भारत बंद है. दो दिन तक यही हालात रहने वाले हैं. बस नहीं चल रहे और ऑटो – टैक्सी सड़कों से गायब है. समाचार चैनल एक्टिव हैं और हड़ताल की कवरेज के लिए चैनल सड़कों पर हैं.
बाबा टाइप के पत्रकार भी मैदान में उतर चुके हैं. वैसे कवरेज के लिहाज से भी अच्छा मौका है. वसंत का मौसम है. यानी ज्यादा गर्मी भी नहीं लगेगी और ठंढ का तो सवाल ही नहीं.
ऐसे में लंबे वक्त के बाद ट्रेड यूनियन की तरफ से ऐसे देशव्यापी हड़ताल की घोषणा, चैनल के बड़े पत्रकारों के लिए न्यूज़ रूम से निकलकर चेहरा चमकाने का बेहतर मौका मुहैया कराता है. ये बात अलग है कि समाचार चैनल हड़ताल सम्बन्धी ख़बरों को पहले उतनी तवज्जो नहीं दे रहे थे.
पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव इसी संदर्भ में एफबी वॉल पर शिकायती लहजे में लिखते हैं कि, ‘गुरदास दासगुप्ता् कुछ दिनों से इस बात को लेकर परेशान थे कि हड़ताल सम्बलन्धी बयान कोई नहीं छाप रहा/दिखा रहा है। दस दिन पहले तक स्थिति यह थी कि भाषा के एक रिपोर्टर दीपक रंजन ने जब उनका एक साक्षात्काैर लिया, तब जाकर खबर चल सकी। प्रधानमंत्री के परसों अपील करते ही हालांकि खबर अचानक बड़ी बन गई। और चैनलों की स्वारमिभक्ति देखिए कि आज सब जगह लिखा आ रहा है: … हज़ार करोड़ की हड़ताल/देश को नुकसान, आदि। लाखों करोड़ का नुकसान किसका है भाई? जनता का? मजदूर का? किसान का? नहीं न! लुटेरी-सटोरी आवारा पूंजी का नुकसान है, धनपशुओं का नुकसान है ये। तो होने दीजिए न। रोज़ फायदा ही कमाएंगे हरामखोर?’
ख़ैर वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून भी आज मैदान में हैं. हड़ताल की विवेचना अपने खास अंदाज़ में कर रहे हैं. लाइव बुलेटिन कर रहे हैं. वैसे ऐसी कवरेज में उन्हें आनंद आता है और ऐसे मौकों पर वे मैदान में जरूर कूदते हैं. लेकिन आज कुछ अलग हुआ.
पुण्य प्रसून बाजपेयी बेचारे आज रिपोर्टिंग करते – करते कई बार लड़खड़ा गए. भाजपा की भीड़ में .. एक ने उनको धकिया भी दिया तो कह रहे थे कि हमको धकियाओगे. लेकिन आजतक के स्क्रीन पर साफ़ – साफ़ कई – कई दफे दिखा जब बाबा लड़खडाए, भीड़ में अदृश्य हुए और फिर प्रकट होने की जद्दोजहद करते दिखे.
यानी हद हो गयी. भाजपा वाले पुन्नू बाबा को भी धकिया देते हैं जबकि बाबा कह रहे थे कि अरे भाई हम सवाल नहीं पूछ रहे. बड़ी नाइंसाफी है. निकम्मों सुधर जाओ, नहीं तो बाबा को गुस्सा आ गया तो आपातकाल…..
ख़ैर मनाओ कि आजतक में जाने के बाद बाबा पुन्नू बाबा अभी वसंतोत्सव के मूड में हैं, नहीं तो ऐसे धकियाये जाने पर दो – चार की बत्तीसी तो तोड़ ही देते. गुर्र……….
ख़ैर बाबा अब सही – सुरक्षित जगह चुन कर खड़े हो गए हैं. अब धक्का – मुक्की का कोई डर नहीं. आजतक का वसंतोत्सव चरम पर है. आपातकाल का बादल छंट चुका है. पुन्नू बाबा पूरे फॉर्म में हैं. देखते रहिये, पुन्नू बाबा के साथ भारत बंद. जय हो….