दिलीप खान
रवीश की आज़मगढ़ वाली एक रिपोर्ट में गांव की महिला कहती है कि वो वोट उसी को देंगी जो उनकी समस्या दूर कर दे। पूछा गया कि समस्या क्या है? महिला का जवाब था कि उनके पास गोबर पाथने के लिए जगह नहीं है। रवीश की अगली लाइन थी कि गोबर पाथने को तो किसी भी पार्टी ने मेनीफेस्टो में रखा ही नहीं। रिपोर्ट का ये हिस्सा मुझे भीतर तक चीर गया। बताइए, एक देश में लोगों की आकांक्षाएं कितनी छोटी, कितनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों से जूझती हुई-सी है और राजनीतिक पार्टियां हवाबाज़ी में कहां-कहां और कैसे-कैसे कैंपेन में जुटी हैं।
स्रोत-एफबी