दूरदर्शन सरकारी चैनल है. नेताओं की गिरफ्त में है. सो नेताओं की चमचई में लगा रहता है. लेकिन उससे ठीक से चमचई भी नहीं होती. इसका सबसे बड़ा उदाहरण कल दूरदर्शन ने पेश किया जब प्रधानमंत्री की खिल्ली उड़वा दी.
घटिया एडिटिंग का नमूना पेश करते हुए दूरदर्शन के कर्मचारियों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा रिकॉर्डिंग के अंत में पूछे गए शब्द ‘ठीक है’ को भी जारी कर दिया और जिसकी वजह से पीएम का इतने गंभीर विषय पर राष्ट्र के नाम दिया गया संबोधन मजाक बन कर रह गया.
दरअसल एडिटिंग की कमी से ज्यादा यह लापरवाही का मामला लगता है और साथ में दूरदर्शन के कार्यशैली की पोल भी खोलता है.
वैसे प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम प्रसारित संदेश की ये त्रुटि उसी लापरवाही और दूरदर्शन की घटिया कार्यशैली की बानगी मात्र है. दूरदर्शन के ज्यादातर कार्यक्रमों को आप देखेंगे तो आपको उबकाई होने लगेगी.
माना कि दूरदर्शन सरकारी नियंत्रण में है सो खुलकर खबर नहीं दिखा सकता. लेकिन राजनीति से इतर भी उसकी ख़बरों का कलेवर नीरसता के कपड़े में लिपटा हुआ होता है. न उसमें धार है और न रफ़्तार और ना ही कोई सरोकार.
प्राइवेट चैनलों में दूरदर्शन को लेकर यह मजाक ही उड़ाया जाता है कि अरे भाई जल्दी करो. क्यों दूरदर्शन हो गए हो गए हो? यह कटाक्ष दूरदर्शन के चरित्र और उसके कार्यशैली को उजागर करता हैं.
कहते हैं कि हड़बड़ी में गडबड़ी हो जाती है. लेकिन यहाँ तो आराम में भी काम खराब होता है और वह भी प्रधानमंत्री के मामले में . सोंचिये बाकी कितनी चूक ये करते होंगे?
निजी समाचार चैनलों की चाहे जितनी भी आलोचना कर ली जाये, लेकिन एडिटिंग में ऐसी गलती वे कभी नहीं कर सकते. लेकिन कल पीएम का मजाक उड़ते देख मन में विचार आया कि काश प्रधानमंत्री दूरदर्शन की बजाये आज तक पर भरोसा करते तो सब ठीक होता.
उम्मीद करते हैं कि प्रधानमंत्री के भाषण के लिए निजी चैनलों से टेंडर मंगाए जायेंगे और किसी एक चैनल को प्रधानमंत्री के सारे राष्ट्र के नाम भाषण को एडिटिंग के साथ जारी करने का टेंडर मिलेगा. क्योंकि दूरदर्शन तो अब इस काम के लायक भी नहीं रहा. क्यों प्रधानमंत्री जी ‘ठीक है’ ना …..
उम्मीद करते हैं कि दूरदर्शन के दर्शकों का दर्द अब प्रधानमंत्री जी भी महसूस कर रहे होंगे.
(एक दर्शक की नज़र से)