अपने मीडिया साथियों को रामनाथ गोयनका सम्मान मिलने से जितना खुश हूं, इसके सम्मान समारोह की कवरेज को लेकर आज के द इंडियन एक्सप्रेस को लेकर उतना ही दुखी हूं. सिर्फ तीन पत्रकारों के बारे में चर्चा करके अखबार ने बाकी किसी की भी स्टोरी और उनके काम की चर्चा नहीं की. आगे पेज नं 7 पर बस सभी सम्मानित पत्रकारों की लिस्ट लगा दी है जिनमे से कई की स्टोरी के शीर्षक तक नहीं है.
क्या फिल्मफेयर, कार्पोरेट ऑफ द इयर या दूसरे ऐसे किसी अवार्ड की कवरेज अखबार इसी तरह से करता है क्या ? इनमे से कई ऐसे लोग हैं, खासकर प्रिंट के जिन्हें हम नाम और उनकी स्टोरी से भले ही जान लें खासकर प्रिंट के लेकिन तस्वीर में वो कौन हैं, नहीं जान सकते. ऐसे में अखबार का ये काम नहीं था कि वो बीए थर्ड इयर के पासआउट छात्रों की तरह बिना नाम डाले तस्वीर छापने के बजाय सबों के नाम भी प्रकाशित करता. बेहतर तो तब और होता जब सबों की पासपोर्ट साइज तस्वीर होती और उन पर कम से कम सौ-पचास शब्दों में परिचय होता.
आपको नहीं लगता कि अखबार जब खुद इस सम्मान को इतना हल्के में( कवरेज) में लेता है तो फिर बाकी के लोग कैसे उसके बारे में, सम्मानित पत्रकारों के बारे में जान सकेंगे. टीवी चैनल के लोग तो फिर भी अपने पत्रकारों की स्टोरी चला लेंगे, अखबार शायद अपने पत्रकारों की अलग से तस्वीर और प्रोफाइल छापे लेकिन जो इनदोनों में से कहीं नहीं हैं, उनके बारे में जानने का औऱ क्या जरिया है, जवाब है अखबार के पास ?
पत्रकारों और उनकी स्टोरी को दस लाइन में निबटाकर बाकी पूरी रिपोर्ट नेताओं,राजनीतिकों की मौजूदगी पर लाकर टिका देना,सही है ? क्या ऐसा संभव नहीं है कि इस दिन द इंडियन एक्सप्रेस अलग से सप्लीमेंट निकाले और सम्मानित सारे पत्रकारों की तस्वीर और संबंधित स्टोरी का संक्षेप प्रकाशित करे.
सम्मानित पत्रकारों के बारे में जानना, उनके काम को जानना दरअसल पत्रकारिता के इतिहास और विकासक्रम को भी जानना है. लेकिन नहीं, यहां पत्रकारिता सेकेण्डरी है, पत्रकार भी सेकण्डरी ही है, प्राइम है तो बस इसके जरिए खुद को एन्डोर्स करते रहने की कवायद और एक लीडिंग न्यूजपेपर में इस समारोह के दौरान होनेवाली परिचर्चा के विषय को लेकर आप और हम जैसे लोग तो और आशंकित होंगे- who’s afraid of social media ?
(विनीत कुमार के एफबी वॉल से)