वेद उनियाल, दर्शक की नज़र से
मोदी की आलोचना का एक तरीका यह भी हो सकता है क्या…
मोदी किसी सभा में कोई कविता कहें और पुण्य प्रसून वाजपेयी उस पर खबर बनाए कि देखिए ये अटलबिहारी वाजपेयी से अच्छी कविता नहीं बोल रहे हैं। जैसे वाजपेयी बोलते थे वैसी भावकुता से नहीं बोल रहे हैं।
पुण्य प्रसून वाजपेयी केजरीवाल को खुश करने और उनकी नजरों में बने रहने के लिए क्या कुछ नहीं रह रहे हैं। हम टीवी के दर्शकों को साफ समझ में आ रहा है।
पहले एक केजरीवाल के अनुकूल दुर्बल सवालों वाला एक इंटरव्यू।
अब मोदी की कविता पर टिप्पणी। मोदी अगर कविता को तरन्नुम में नहीं पढ पा रहे तो क्या यह एक प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की अयोग्यता है। पुण्य प्रसून वाजपेयी कुछ ऐसा ही समझा रहे हैं हम टीवी के दर्शकों को। ….
एक धर्मवीर भारतीजी थे, केंद्र के बड़े बड़े मंत्री मुंबई आते थे तो बड़ी ललक होती थी कि काश भारतीजी से कुछ देर मिल लें। पर भारतीजी ने अपनी गरिमा बनाए रखी। यूं ही किसी से नहीं मिले। पद और काम का सम्मान रखा। एक आज के हनुमान हैं। बस केजरीवाल जैसे नेता की कृपा बनी रहे तो जीवन धन्य हो जाए।
कहां जा रही है भारत की पत्रकारिता। कुछ मोदी के भक्त बन गए, कुछ केजरीवाल के हनुमान अंधेरे में भी गदा चला रहे हैं। कुछ राहुल की वेटिंग लिस्ट से निराश।
(स्रोत-एफबी)