अर्णब से सब डरते हैं
एक क्रोध सड़क पर बिखरता रहा। दूसरा क्रोध चैनल पर दिखता रहा। तीसरा क्रोध पहले और दूसरे क्रोध की व्याख्या करता रहा। तिहरे क्रोध का निर्माण तीस चैनलों पर तीस हजार गुना हुआ।
चैनल दृश्य से एक क्षण को दूर नहीं रहना चाहते। जिंदगी और मौत के बीच जूझती बलात्कृता को जिस गाड़ी से सिंगापुर ले जाया जा रहा था उसके पीछे के शीशों से चिपके दो कैमरे अंदर के दृश्य को कवर करने की जिद ठाने थे। दरिंदगी की शिकार लड़की की निजता चैनलों के लिए कोई मानी नहीं रखती। ब्रोडकास्टिंग संपादकों की संस्था की ओर से लड़की की निजता की रक्षा की बात शायद वह जरूरी हस्तक्षेप था जो उसने किया वर्ना कैमरे तो किसी की नहीं मानते।
इसके बाद विरोध प्रदर्शनों के कमतर होने की खबर आने लगी। साथ ही बाड़मेर, मुजफ्फरपुरनगर नगर से रेप की दूसरी खबरें दी जाने लगीं। रेप सबसे बड़ी खबर बनती रही।
चैनलों की भाषा में स्त्रीत्ववादी विमर्श की पदावली ने जगह बनानी शुरू कर दी। सीएनएन-आइबीएन पर लड़की को ‘रेप सर्वाइवर’ कहा जाने लगा जबकि टाइम्स नाउ ‘विक्टिम’ ही कहता रहा।
स्त्रीत्ववादी भाषा के बरक्स ही वह मर्दवादी भाषा समझी जा सकती थी जिसे कई नेताओं ने बोला जिसे चैनलों ने निंदात्मक स्वरों में ही पेश किया। अपने चैनेलों के इस नए उपलब्ध स्त्रीत्ववाद के लिए शाबाशी!
सीपीएम के अनीसुर्रहमान, कांग्रेस के अभिजीत मुखर्जी गजब के पुल्लिंगवादी भाषा बोलते नजर आए। यहां तक कि टीएमसी की काकोली जी ने भी ऐसी भाषा ही बोली।
‘पॉलिटीकली करेक्ट बोलो’ के दिनों में भी कुछ नेता इनकरेक्ट बोलने के आदी हैं! वे टीवी से भी नहीं डरते। अभिजीत मुखर्जी की स्थिति ने सबको चौंकाया। उनके ‘डेंटेड पेंटेड औरतों’ वाला वाक्य बार-बार निंदित हुआ लेकिन वाह रे मुखर्जी साहब आप धन्य कि आपने इतने विकट हमले में भी आपत्तिजनक वाक्य सशर्त वापस लिए, लेकिन चैनलों के आग्रह पर माफी न मांगी।
चैनलों की मासूमियत देखिए कि वे जब अभिजीत नाम ‘राष्ट्रपति के बेटे’ के रूप में लेते। अरे भई, राष्ट्रपति का उनके कहे से क्या लेना देना? या शायद पुल्लिंगी भाषा के प्रतिरोध में जीनियोलॉजी तक सक्रिय कर दी गई!
दो दिन तक नए अपराधी और नए वकील सामने रहे। अनीसुर्रहमान के ममता संबंधी वाक्यों के लिए किसी ने सीपीएम के नेताओं से सवाल नहीं किया। उधर हठीले अभिजीत टाइम्स नाउ पर अपनी बात जम कर बचाते रहे जबकि उनकी बहन ने उनके लिए माफी मांगी। लेकिन ममता जी की पक्षधर काकोली के पक्ष में शुभुजी ने एंकर की खटिया खड़ी की।
बहुत बाद में सुहेल सेठ ने मीडिया के पाखंड पर उंगली रखी। राजदीप के सवाल के जवाब में वे बोले कि पुल्लिंगी मानसिकता बनाने के सबसे बड़े अपराधी तो मीडिया के विज्ञापन हैं जो औरतों का अपमान करते हैं नीचा दिखाते हैं और मीडिया जो सबसे बडा मोरल व्याख्याकार बना हुआ है वह उनसे इसलिए कुछ नहीं कहता क्यों उसकी रोटी रोजी विज्ञापनों से चलती है।
बात सौ फीसद सही लगी। राजदीप के पास कोई जवाब नहीं था। इसी तरह की प्रतिक्रिया तब होनी चाहिए थी जब सोनी पर आने वाले बिग-बॉस में सब लड़कियों ने एक लड़के को लेकर दबंग का फूहड़ आइटम गीत गाया।
सामूहिक बलात्कार की प्रतिक्रिया में हुए विरोध प्रदर्शन भले ही क्षीण हुए, लेकिन चैनलों ने स्त्रीपक्षी विचार लगातार जारी रखे, और इन्हीं विचारों के बीच दबंग के गाने आए। आप भी कुफ्र करते हैं जनाब मीडिया से ऐसे सवाल कतई न पूछें। उसकी भाषा तो इनदिनों स्त्रीशिष्ट है। सेक्सिस्ट कहां?
