर शोर से अभियान चला रहे हैं कि इस दिवाली चीन का माल नहीं ख़रीदेंगे।पाकिस्तान का साथी चीन को सबक सीखाने के लिए इन लोगों ने आपके पेट पर लात मारने की योजना बनाई है।थोक बाज़ार से अपना माल खरीद कर आप अपने अपने ज़िलों और क़स्बों की तरफ निकल चुके होंगे। चीन का माल आपकी गठरी में आ गया होगा कि इस दिवाली कुछ कमाकर बच्चों के नए कपड़े बनवायेंगे। बच्चों की फीस भरेंगे। फर्ज़ी राष्ट्रवादियों की नज़र आपकी कमाई ख़त्म करने पर है।“
लेकिन रवीश कुमार ये नहीं जानते कि आप जिन रेहड़ी – पटरी वालों की बात कर रहे हैं वो आपका ब्लॉग नहीं पढ़ते.उनके साथ भात-भुजिया खाने के टीवी प्रदर्शन से आप उनके मसीहा नहीं हो गए. टीवी पर बैठकर आपके प्राइम टाइम भाषणों से आजतक किसी गरीब का भला नहीं हुआ. हाँ आपकी ब्रांडिंग में चार चाँद जरूर लग गए.
बहरहाल रवीश कुमार जिन तर्कों का सहारा लेकर चीन के सामान को खरीदने की गुहार कर रहे हैं उस हिसाब से तो आप चीन के सामान का अनंत काल तक बहिष्कार नहीं कर सकते.क्योंकि हर बार चीन से सामान सदर बाजार पहुंचेगा और वहाँ से गाँव कस्बे में और फिर रवीश कुमार गरीबों को लेकर अपनी ब्रांडिंग चमकाने बैठ जाएंगे. तो फिर कब होगा बहिष्कार? ऐसे तो मामला कभी नहीं ठीक होगा और चीन का भारतीय बाज़ार पर एकाधिकार बढ़ता ही जाएगा। ये मुश्किल काम जरूर है. लेकिन इससे कम-से-कम चीन कुछ दबाव में तो आएगा क्योंकि उसके आर्थिक हित भारत में निहित है.और कुछ नहीं तो कम से कम खुलकर पाकिस्तान का साथ देने से गुरेज तो करेगा.ग्लोबलाइजेशन के ज़माने में विश्व समुदाय के साथ बिजनेस के अनुबंधों से जुड़े हैं तो देश की सरकार चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती. मसलन चीन या दूसरे देशों के अपने देश में व्यापार को नहीं रोक सकती. लेकिन उपभोक्ता चाहे तो कर सकता है और उसी को लेकर भारत में सुगबुगाहट शुरू हुई जो रवीश कुमार जैसे बुद्धिजीवियों को भी नहीं पच रहा.
वर्तमान सच्चाई ये है कि चीन हमारे ही पैसों से पाकिस्तान के आतंकवाद को शह दे रहा है. वीटो पावर का इस्तेमाल कर अजहर मसूद को बचा रहा है और हम या हमारी सरकार कुछ नहीं कर पा रहे. ऐसे में यदि देश के आम नागरिक चीन में बनी चीजों का बहिष्कार अपने स्तर पर करना चाहते हैं तो रवीश जैसों को आपत्ति क्यों? क्या इससे आपकी फंडिंग पर कोई असर पड़ता है क्या? और जहाँ तक बहिष्कार का सवाल है तो ये बहिष्कार देश से ज्यादा विदेशों में हो रहा है तो क्या रवीश कुमार उन तमाम अप्रवासी भारतीय को भी फर्जी राष्ट्रप्रेमी और मोदी भक्त करार देंगे.
दरअसल रवीश की दिक्कत है कि प्रतिभाशाली पत्रकार होने के बावजूद अब वे एक चश्मे से तमाम चीजों को देखने के आदि हो गए हैं और इस चश्में का रंग वामपंथ ने काला कर दिया है जिससे रवीश को पूरी दुनिया ही काली दिखाई देती है और इसलिए कभी-कभी वे स्क्रीन भी काला कर देते हैं.फिर इकोनोमिकल मॉडल भी तो कोई चीज होती है और उस मॉडल में चीन,पाकिस्तान और कश्मीर तो टॉप प्रायोरिटी में है ही. वैसे भी वामपंथियों का ‘चीनी’ प्रेम जगजाहिर है.लेकिन ज्यादा चीनी सीधे-सीधे डायबिटीज को न्योता देना है.
बहरहाल रवीश कुमार इस दीवाली मुबारक हो आपको चीन और चीनी सामान.संभव हो तो चाइनीज भी सीख लें.एंकरिंग में बहुत स्कोप है. वहां के मजदूरों की दमन कथा कभी प्राइम टाइम में सुनाईयेगा जरूर. शिगूफा छोड़ने में आपका भी जबाव नहीं.
