रेल बजट पेश हो गया। अपने जीवन का पहला और इस सरकार का अंतिम रेल बजट पेश करते समय रेल मंत्री पवन बंसल ने लोकसभा में कहा तो था कि हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,… पर सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी तथा विपक्षी दलों ने भारी हंगामा किया। हंगामे के कारण रेल मंत्री अपना बजट भाषण भी पूरा नहीं पढ़ पाए। अब चर्चा होगी। बहसबाजी भी होगी। और पास भी हो जाएगा। लेकिन सवाल ये है कि क्या रेलवे की हालत सुधरेगी।
पवन बंसल राजीव गांधी के कहने पर राजनीति में आ थे। यह दुनिया को बताने के लिए या पता नहीं अपने सहयोगियों को सताने के लिए यह उनने लोकसभा में भी कहा। लेकिन ममता बनर्जी, लालू यादव, नीतिश कुमार, रामविलास पासवान जैसों ने रेल मंत्रालय का जो भी विकास या कबाड़ा किया था और विकास की योजनाओं से भरी सारी रेलें अपने चुनाव क्षेत्रों की तरफ मोड़ दी थी, वैसा न तो पवन बंसल कर सकते थे और न हुआ। होने की गुंजाइश भी नहीं थी। बंसल चंड़ीगढ़ के हैं। उनका शहर बहुत आधुनिक है और शुक्र है कि चंड़ीगढ़ किसी की दया से उपजे सुविधाओं के संसार का मोहताज नहीं है। फिर ऐसा नहीं है कि बंसल के पूर्वज रेल मंत्रियों के काल में रेल सेवाओं का विकास और विस्तार नहीं हुआ। हुआ। लेकिन जिस तरह से अमीर और अमीर होता जा रहा है और गरीब ज्यादा गरीब हो रहा है। उसी तरह जहां रेल विकास की जरूरत है, वहां जरूरतों का अंबार लगातार बढ़ता जा रहा है और जहां पहले से ही बहुत सारी सुविधाएं हें, वहां और कई तरह तरह की सुविधाओं का संसार सज रहा है। फिर भी हमारे देश में यह एक आम बात सभी के मुंह से सहज कही जाती है कि रेलवे की हालत खस्ता है।
पवन बंसल ने जैसा भी रेल बजट पेश किया है, सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्य़ा हमारे देश की खस्ताहाल रेलवे की हालत में में कोई सुधार होगा ? क्या रेल सुविधाओं के विकास और विस्तार के लिए जो धन चाहिए उसके लिए हमारे वित्त मंत्री धन का बंदोबस्त करेंगे? कोई पंद्रह सालों से हमारे देश की रेलवे की हालत ज्यादा खराब लग रही है। खराब पहले भी थी। पर, जब विकास का पहिया तेजी से घूमना शुरू हुआ, तो कमियां भी उतनी ही तेजी से उजागर होने लगी। सरकार चाहे अटल बिहारी वाजपेयी की रही हो या मनमोहन सिंह की। रेलवे की आर्थिक हालत को सुधारने के लिए हर रेल बजट में बड़ी बड़ी घोषणाएं की गईं। राजनीतिक फायदे और जनता की वाहवाही लूटने के लिए करीब पौने दो लाख करोड़ के कई प्रोजेक्ट्स का ऐलान कर दिया गया, लेकिन इनमें से ज्यादातर प्रोजेक्ट या तो शुरू ही नहीं हुए या फिर बीच में ही रुक गए। ऐलान तो कर दिए, लेकिन किसी भी सरकार ने यह योजना नहीं बनाई कि इन प्रोजेक्ट्स के लिए पैसा कहां से आएगा और उनको पूरा कैसे किया जाए।
जानकार मानते हैं कि रेलवे की बदहाली की सबसे बड़ी वजह है उसका लगातार राजनीतिक इस्तेमाल। और अपना मानना है कि सरकार तो सरकार है। वह राजनीति से ही बनती है। सो, सरकार किसी का भी राजनीतिक इस्तेमाल ही करेगी। उसके अलावा क्या करेगी। सरकार कोई ट्रेन में थोड़े ही बैठती है। उसमें तो बैठते हैं आप और हम जैसे लोग। सो, रेल का इस्तेमाल तो हम लोग करेंगे। कांग्रेस तो इसी बात पर खुश है कि कोई 18 साल बाद उसके किसी रेल मंत्री ने बजट पेश किया है। रेल मंत्री ने एक शेर भी पढ़ा – सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नही, मेरी कोशिश है कि सूरत बदलनी चाहिए। तो रेलवे की सूरत बदलिए न साहब, किसने मना किया है। हम भी यही चाहते हैं। लेकिन समाजवादियों ने तो हंगामा करके संसद की ही सूरत बदलने की कोशिश कर डाली उसका क्या ? (लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)