विकास मिश्र,पत्रकार,आजतक
चुनाव आसपास है। जो हाल राजनीतिक पार्टियों और नेताओं का है, कुछ वैसा ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और उसके पत्रकारों के साथ हो रहा है। पार्टियां अच्छे और जिताऊ कंडीडेट तलाश कर रही हैं, चैनल अच्छे और टिकाऊ पत्रकार खोज रहे हैं। अपनी पार्टी में उपेक्षित नेता दूसरी पार्टियों के अच्छे ऑफर पर जा रहे हैं। भले ही वो पार्टी पहले वाले से कमजोर हो। चैनलों में भी कई उपेक्षित लोग अच्छा ऑफर पाकर दूसरे चैनल में जा रहे हैं, भले ही वो चैनल पहले वाले से कमतर हो। राजनीतिक पार्टियां अपने नेताओं को तो टीवी चैनल अपने पत्रकारों को रोकने की कोशिशों में लगे हैं। फिर भी पार्टी छोड़ना, दूसरी पार्टी में शामिल होना। चैनल छोड़ना, दूसरे चैनल में शामिल होना खूब चल रहा है। गठबंधन वहां भी बन रहे हैं, यहां पर भी। वहां रैलियों की योजना बन रही है, यहां रैलियों को कवर करने की योजना। राजनीतिक पार्टियां बड़े खुलासे कर रही हैं, बड़े इल्जाम लगा रही हैं। चैनल भी बड़े खुलासे कर रहे हैं, बड़ी बहस कर रहे हैं, बड़े स्टिंग ऑपरेशन कर रहे हैं। सभी पार्टियां लोकसभा चुनावों में अपनी पिछली सीटों का नंबर बढ़ाने के लिए सौ जतन कर रही हैं। टीवी चैनल भी अपनी टीआरपी का नंबर बढ़ाने के लिए हजार जतन कर रहे हैं। राजनीतिक पार्टियां नमो टी स्टाल, राहुल गांधी दूध, झाड़ू यात्रा, महारैली नए नए प्रोग्राम लांच कर रही हैं। टीवी चैनल भी चुनावों को देखते हुए नए नए प्रोग्राम लांच कर रहे हैं। चैनलों पर चुनावों का तो ऐसा प्रभाव है कि एक चैनल हेड तो राज पाट छोड़कर बाकायदा आम आदमी पार्टी में ही शामिल हो गए। चुनाव तो लोकतंत्र का महायज्ञ है। तो कहीं ‘लोभतंत्र’ को भी साध रहा है।
(स्रोत-एफबी)