धीरज कुलश्रेष्ठ
सच को सच कहना मुश्किल है…पर राजस्थान में मरने वालों से निकलती है पत्रकारों की तनख्वाह
हो सकता है सहसा विश्वास न हो….
यहां बडे से बडे वीआईपी के मरने की खबर अखबारों में नहीं छपती …उसके वंशजों को यह सूचना पहुंचाने के लिए.. शोक समाचार ..या.. तीये की बैठक..के रूप में विज्ञापन देना पडता है…
पत्रिका और भास्कर की इसके लिए न्यूनतम दर है 5 हजार रू। सिर्फ जयपुर संस्करण में ही रोज औसतन सौ विज्ञापन छपते हैं यानी औसतन आय 5 लाख प्रतिदिन से अधिक…महीने के डेढ करोड छीन लिए जाते हैं मरने वालों के परिजनों की जेब से…
अगर इन अखबारों को बेस्ट पे मास्टर(हालांकि भास्कर तो नहीं ही है…और पत्रिका किन्तु परन्तु के साथ है) भी माना जाए..तो तो 35 हजार की औसत वेतन की 50 पत्रकारों की नफरी होगी(अपने ही आंकडों पर संदेह के साथ)…
यानी 20 लाख में सब निपट गए…कुल मिलाकर मरने वालों के परिजनों की जेब से निकला चार दिन का पैसा…बाकी 26 दिन संस्थान का अतिरिक्त लाभ…यानी पूरे स्टाफ की ही निकल जाती होगी…
श्मशान से होकर आने वाले इस पैसे को वेतन के रूप में लेने में स्टाफ को उबकाई भी नहीं आती…..और साल में 50 बार मानवीय और सामाजिक सरोकारों की कसम खाते हैं…इस दिखावटी चेहरे को उतारो..और शौक से बेचो लाशों का बाजारी सरोकार.
(Dhiraj Kulshreshtha के एफबी से साभार)