नीरज
सवाल पूछने का अधिकार, आखिरकार, खो दिया
पिछले दिनों CNN-IBN और IBN7 से बड़ी संख्या में पत्रकार-कर्मी निकाल दिए गए ….बिलकुल “बेबाक़ और बेख़ौफ़” अंदाज़ में…कुछ नहीं कर पाए रुखसत किये गए लोग ! न मैनेजमेंट को खौफ़ दिखा पाए और न ही बेबाक अंदाज़ में कुछ कह पाए….बड़े बे-आबरू हम तेरे कुचे से बाहर निकले…शायद कुछ यूँ ही गुनगुनाते हुए बाहर निकल आये !
खैर ! मजबूरी क्या ना कराये….जिगर था नहीं और बरसों से लाखों रुपये पगार पाकर करोड़ों रुपये भी नहीं जमा किये , जो बेबाक़ और बेख़ौफ़ अंदाज़ में ललकार सकें ! माता-पिता की देख-भाल के साथ बीवी-बच्चे पालना है और भविष्य-निधी की भी चिंता है ! जिन्हें पूजा (या जिनकी चापलूसी कर नौकरी पाए या बचाए)…वो भी पल्ला झाड लिए !
ये तो था…खुद को दीन-हीन मान चुके लाचार पत्रकारों का हाल , जो माइक हाथ में आते ही शेर बन बैठते हैं ! पर अब बात उन “महान”-“स्वयम्भू” पत्रकारों की… जो, टी.वी. के सामने “बेबाक़ और बेख़ौफ़”अंदाज़ में पब्लिक को दिखते हैं…जो ना जाने कितने छात्रों (पत्रकारिता की पढ़ाई कर ख्वाब देख रहे हैं या हिम्मती कहलवाने का जज्बा इन लोगों से पा रहे हैं) के आदर्श बने बैठे हैं !
हाल-फिलहाल ऐसे दो दिग्गज…”महान”-“स्वयम्भू” पत्रकार…राजदीप सरदेसाई और आशुतोष के रूप में लोगों के सामने आये हैं ! प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को , संभवतः, अपना आदर्श मानने वाले IBN7 के मैनेजिंग एडिटर आशुतोष अक्सर कहते फिरते थे कि मीडिया…पूंजीवाद से दोस्ती कर के भी अपना वजूद कायम रख सकता है…आशुतोष और राजदीप के मुताबिक ये समय की मांग है और ज़रुरत भी ! मगर जब सैकड़ों कर्मचारी बेवज़ह निकाल दिए गए तो आशुतोष ये नहीं बता पा रहे हैं कि वो (राजदीप और आशुतोष) पूंजीवाद के साथ मिलकर अपना व्यक्तिगत वजूद बचा रहे थे या अपने साथ-साथ अपने कर्मचारी पत्रकारों का ?
लाखों रुपयों की पगार (हर महीने) पाने वाले ये मतलब-परस्त पत्रकार दूसरों से सवाल पूछते वक़्त ना शर्म का लिहाज़ करते हैं और ना अपने गिरेबान में झाँकने की कोशिश करते हैं कि…..जो सवाल वो भ्रष्ट नेताओं (जो अमीरों के लिए किसानों की ज़मीन खाली कराने के लिए गोलियां चलवाने से भी परहेज नहीं करते ) से पूछते हैं , वही सवाल लोग इनसे भी पूछते हैं ! पर ये पल्ला झाड कर चल देते हैं !
टी.वी. पर पत्रकार जैसा बहुपुपिया बन कर पेश हो जाने का मतलब ये नहीं कि आप की सारी नैतिक और सामाजिक ज़िम्मेदारी से आप को मुक्ति दे डी गयी है…और… सिर्फ सवाल पूछना ही आप का एक-मात्र कर्तव्य है ? निर्मल बाबा की तरह टी.वी. पर प्रवचन दे कर और ईश्वरीय गुणों के ज़रिये सबका हितैषी दिखने का प्रयास करना बड़ा घातक होता है…क्योंकि जब राज खुलता है तो…मामला संभाले नहीं संभलता !
राजदीप और आशुतोष भी आखिरकार पत्रकारिता के “निर्मल बाबा” ही साबित हुए ! टी.वी. पर प्रवचन (सवाल-जवाब) कर लोगों को अपना मुरीद तो इन लोगों ने बना लिया …पर मामला जब जवाबदेही का आया तो पल्ला झाड लिए ! ज़ाहिर है पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे उन किशोर छात्र-छात्राओं की आँखे खुली होंगी जो (जाने-अनजाने) इन-जैसों को अपना आदर्श मान बैठे थे !
पत्रकारिता को पूंजीवाद के समकक्ष खडा करने की बजाय उसे पूंजीवाद से रौंद डालने का मंसूबा पाले …आशुतोष और राजदीप जैसे लोग , फिलहाल अपने इस मिशन में भले ही कामयाब हो गए है पर इन जैसों की खुशी बहुत दिनों तक बरक़रार रह पायेगी…इसमें संदेह है ! राजदीप और आशुतोष जैसे पत्रकार.. लाखों रुपये महीने की सैलरी सालों से पा रहे है और लम्बी बचत पूंजी के सहारे ही सही… आदर्श पेश कर सकते थे…इनकी नौकरी छूट भी जाती तो ये सालों अपनी बचत राशि से अपना गुज़ारा अच्छी तरह कर सकते थे !
पर इन लोगों ने बड़ी पूंजी को और बड़ा करने के लिए मैनेजमेंट से सवाल तक पूछने का साहस नहीं दिखाया और न अपने कर्मचारियों को बचाया ! आज सैकड़ों पत्रकार सड़क पर हैं और रोजी-रोटी के जुगाड़ में हैं ! दूसरी तरफ और राजदीप-आशुतोष जैसे पत्रकार अपने में मस्त हैं और संभवतः टी.वी. पर नेताओं से भ्रष्टाचार और शोषण पर सवाल पूछने की तैयारी में लगे होंगें या फिर किसी विषय के बहाने “प्रवचन” देने की तैयारी में ! पर इन जैसे पत्रकारों को ज़रा भी इस बात का गुमान नहीं कि …आप लोग न्यूज़ चैनल्स की दुनिया के “निर्मल बाबा” साबित हो चुके हैं और सवाल पूछने का नैतिक अधिकार खो चुके हैं !
(नीरज….लीक से हटकर)