कांग्रेस बदलाव की तैयारी में है। श्रीमती सोनिया गांधी ने मन बना लिया है। राहुल भैया भी तैयार हैं। सब कुछ फिर से सत्ता में आने और हर कीमत पर, हर स्तर पर छा जाने के लिए हो रहा है। राजनीति की बिसात पर जो मोहरे बैठे हैं, उनको जीत के नजरिए से फिर से फेंटा जाएगा। देश के स्तर पर जो होना है, वह तो होगा ही। पर, राजस्थान कांग्रेस में भी परिवर्तन की पटकथा तैयार है।
सब कुछ बदलनेवाला है। पर, हीरो अशोक गहलोत ही रहेंगे। बीजेपी में वसुंधरा राजे की भूमिका तय होते ही गहलोत की भूमिका भी बिना किसी प्रयास के सहज ही निश्चत हो गई। वे अपनी जगह और मजबूत हो गए। राजनीति में ऐसा ही होता है। विरोधी पार्टी के निर्णयों से हमारे मानदंड अपने आप ही तैयार हो जाते हैं। गहलोत वैसे भी राजस्थान में कांग्रेस के सबसे पराक्रमी राजनेता है। राजस्थान के बाकी किसी भी कांग्रेसी नेता और गहलोत के बीच जनाधार का फासला बहुत बड़ा है। फिल्मी उदाहरण में बात करें, तो फर्क अमिताभ बच्चन और चंकी पांडे जितना है।
गहलोत हाल ही में दिल्ली मिलकर आए हैं। दिल्ली वालों से दिल पहले से ही मिले हुए हैं। बात हो गई है और भूमिका तैयार है। बस घोषणा बाकी है। मार्च में एआईसीसी में बदलाव होगा। पार्टी इसके पहले बदलाव की पृष्ठभूमि तैयार कर चुकी है। सारे फैसले विधानसभा चुनाव में जीत को केंद्र में रखकर होंगे। नजर बाडमेर के सांसद हरीश चौधरी, केन्द्रीय रक्षा राज्यमंत्री मंत्री कुंवर जितेन्द्रसिंह और लोकसभा में कांग्रेस पार्टी की सचेतक और चित्तौड़ की सांसद गिरिजा व्यास पर है। राजस्थान कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नारायण सिंह, राज्यसभा सांसद अश्क अली टाक, उदयपुर के सांसद रघुवीर मीणा, प्रदेश कांग्रेस के महासचिव नीरज डांगी और नागौर की सांसद ज्योति मिर्धा भी खयाल में हैं। इनमें से ज्यादातर युवा हैं। माना जा रहा है कि ये लोग कांग्रेस की ताकत को बढ़ा सकते हैं। सो, इन सभी को नई जिम्मेदारी मिल सकती है। कुछेक की छुट्टी भी हो सकती है। एआईसीसी के सचिव ताराचन्द भगौरा और संजय बाफना निशाने पर हैं। दोनों खास कुछ भी नहीं कर सके। इनकी जगह अश्क अली टांक, नीरज डांगी, हरीश चौधरी और रघुवीर मीणा में से किन्हीं दो को लिया जा सकता है। राजस्थान में पढ़े लिखे और मजबूत दलित चेहरे के रूप में नीरज डांगी बहुत तेजी से उभर रहे हैं और रघुवीर मीणा आदिवासी लीडर हैं।
मेवाड़ में सीपी जोशी के असर की असलियत का बुलबुला फुट गया है। सो, गिरिजा व्यास को फिर से ताकतवर बनाने का विचार है। सुश्री व्यास कांग्रेस कार्य समिति में जा सकती हैं। महिला और ब्राह्मण चेहरे के रूप में प्रोजेक्ट करने के लिए एआईसीसी की महासचिव भी बनाई जा सकती हैं। नारायण सिंह प्रदेश कांग्रेस में चुनाव अभियान में शामिल हो सकते है। पीसीसी अध्यक्ष डॉ. चंद्रभान बहुत खास जैसा कुछ भी नहीं कर पाए है। भले आदमी हैं। पद के प्रभाव में आकर उन अशोक गहलोत से ही दूरियां बनाने जैसे काम कर लिए, जिनकी मेहरबानियों ने उनको अध्यक्ष बनाया।
लेकिन गहलोत ही नहीं सारा राजस्थान जानता है कि चंद्रभान की हालत बिना जहर वाले सांप की तरह है, जो डस भी लेता है, तो कोई नुकसान नहीं होता। नारायण सिंह को ताकत देकर शीशराम ओला को तो साधा ही जाएगा, पीसीसी चीफ चंद्रभान की ताकत के तराजू को बैलेंस किया जाना है। कांग्रेस का यह पूरा मामला दलित, आदिवासी, जाट, ब्राह्मण और राजपूत वोटों पर कब्जे का है। और ओबीसी तो खैर, अशोक गहलोत की वजह से कांग्रेस के साथ जितने हैं, उसमें कोई कमी होनेवाली नहीं है। दिल्ली को समझ में आ गया है कि सीपी जोशी और उनकी मंडली की ताकत कांग्रेस को कमजोर कर रही है। सो, दिल्ली में तय हो गया है कि राजस्थान में चुनाव की पूरी कमान अशोक गहलोत के हाथ में ही रहेगी। क्योंकि सवाल आखिरकार निष्ठा, प्रतिष्ठा और हर हाल में जीत की पराकाष्ठा का भी तो है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)