कवि, कथाकार और ’शब्द कारखाना’ पत्रिका के सिद्ध संपादक रमेश नीलकमल के निधन से मर्माहत हूँ..। बिहार में समकालीन लेखन के प्रति उनके योगदान को भूलाया नहीं जा सकता। उन्होंने कई कवि व कथाकारों पहचान दी। उनकी पत्रिका ’शब्द कारखाना’ के 27 वें अंक, जो जर्मन साहित्य पर केन्द्रित था का संयोजन करने का अवसर मुझे मिला था। ग्युंटर ग्रास पर मेरे एक आलेख की उन्होंने बेहद सराहना की थी, जब अगले वर्ष ग्रास को साहित्य का नावेल पुरस्कार मिला था..।
रमेश नीलकमल हिन्दी, अंग्रेजी, मगही व भोजपुरी में अपनी रचनात्मक्ता की छाप छोड़ चुके हैं। उनका जन्म- 21 नवम्बर 1937 को बिहार, पटना, मोकामा के ‘रामपुर डुमरा’ गाँव में हुआ था। उन्होंने कोलकाता में बी.ए., फिर पटना से बी.एल. एवं प्रयाग से साहित्य-विशारद की थी तथा सेवानिवृत्त ‘कारखाना लेखा अधिकारी’ पद से की। उनकी 10 काव्य कृति, 4 कहानी संग्रह, 5 समीक्षा, 2 रम्य-रचना, 3 शोध-लघुशोध, 1 भोजपुरी-विविधा तथा1 बाल-साहित्य, लगभग 20 पुस्तकें प्रकाशित हुई तथा 10 से अधिक पुस्तकों का उन्होंने संपादन भी किया था। ‘शब्द-कारखाना’ के साथ ही ‘वैश्यवसुधा’ त्रैमासिकी का भी वे संपादन करते थे साथ ही प्रगतिशील सृजनशीलता के नये आयाम की तलाश भी वे ताउम्र करते रहे…।
उनकी बहुचर्चित कालजयी कृति ’आग और लाठी’ के लिए उन्हें 1985 में प्रतिष्ठित मैथिली शरण गुप्त राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी साहित्यिक कृतियों पर मगध विश्वविधालय, भागलपुर विवि. एवं गौहाटी विवि. आदि उच्च शिक्षण संस्थाओं में शोध व अध्ययन कार्य हो रहे हैं…।
उनकी सहजता व आत्मीयता की कई बानगी मेरे हृदय में कायम रहेगी..। मधेपुरा/ सहरसा स्थित मेरे आवास पर उनका पदार्पण कई बार हुआ था, दिल्ली, हरिद्वार व ऋषिकेश का पर्यटन भी हमने साथ-साथ किया तथा 17 सितं. 2000 को दिल्ली में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में भी हम कई दिनों तक साथ रहे। जमालपुर/ मुंगेर में भी उनका सानिध्य मिला। लगभग दस वर्ष पूर्व लाल किला के प्राचीर में पिता जी हरिशंकर श्रीवास्तव ’शलभ’ के साथ ली गई उनकी तस्वीर, उनकी स्मृति को समर्पित है..।
( अरविन्द श्रीवास्तव, कला कुटीर, मधेपुरा, बिहार)