सुरेश त्रिपाठी
वर्ष 1997 से प्रकाशित ‘रेलवे समाचार’ ने खासतौर पर भारतीय रेल की तमाम गतिविधियों पर अपना फोकस रखा है. इसके किसी भी प्रतिनिधि ने आजतक रेलवे से किसी भी प्रकार की कोई सरकारी सुविधा का कोई लाभ नहीं लिया है. यदि आपातकालीन कोटा लिया गया है, तो यह हमारा अधिकार है. जहां तक विज्ञापन की बात है, तो डीएवीपी नहीं होने से यह वैसे भी नहीं दिए जाते हैं. ऐसे में उपरोक्त तीन-तीन फतवे जारी करने की आखिर रेलवे बोर्ड को क्या जरुरत आन पड़ी थी? इसका एकमात्र कारण यही हो सकता है कि ‘रेलवे समाचार’ रेलवे बोर्ड और जोनल स्तर के कई वरिष्ठ रेल अधिकारियों के भ्रष्टाचार और जोड़तोड़ को पुरजोर तरीके से उजागर करता रहा है. रेलवे बोर्ड स्तर पर होने वाली नीतिगत जोड़तोड़, उच्च पदों की पदस्थापना में होने वाले भ्रष्टाचार और जोड़तोड़ तथा नीतियों को तोड़ने-मरोड़ने आदि को उजागर किए जाने से रेलवे की नौकरशाही की एकखास लॉबी इससे बुरी तरह बौखलाई हुई है.
यह बौखलाहट खासतौर पर वर्तमान चेयरमैन, रेलवे बोर्ड (सीआरबी) की ज्यादा है, क्योंकि ‘रेलवे समाचार’ ने उनके जीएम बनने से लेकर सीआरबी बनने तक और उसके बाद से अब तक उनके द्वारा की गई तमाम जोड़तोड़, चापलूसी, अवसरवादिता और भ्रष्टाचार आदि-आदि को समय-समय पर उजागर किया है. इससे पहले एक पूर्व सीआरबी की नियुक्ति को अदालत में चुनौती दिए जाने से रेलवे की एक खास लॉबी पहले से ही ‘रेलवे समाचार’ के खिलाफ रही है. ‘रेलवे समाचार’ की ही बदौलत तमाम जोनल महाप्रबंधकों के चतुर्थ श्रेणी में नियुक्ति का अधिकार छिन गया, जिससे इस जरिए होने वाला एक बड़ा भ्रष्टाचार या अवैध कमाई खत्म हो जाने से कुछ रेल अधिकारियों के मन में ‘रेलवे समाचार’ के प्रति बड़ी कड़वाहट भरी हुई है. तमाम बड़े टेंडरों में होने वाली जोड़तोड़ और उससे होने वाली बड़ी अवैध कमाई खत्म हुई है. इसके अलावा भी रेलवे और रेल अधिकारियों की कार्य-प्रणाली में ‘रेलवे समाचार’ की बदौलत बहुत सारा परिवर्तन आया है. ‘रेलवे समाचार’ ने सिर्फ रेल अधिकारियों के भ्रष्टाचार और रेलकर्मियों के प्रति उनके अन्याय को ही उजागर नहीं किया, बल्कि इस दरम्यान रेलवे के विकास से सम्बंधित कई विषयों पर संगोष्ठियों का आयोजन करके उनके उत्साहवर्धन एवं सौहार्दपूर्ण सामंजस्य का वातावरण बनाने का भी महत्वपूर्ण प्रयास किया है. इसी की बदौलत अब रेलवे में विभागीय संरक्षा संगोष्ठियों की एक परंपरा चल पड़ी है.
आखिर इस चार पन्ने के एक पाक्षिक श्वेत-श्याम अख़बार से रेल प्रशासन इतना डरा या बौखलाया हुआ क्यों है? जबकि इसमें न तो कोई ग्लैमर है, न ही यह बहुरंगी है, न ही यह बढ़िया आर्ट पेपर में छपता है. इस सबके अलावा रेल प्रशासन न तो इसे कोई विज्ञापन देता है, और न ही किसी प्रकार की कोई सुविधा. तो आखिर उसके इससे बौखलाने का कारण क्या है? इसका एकमात्र कारण इसके ‘कंटेंट्स’ हैं, जो कि रेल प्रशासन को हजम नहीं हो पा रहे हैं. खासतौर पर वर्तमान सीआरबी को तो कतई नहीं हजम हो रहे हैं. तथापि ‘रेलवे समाचार’ की खबरों पर यदि उनकी कोई मानहानि हुई है, तो उसे अदालत में चुनौती देने के बजाय उन्होंने इस तरह की असंवैधानिक कार्यवाई की है. जबकि आज तक इस देश की किसी भी अदालत ने ‘रेलवे समाचार’ और/या इसके संपादक को किसी भी मामले में दोषी नहीं ठहराया है. जब तक किसी व्यक्ति को किसी अदालत द्वारा दोषी करार नहीं दिया जाता, तब तक रेल प्रशासन या सीआरबी को कोई अधिकार नहीं है कि वह ऐसे किसी व्यक्ति को अवांछित करार देकर उसके मूलभूत अधिकारों सहित मीडिया के अधिकार को भी निलंबित करते हुए उसे अवांछित करार दे सकें. यह पूरी तरह न सिर्फ असंवैधानिक है, बल्कि मानहानिकारक और जानबूझकर ‘रेलवे समाचार’ और इसके संपादक के व्यावसायिक एवं मूलभूत अधिकारों का हनन किया गया है.
जिसकी संस्तुति पर रेल प्रशासन और रेलवे बोर्ड विजिलेंस ने यह असंवैधानिक और मानहानिकारक आदेश जारी किए हैं, वह तो घोषित तौर पर विवादस्पद व्यक्तियों और अरबों रुपए के घोटालेबाजों से रात के अंधेरे में अपने सरकारी आवास में मिलता है, तथा जिसकी वजह से देश की एक प्रतिष्ठित जांच एजेंसी की सम्पूर्ण गरिमा दांव पर लगी हुई है, उसे तो अब तक किसी ने ‘अवांछित’ करार नहीं दिया है? जो एक सर्वथा योग्य और ईमानदार अधिकारी को दरकिनार करके अपने राजीनीतिक आकाओं की बदौलत सम्पूर्ण जोड़तोड़ और स्थापित नीतियों-नियमों को तोड़-मरोड़कर भ्रष्टाचार के जरिए सीआरबी बन बैठा है, उसे तो अब तक किसी ने अवांछित करार नहीं दिया है? जो घोषित जोरू का गुलाम है? जिसके लिए वह पूरी भारतीय रेल में बुरी तरह बदनाम है? जिसकी बदौलत रेलवे के तमाम ईमानदार और समर्पित अधिकारी हतोत्साहित और निराश हैं, उसे तो किसी ने अब तक कान पकड़कर व्यवस्था से बाहर नहीं किया है? ऐसे लोग जो पद और अधिकार का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं, मीडिया और एक समर्पित पत्रकार के मूलभूत एवं संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ गैर-क़ानूनी आदेश या फतवा जारी कर रहे हैं, उन्हें तो किसी ने अवांछित करार नहीं दिया है?