रेडियो पर मोदी से कदमताल करते केजरीवाल

राजनीति का नया अखाड़ा रेडियो, मोदी की राह पर केजरीवाल
राजनीति का नया अखाड़ा रेडियो, मोदी की राह पर केजरीवाल

राजनीति का नया अखाड़ा रेडियो, मोदी की राह पर केजरीवाल
राजनीति का नया अखाड़ा रेडियो, मोदी की राह पर केजरीवाल
नमस्कार ! मैं अरविंद केजरीवाल बोल रहा हूं और आप मुझे 3 दिसंबर सुबह 7 से 11 सुन सकते हैं, सवाल-जवाब कर सकते हैं, रेडियो मिर्ची के कार्यक्रम हाय डेहली में…

रेडियो मिर्ची पर अरविंद केजरीवाल के इस कार्यक्रम की प्रोमो धुंधाधार जारी है. हमारी दिलचस्पी इस बात को लेकर ज्यादा है कि इसका फॉर्मेट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मन की बात से बिल्कुल जुदा है. ये एकतरफा मामला नहीं है कि नरेन्द्र मोदी बोलेंगे और हम बस श्रोता या नागरिक की हैसियत से सुनेंगे. मन की बात की सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि वो रेडियो को पुराने जमाने की तरह ही ऑथिरिटी बना देता है कि जो और जैसा मैं कहता हूं-वैसा सुनो.

लेकिन अरविंद केजरीवाल के इस कार्यक्रम की खास बात है कि अभी जो एफएम रेडियो के ऑडिएंस का चरित्र बदला है और वो प्रोज्यूमर है, सिर्फ कन्ज्यूमर नहीं..यानी वो कंटेंट सिर्फ कन्ज्यूम नहीं कर रहा, प्रोड्यूस भी कर रहा है, उसकी प्रकृति की समझ है..अरविंद केजरीवाल सिर्फ अपनी बोलकर निकल नहीं जाएंगे बल्कि ऑडिएंस के सवालों,आरोपों को भी झेलने होंगे और जवाब देने होंगे. रेडियो का जो मिजाज बदला है, उसमे ऐसे ही फॉर्मेट ज्यादा स्वीकार किए जाएंगे जो कि माध्यम और ऑडिएंस को आगे ले जाए, पीछे की डिक्टेटरशिप एप्रोच की तरफ नहीं.

गौर करें तो बीजेपी ने अपने राजनीतिक विज्ञापन और प्रोमोशन के सारे वही औजार विकसित किए जो कि आम आदमी पार्टी ने इजाद किए थे जिनमे ऑटो की पीठ पर विज्ञापन से लेकर टोपी पर पार्टी का नाम लिखकर पहना शामिल है..बाकी के विज्ञापन के तरीके मल्टी नेशनल कंपनियों के उत्पाद और खासकर मोबाईल सेवा कंपनियों से हूबहू मार लिए..लेकिन रेडियो के इस कार्यक्रम को ठीक उलट आम आदमी पार्टी ने बीजेपी के नायक के कार्यक्रम मन की बात से मार लिया..हां ये जरूर है कि उस कार्यक्रम से कहीं ज्यादा डेमोक्रेटिक और एफएम रेडियो के मिजाज के अनुरुप ज्यादा.

ऐसे में जरूरी नहीं कि सबके सब अरविंद केजरीवाल के समर्थक ही उनसे बात करे, जो उनसे असहमत हैं, जिन्हें लगता है कि उन्होंने दिल्ली की जनता के साथ गलत किया है, वो भी तल्खी से अपनी बात रख सकते हैं..माध्यमों पर राजनीतिक पार्टियों का दबदबा जिस तेजी से बढ़ा है, उसे हम और आप रोक नहीं सकते( विज्ञापन की शक्ल में खासकर) लेकिन अगर कार्यक्रम की प्रकृति अपेक्षाकृत डेमोक्रेटिक हो तो ये माध्यम के लिए भी अच्छा है.बहरहाल आनेवाले समय में एफएम रेडियो राजनीति का नया अखाड़ा बनने जा रहा है..कैन्डिडेट की डिबेट की बात तो अभी तक पूरी नहीं हो पाई लेकिन रेडियो के जरिए ये संभव होता दिखाई दे रहा है..आपलोग इस माध्यम पर अतिरिक्त नजर रखिए और साझा करते रहिए.

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