(लेखक कॉपोरेट वर्ल्ड में काम करते हैं और रवीश कुमार के बड़े प्रशंसक हैं)
रवीश का उनके ब्लॉग पर प्रकाशित लेख – इस दिवाली चीन का माल ज़रूर ख़रीदें
रवीश कुमार October 03, 2016 21 Comments
रेहड़ी पटरी पर बैठ कर सस्ता माल बेचने वालों
ध्यान से सुनो।मुझे पता है आपके पास ख़बरों का कूड़ेदान यानी अख़बार पढ़ने और चैनल देखने का वक्त नहीं है।जिनके पास फेसबुक और ट्वीटर पर उल्टियाँ करने का वक्त हैं वो आपके माल की जात पता करना चाहते हैं।ज़ोर शोर से अभियान चला रहे हैं कि इस दिवाली चीन का माल नहीं ख़रीदेंगे।पाकिस्तान का साथी चीन को सबक सीखाने के लिए इन लोगों ने आपके पेट पर लात मारने की योजना बनाई है।
थोक बाज़ार से अपना माल खरीद कर आप अपने अपने ज़िलों और क़स्बों की तरफ निकल चुके होंगे। चीन का माल आपकी गठरी में आ गया होगा कि इस दिवाली कुछ कमाकर बच्चों के नए कपड़े बनवायेंगे। बच्चों की फीस भरेंगे। फर्ज़ी राष्ट्रवादियों की नज़र आपकी कमाई ख़त्म करने पर है। ये लोग नुक्कड़ पर बैठी उस महिला की कमाई पर नज़र गड़ाए बैठें जो हज़ार दो हज़ार की लड़ियाँ फुलझड़ियाँ बेचकर अपने नाती-पोतों के लिए कुछ कमाना चाहती है।
चीन का माल नहीं ख़रीदना है तो इन्हें भारत सरकार पर दबाव डालना चाहिए कि वह चीन से आयात पर प्रतिबंध लगा दे। भारत में काम कर रही चीन कंपनियों को भगा दे। कारोबारियों का गला पकड़े कि वे चीन का माल न लायें।अरबों रुपये उनके भी दाँव पर लग गए हैं मगर वे तो छोटे दुकानदारों को बेच कर निकल चुके हैं। फिर जो माल बचा है उसे मंडी में जला कर दिखा सकते हैं कि वो राष्ट्रवाद के आगे पैसे की परवाह नहीं करते। क्या ऐसा होगा? कभी नहीं होगा लेकिन मोहल्ले में जो आपने ‘पुलिस को कुछ ले देकर’ पटरियाँ लगाई हैं कि इस दिवाली कुछ कमायेंगे,उन पर इन लोगों की नज़र है।
चीन के ख़िलाफ़ अभियान ही चलाना है तो यह भी चले कि किस किस कंपनी का निवेश चीन में है।पूरी लिस्ट आए कि इनका माल नहीं ख़रीदेंगे और ख़रीद लिया है तो उसे कूड़ेदान में फेंक देंगे।उन कंपनियों से कहा जाए कि अपना निवेश वापस लायें ।अपने माल का आर्डर कैंसल करें।भारत में जहाँ जहाँ चीन है उसे खदेड़ देना चाहिए।सरकार से बयान दिलवाना चाहिए कि वे चीन के माल का बहिष्कार कर रहे हैं इसलिए कंपनियाँ वहाँ के लोगों से कारोबार न करें। वहाँ से माल लाकर यहाँ के लोगों को न बेचें।
क्या ऐसा होगा? राष्ट्रवाद के नाम पर सिर्फ ग़रीब को ही जान और माल का इम्तहान क्यों देना पड़ता है? आपने जो माल ख़रीदा है वो बेशक चीन का होगा लेकिन पैसा तो आपका है। उस माल का मालिकाना हक़ आपका है। अगर इन फेसबुकिये राष्ट्रवादियों को चीनी माल से इतनी नफरत है तो ये अपने घरों से पहले से ख़रीदे गए चीन माल बाहर निकालें और उनकी होलिका जला दें।अपना स्मार्ट फोन क्यों नहीं शहर के मुख्य चौराहे पर फेंक देते हैं?सिर्फ दिवाली के वक्त ग़रीब दुकानदारों के ख़िलाफ़ ये साज़िश क्यों हो रही है?ये राष्ट्रवाद नहीं है बल्कि पूरी योजना है कि कैसे इसी के नाम पर ग़रीबों के सवाल को ग़ायब कर दिया जाए। ग़रीब को ही ग़ायब कर दिया जाए।
अगर चीन के माल का विरोध करना ही है तो ऐसा करने जा रहे उन लोगों से गुज़ारिश है कि चीन माल बेच रहे दुकानदारों को घाटा न होने दें।उनसे माल ख़रीदें और फिर होलिका जला दें।जिन लोगों से आप माल लेकर आये हैं,उनका तो काम हो गया है।उन्हें तो पैसा मिल गया है। राष्ट्रवाद के नाम पर अपनी हर कमियों को ढँकने वाले ये लोग कैसे आपकी पेट पर लात मार सकते हैं? सरकार ने चीन से कारोबार करने के लिए बहुत सी नीतियाँ बनाई होंगी। क्या वे सब भी रद्द की जा रही हैं?
सावधान रहियेगा। चीन के नाम पर आपका घर जलाया जा रहा है। अमरीका ने जापान के दो शहरों पर परमाणु बम गिरा कर लाखों लोगों को मार दिया था। वही जापान आज अमरीका को ट्योटा कार बेच रहा है। पाकिस्तान से अभी तक बाकी कारोबार चल ही रहा है। उसके रद्द होने का औपचारिक एलान नहीं हुआ है तो चीन के माल के बहिष्कार क्यों हो रहा है?
इसलिए जो ग़रीब हैं वो यह समझें कि कुछ लोग राष्ट्रवाद के नाम पर वीडियो गेम खेल रहे हैं।आपकी आवाज़ वैसे ही मीडिया से बेदख़ल कर दी गई है।अब आपको पटरी से भी ग़ायब करने के लिए कभी चीन तो कभी पाकिस्तान के माल के विरोध का शिगूफ़ा छोड़ा जा रहा है।
आपका
रवीश कुमार