गौरीशंकर
केजरी के चक्कर में ‘पाप कंटक’ बने ‘पुण्य प्रसून’ ?
तो सरोकारी और निष्ठावान माने जाने वाले एक और पत्रकार का सच जनता के सामने आ गया ? सकारात्मक सियासी आंदोलनों में भूमिका निभाने का काम पत्रकार पहले भी करते रहे हैं। लेकिन, जिस वीडियो की चर्चा है, वहां ये तो दिख ही रहा है कि पुण्य प्रसून वाजपेयी तहेदिल से केजरीवाल को बिन मांगी सलाह दे रहे हैं, साथ ही केजरीवाल ये तय करते दिख रहे हैं कि इंटरव्यू के किस हिस्से को प्रमुखता से या हाइलाइट करके चलाना है।
हाशिये पर पड़ी जनता को सियासी दल तो वोट बैंक मानते ही रहे हैं, लेकिन पुण्य प्रसून जैसे पत्रकार से भी उनके लिए वोट बैंक शब्द सुनकर हैरानी हुई। इसे केजरीवाल की बेशर्मी ही कहेंगे कि अन्ना आंदोलन के दौर से ही जिस मीडिया ने उन्हें खुला समर्थन दिया, आज उसे ही वे कठघरे में खड़ा कर रहे हैं। लेकिन, दूसरी तरफ उसी मीडिया के कुछ हिस्से से उन्होंने खुद एक तरह की सेटिंग कर रखी है।
दरअसल, दिल्ली विधानसभा चुनाव की सफलता से केजरीवाल बौरा गए हैं। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए और क्या नहीं। आनन-फानन और जल्दबाजी में सबकुछ पा लेने की कोशिश में केजरीवाल एक के बाद एक गलती कर रहे हैं और खुद-ब- खुद एक्सपोज हो रहे हैं। अगर छः महीने बाद लोकसभा के चुनाव हुए होते तो केजरीवाल को कोई जनसमर्थन नहीं मिलता। क्योंकि, इतने दिनों में केजरीवाल खुद कलई खोल लेते।