एक चैनल पर लेकिन उसी तेज सेक्सी खुशबू वाले केश जैल का विज्ञापन आया जिसे नायक ने सिर में लगाया ही था कि उसकी सेक्सी खुशबू से लहराती हुई कई गोरी लड़कियां निकल पडीं। हाय कितना सेट कितना वेट! कितना शिष्ट! कितनी जेंडर सेंसिटिव पिक्चरें रहीं उस विज्ञापन की जो स्त्रीत्ववादी चर्चा के बीच आया।
लेकिन खामोश मीडिया की कंगारू अदालत जारी है। यहां सब अपराधी हैं सिवाय मीडिया के। अर्णव, अनीसुर्रहमान के महावाक्यों को लकर डी राजा पर पिल पड़े तो डी राजा ने कहा कि मैं निंदा करता हूं लेकिन वे मेरी पार्टी के नहीं हैं। लेकिन एंकर को कहां शांति! इसी वक्त निकालिए उन्हें लेμट फ्रेंट से! एंकर ऐसा आग्रह करता ही रहा।
एक एक्टिविस्ट लाई गई काला चश्मा पहने थी। बोलने से पहले ही कहा कि मेरी आंखों में तकलीफ है लेकिन समाज में हिंसक प्रवृत्ति की निंदा करती हूं। दूसरे की तकलीफ में जो साथ दे वही साथी है।
अर्णवजी से सब डरते है। वे सब लक्षित नेताओं को आवाज देकर बुलाते रहते हैं लेकिन उनका आग्रह कोई नेता नहीं मानता। वे लाख कहें कि नेताओं को सामने आना चाहिए बात करनी चाहिए लेकिन नेता लोग नहीं आते। इसके नतीजे में वे उनकी निंदा के पात्र बनते हैं। अरे भाई नेताजी मान भी जाया कीजिए। इतने आदर और प्यार से आपको कौन बुलाता है?
चैनल ने लिखकर बताया: इस
देश का युवा महिलाओं के प्रति अपराधों के विरोध में जग गया है। शाजिया इल्मीजी बोलीं कि यह नंबर वन की हेडलाइन है। नेशनल डिस्कोर्स बन गया है। किरन बेदी ने कहा कि निर्भयता की लडाई है: मैं भी निर्भय तू भी निर्भय सारा देश हो निर्भय!
हिंदी के चैनल बलात्कार पीड़िता को दामिनी कहने लगे। टाइम्स नाउ निर्भया कहने लगा। हिंदी में निर्भय। अंग्रेजी में निर्भाया!
जंतर-मंतर पर आंदोलन। शीला दीक्षित आती हैं तो उन्हें हूट कर दिया जाता है बमुश्किल तमाम लौटती हैं। अर्णव ने बताया कि यह आंदोलन की निर्दलीय मिजाजी है। बीच- बीच में सीपीआई के झंडे क्यों नजर आए एक दृश्य में? भीड़ में योगेंद्र यादव भी दिखे। कैमरा दिखाता है। उधर केजरीवाल अपने साथियों के साथ बैठे हैं चुप ! बताया गया कि वे आम आदमी की तरह आए हैं। कैमरा ऊपर से दिखाता है।
अंग्रेजी के एक चैनल में इसे ‘काला शनिवार’ कहा गया। चैनल कहता रहा कि जो लोग पार्टियों के झंडे के लिए हैं वे इसे राजनीतिक रंग दे रहे हैं । ये लोग पहले दिन कहां थे?
बलात्कृता की मृत्यु पर राष्टपति का शोक संदेश आया है। सीएनएन-आइबीएन कहता है ‘नेशन मोर्न्स बे्रवहार्ट।’ उस बहादुर के प्रति देश राष्ट्र शोकमग्न है!
एंकर युवाओं में कुछ से पूछती है कि शीलाजी आर्इं तो आपकी प्रतिक्रिया? वह कहता है- पहले आप कहते थे नेता नहीं आते जब आते हैं तो आप आने नहीं देते!
अजीब बात है। टाइम्स नाउ के अर्णव कहते हैं कि यह आंदोलन कहीं गायब नहीं होने जारहा यानी यहीं रहना है। चैनल सही आवाहनों की तलाश में है: एक कहता है परिवर्तन जरूरी है, एक कहता है एजंडा फार चेंज है। परिवर्तन जारी है। टाइम्स कहता है एक्शन का वक्त है। संसद सत्र तुरत हो। सख्त से सख्त कानून बने। विनोद मेहता कहते हैं कि दो तीन मुद्दों पर विचार हो। लेकिन होगा नहीं। नेता एक दूसरे को नीचा दिखाते रहेंगे। सीएनएन-आईबीएन सुझाव की लाइन लगाता है: अधिक अदालतें अधिक जज। आईबीएन सेविन बताता है कि नया साल तभी होगा जब उन्हें फांसी मिले। एबीपी चैनल लाइन देता है: देश का गुस्सा बेकार नहीं जाएगा। ‘वे दरिंदे उतना ही कष्ट पाएं जितना कि उस लडकी ने पाया।’ ‘नहीं फांसी से कम कुछ नहीं रासायनिक नामर्द बनाना बेकार है। दवा बंद करते ही वह फिर वैसा ही बन जाता है।’
‘बलात्कार किसी भी चीज के जरिए किया जा सकता है। लेकिन फांसी की बात गलत है, ऐसी सजा जरूर मिले जो सबके लिए सबक हो।’ ‘अगर फांसी की सजा देंगे तो आगे हर बलात्कारी सबूत ही मिटा देगा, लड़की को मार डालेगा। बहस फंसी नजर आती है।’ अब रैपर यो यो हनी सिंह का ‘मैं हूँ बलात्कारी’ गाना सामने है। सब निंदा करते हैं। लेकिन चर्चा बंद करने से पहले आप हाथरस की वह क्लिपिंग देखें। अर्णव आगे करते हैं। बीस सेकेंड की है। थानेदार मौज में है हंसते हुए एफआईआर दर्ज करने से मना करता है लेकिन जब पता चलता है कि मर गई तो कहने लगता है एफआईआर करता हूं। अरे भई यही यथार्थ है। क्रोध की जगह धीरज से मानसिकता बदलने का काम करिये.
(जनसत्ता के अजदक कॉलम (6 जनवरी) से साभार)