प्रेस विज्ञप्ति
भारतीयता कभी भी एकवचनात्मक नहीं थीः भालचंद्र नेमाड़े
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में राजकमल प्रकाशन के 66वें स्थापना दिवस के मौके पर मराठी के वरिष्ठ साहित्यकार भालचंद्र नेमाड़े ने ‘भारतीयता और हिन्दुत्व’ विषयक व्याख्यान में कहा कि, ‘भारतीयता कभी भी एकवचनात्मक नहीं थी. भारत बहुवचन वाला सांस्कृतिक देश है। इसकी विविधता इसकी पहचान है। जब अंग्रेज आएं तो उन्होंने एकवचन वाले सांस्कृतिक धारा को आगे बढाया और आज हम भी कुछ हद तक उसी धारा में बह रहे हैं, इससे विकास नहीं होगा। उन्होंने यह भी कहा कि हमें अपनी विविधताओं के साथ ही आगे बढ़ना होगा, तभी जाकर विकास संभव है।
राजकमल प्रकाशन के स्थापना दिवस के अवसर पर उसके गौरवमयी इतिहास का उल्लेख करते हुए अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रसिध्द आलोचक नामवर सिंह ने कहा कि, ‘राजकमल ने प्रकाशन के जगत में एक इतिहास बनाया है। हमें हिन्दी को आगे बढाना है तो उसकी बोलियों को भी समृद्ध करना होगा।’ उन्होंने आशा जताई कि भविष्य में राजकमल बोलियों पर भी कुछ पुस्तक प्रकाशित करेगा।
राजकमल प्रकाशन के चार नए उपक्रमों की घोषणा
66वें स्थापना दिवस पर राजकमल प्रकाशन की ओर से संपादकीय निदेशक सत्यानंद निरूपम ने राजकमल की योजनाओं के विषय में विस्तार से चर्चा करते हुए सार्थक (राजकमल प्रकाशन का नया उपक्रम) के विषय में बताया। सार्थक, के अंतर्गत पाठकप्रिय गैर-अकादमीक किताबों का प्रकाशन किया जाएगा। आने वाले उपक्रमों के विषय में बताते हुए उन्होंने कहा, ‘राजकमल प्रकाशन जल्द ही ‘फंडा’, ‘चहक’ और ‘कोरक’ नाम से तीन नए उपक्रम लेकर आने वाला है। चहक के अंदर बच्चों के लिए मनोरंजन और ज्ञानपरक सामग्री होगी। वहीं फंडा हल्की फुलकी कहानियों और लेखों से भरपूर होगा। कोरक ‘प्रिंट इन डिमांड’ पर आधारित होगा।
अपने पावर प्वाइंट प्रेसेंटेशन को पेश करते हुए संपादकीय निदेशक सत्यानंद निरूपम ने कहा कि, राजकमल प्रकाशन समूह खास व आम पाठकों से जुड़ने के लिए नए सिरे से काम कर रहा है। फिलहाल नए और पुराने का संक्रमण काल चल रहा है। राजकमल का यह पुनर्नवा काल है।
मालचंद तिवाड़ी व रवीश कुमार हुए चौथे राजकमल प्रकाशन सृजनात्मक गद्य पुरस्कार (वर्ष 2014-15) से सम्मानित
राजकमल प्रकाशन के 66वें स्थापना दिवस के अवसर पर राजकमल प्रकाशन सृजनात्मक गद्य सम्मान (वर्ष 2014-15) मालचन्द
तिवाड़ी की कथेतर कृति ‘बोरूंदा डायरीः अप्रतिम बिज्जी का विदा-गीत’ व रवीश कुमार के लघु प्रेम कथा ‘इश्क़ में शहर होना’ को दिया गया। राजकमल प्रकाशन में यह पहला साल है जब यह सम्मान दो कृतियों को संयुक्त रूप से दिया जा रहा है। डॉ. नामवर सिंह की अध्यक्षता में गठित निर्णायक मंडल ने दो कृतियों को इस पुरस्कार के लिए चयन किया। निर्णायक मंडल के सम्मानित सदस्य थे- वरिष्ठ कथाकार विश्वनाथ त्रिपाठी एवं मैत्रेयी पुष्पा। इससे पहले यह पुरस्कार क्रमशः ‘चूड़ी बाजार में लड़की’(कृष्ण कुमार), ‘ गांधीः एक असंभव संभावना’ (सुधीर चन्द्र), ’व्योमकेश दरवेश’ (विश्वनाथ त्रिपाठी) को दिया जा चुका है। पुरस्कार स्वरूप पुरस्कृत लेखक को श्रीमती शांति कुमारी बाजपेयी की स्मृति में उनके परिवार द्वारा 1 लाख रुपये की पुरस्कार राशि और राजकमल प्रकाशन द्वारा सम्मान पत्र भेंट किया जाता है।
पुरस्कार मिलने के शुभ अवसर पर खुशी जाहिर करते हुए मालचंद तिवाड़ी ने कहा कि, ‘यह सम्मान हिन्दी की दूर दराज सृजनात्मकता का सम्मान है। मेरे लिए यह सुखद संयोग है। मैंने इस किताब की भूमिका में लिखा है कि यह अप्रतिम बिज्जी की कथा है। इसी कारण इसमें विचित्र आकर्षण बन पड़ा है। इसका श्रेय मेरे वृतांत को उतना नहीं है जितना विजयदान देथा उर्फ बिज्जी की महान सृजनात्मक प्रतिभा का है। मैं राजकमल प्रकाशन और जूरी के सम्मानीय सदस्यों के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करना अपना कर्तव्य समझता हूं।‘
इस मौके पर रवीश कुमार ने कहा कि, ‘यह किसी फार्मेट की कहानी नहीं है, लेकिन यह उन लमहों की कहानी है जो सदियों की दिल्ली में रोज घटती रहती है। इस शहर में मिलने के लिए या पहुंचने के लिए बहुत मेहनत करना पड़ा है। ये कहानियां यथार्थपरक हैं।’
धन्यवाद ज्ञापन राजकमल प्रकाशन समूह के निदेशक (सेल्स) आमोद महेश्वरी ने किया। कार्यक्रम की शुरूआत में राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने सबका औपचारिक स्वागत किया। इस अवसर पर विश्वनाथ त्रिपाठी, लीलाधर मंडलोई, सुमन केशरी, सांसद सदस्य हुसैन दलवाई सहित सैकड़ों वरिष्ठ जन उपस्थिति थे।