सादगी है तो साख है
दीपक शर्मा,पत्रकार,आजतक
जिन चेहरों पर दाग है वो आपकी स्क्रीन पर खबर का चेहरा कैसे हो सकतें हैं ? वो किस ज़बान से खबर पढते हैं और आप किन आँखों से खबर देखते हैं ? हर शाम ढलते ही जब प्राईम टाईम ख़बरें स्क्रीन पर उतरती तो कुछ चेहरे झूठ को सच में बदलने का छल करते हैं.
ये वही चेहरे हैं जो ताज मान सिंह से लेकर ली मेरीडियन के लाल सोफों पर बैठकर दिन में कारपोरेट की दलाली खाते हैं. और शाम होते ही यही चेहरे आपको छल रहे होते हैं. जी हाँ वही चेहरे जो खबर की ट्रेडिंग करते हैं या ब्लैकमेलिंग.
कुछ लोगों को बात हज़म नही होगी लेकिन सच यह भी है कि जहाँ दाग दार चेहरे हैं वहीँ एक नाम पुण्य प्रसून वाजपई का भी है. एक साज़िश उनके साथ ज़रूर हुई पर उनका फक्कडपन उन्हें बचा ले गया. लेकिन मे यहाँ कुछ और बात कर रहा हूँ . थोड़ी प्राईवेट जो खुद प्रसून को रास नही आएगी.
दो दिन से प्रसून दफ्तर नही आ रहे थे. उन्होंने ना आने का कारण किसी को नही बताया. बाद में मुझे मालूम हुआ कि किसी मजबूर के इलाज़ में उन्होंने दो दिन दो रातें अपने घर से कुछ दूर एक अस्पताल के आई सी यु में गुजारी. मैंने अपने गरीबां झाँक कर देखा और पाया कि शायद मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है.
मित्रों, प्रसून का जो ग्लेमर स्क्रीन पर दीखता है वो खुद उस ग्लैमर से मीलों दूर है.
वे स्टार हैं लेकिन ज़मीन के. एक ऐसे स्टार जो गाजियाबाद के एक कोने पर एक छोटी सी सोसाइटी के एक सादे से फ्लेट में रहते हैं. एक पुरानी गाडी है और सेन्ट्रल स्कूल में पढ़ रहे बच्चे. सब्जी भी लाते हैं परचून भी. खुद चाय बनाकर मेहमानबाजी का उनका अंदाज़ मेट्रो के दिखावे से परे है. शायद शोहरत प्रसून की सादगी पर हावी नही हुई और अब यही उनकी यूएसपी है .
दलाल चेहरों की इस भीड़ में एक रविश कुमार भी हैं. जीवन समाजवादी और सोच सौ फीसदी हिन्दुस्तानी.मे इन दोनों एंकरों को अर्नब से ऊपर रखता हूँ. मे चाहता हूँ कि इनका कद ज़माने में और बड़े. इतना बड़े की मीडिया के दागदार चेहरे इकनी परछाई में ढके जा सकें. ये दोनों एंकरों से बढ़ कर कहीं ज्यादा बड़े पत्रकार हैं. एक बड़ा मौका इनको एक साथ दीजिये ये टेलीविजन बदल सकते हैं. (स्रोत-एफबी)
Deepak bhaai sahi kahaa ……ispar maine bahut pahale feature bhi likha hai