प्रभात खबर देवघर संपादक के नाम खुला पत्र

प्रभात खबर
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संपादक जी!

मैं अपने इस पत्र की शुरुआत जॉन एलिया की इस पंक्ति कि बहुत से लोगों को पढ़ना चाहिए मगर वो लिख रहे है के साथ करना चाहता हूँ। आपकी मौजूदगी, जानकारी और सहमति के साथ इन दिनों प्रभात खबर देवघर संस्करण जिस रास्ते की ओर चल रहा है, उस बाबत आपको यह पत्र लिखने के अलावा मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है। बड़े लोग कहते है सबसे मुश्किल होता है सत्य की रक्षा करना और आज के समय में सबसे आसान होता है अपने आप को दलाल बना लेना। सच्चाई, अधिकार, कर्तव्य, जागरूकता, की बात करते करते अखबार कब धनपशुओं की दलाली करने लगा यह पत्रकारिता के छात्रों के लिए शोध का विषय हो सकता है।बहरहाल आप अपने आपको कहाँ पाते है इसका निर्णय का भी अधिकार आपको ही होना चाहिए।अभी की वर्तमान व्यवस्था को देखकर कुछ मौजूं सवाल है जिसे प्रभात खबर की समृद्ध पत्रकारिता को जिंदा रखने के लिए पूछे जाने जरूरी है।इन सवालों के जवाब की जरूरत नही बल्कि आप अपने मन को टटोल लें तो फिर से ये सवाल पूछना ना पड़े।

झारखंड के कृषि मंत्री रंधीर सिंह पर उन्हीं के विधानसभा क्षेत्र के एक मुखिया ने जातिसूचक शब्द लगाकर गाली गलौज करने संबंधित तहरीर सारठ थाने में दी। आपके संवाददाता द्वारा खबर भी अखबार में भी गयी।फिर देर रात मंत्री आपके कार्यालय पहुंचे और आपने खबर को ड्रॉप करने का निर्णय लिया।मंत्री से मिलने के बाद क्या हुआ जिसकी वजह से पत्रकारिता की हत्या हो गयी।

झारखण्ड के एक चर्चित बड़बोले सांसद के आदेशानुसार आपने लगातार यह फर्जी खबर छापी कि दुरंतो एक्सप्रेस का परिचालन अब जसीडीह होकर किया जाएगा। पत्रकारिता का प्रवेशी छात्र भी यह बता सकता है कि ट्रेन परिचालन संबंधित आधिकारिक जानकारी रेलवे द्वारा दी जाती है।परंतु आपने एक बड़बोले जनप्रतिनिधि को खुश करने के लिए फर्जी खबर लगातार प्लांट की। झारखंड के एक मंत्री पर निजी सेना बनाने का आरोप लगा।आपको जानकारी दी गयी पर आप फिर उस मंत्री से मिले और नतीजा खबर फिर नहीं छपी।

बड़बोले सांसद का खुमार प्रभात खबर पर इस तरह छाया है कि अखबार ने सूखे जमीन पर पानी का नहर बना दिया और किसानों के चेहरे पर खुशी की लहर फैला दी।चापलूसी के चक्कर में किसी अन्य गांव के किसानों की तस्वीर छाप दी गयी। गांव के लोगों ने प्रभात खबर की प्रतियां जलाई और आपके विरुद्ध नारेबाजी की।पर सांसद के अंधभक्ति में आपने इसे हिकारत भरी नजरों से देखा। एक सुप्रसिद्ध भजन कलाकार ने अपने देवघर यात्रा के दौरान जब आपके कार्यालय आने के अनुरोध को नम्रता से अस्वीकार कर दिया तब आपने उस कलाकार की खबर को अंडरप्ले कर दिया।

आप कहते है कि डीसी पावर हाउस होता है।इसलिए अखबार के लोगों को उस पावर हाउस से बचना चाहिए।पता नहीं आप क्या सोचकर पत्रकारिता में आये थे?प्रभात खबर पत्रकार हरिवंश के उसूलों पर चलने वाला अखबार रहा है और आपने इसे क्या समझा? और भी ऐसे दर्जनों सवाल है जो आपसे पूछे जाने जरूरी है।किसी जनप्रतिनिधि की चाकरी आसान रास्ता है कठिन है पत्रकारिता धर्म की रक्षा करना।सांसद, मंत्री, विधायक सब जनता के समस्याओं के लिए हैं।अपने इस खुले पत्र का समापन मीडिया समीक्षक दिलीप मंडल के फेसबुक पोस्ट से करना चाहूंगा जहां वो लिखते हैं सुबह का अखबार है कभी पढ़ लिया कभी पराठा लपेट लिया और कभी कुत्ते का सुसु सुखाने के काम आ गया।

-एक सुधि पाठक

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