पाकिस्तानी हमारे देशभक्त सैनिकों के सर काट कर ले गए। हम हाथ मल रहे हैं। शूरवीरों की माताएं मातम मना रही हैं। विधवाएं विलाप कर रही हैं। परिवार के बाकी लोग बिलख रहे हैं। और परिजन प्यासे – भूखे बैठे हैं। कह रहे हैं कि बेटों की जिंदगी तो वापस नहीं ला सकते, मगर पाकिस्तानियों से उनके सर तो कम से कम वापस ले आइए। सारा देश सन्न है। मगर राजनीति मजे ले रही है। सिर्फ बातें हो रही है। मथुरा के सांसद शहीद के गांव जाकर परिजनों का अनशन जबरदस्ती तुड़वा रहे हैं। सरकार मौत के मुआवजे के रूप में पंद्रह – पंद्रह लाख के चेक भेज रही है। बिहार के एक मंत्री कह रहे हैं कि नरेंद्र मोदी देश के पीएम होते तो करारा जवाब देते। और जवाब में कांग्रेस के मनीष तिवारी पाकिस्तान पर तो कुछ नहीं बोलते, पर बहुत बेशर्मी से मोदी तो हिटलर कह देते हैं। यह अलग बात है कि मोदी हिटलर है या नहीं। मगर, इतना जरूर है कि सैनिकों के सर कलम किए जाने की घटना के मामले में प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह फिर एक बार नपुंसक सरकार के मुखिया साबित हो रहे हैं। और, मनीष तिवारी शायद यह भूल रहे हैं वे उसी नपुंसक सरकार में दोयम दर्जे के मंत्री है।
हमारे सैनिकों के सर कलम करने की क्रूर और दर्दनाक दास्तान को केंद्र में रखकर देखा जाए तो कश्मीर और सर का वैसे भी रिश्ता अटूट है। नक्शे में दिखने में तो है ही, पर आम तौर पर भी कश्मीर को दुनिया भर में हमारे देश का सर ही कहा जाता है। पाकिस्तानी और हमारे भारत में रहनेवाले बहुत सारे पाकिस्तान परस्त लोग भी अकसर देश के नक्शे में से कश्मीर को अलग करके भारत के सर को कलम करते रहे हैं। पर, अब उसी कश्मीर की रक्षा करनेवाले सैनिकों के सर कलम किए जाने से हम सारे हिले हुए हैं। भारतीय सेना अपने दमखम और पाकिस्तान का दम निकालने की वजह से हमेशा खबरों में रही है। इस सेना के हमारे सैनिकों की बहादुरी की बातें और शौर्य की गाथाएं भी बहुत हैं। पर, फिलहाल वह अपने अब तक के इतिहास की सबसे दर्दनाक दास्तान की वजह से खबरों में है। सैनिकों की सांसों में सन्नाटा है। और सेना स्तब्ध। देश की रक्षा के मामले में जब इतनी बड़ी सरकार पाकिस्तान के खिलाफ कुछ नहीं कर सकती, तो आप और हम जैसे करोड़ों लोग तो कर ही क्या सकते हैं।
अपने दो साथियों की मौत से ज्यादा उनके साथ बरती गई दरिंदगी से बाकी जवान बहुत गुस्से में हैं। हमारे दोनों शूरवीरों हेमराज और सुधाकर की बेरहमी से हत्या की खबर जैसे ही मिली, 13 राजपूताना राइफल्स की पूरी टुकड़ी ने खाना-पीना छोड़ दिया। प्रतिशोध सुलग उठा है। हमारे जवान अपने साथियों के साथ बरती गई दरिंदगी का बदला चाहते हैं। मगर सरकारी नीतियों की वजह से कामांडिंग ऑफिसर जवानों को मनाने में जुटे हुए हैं। बरसों से हम देखते आ रहे हैं कि पाकिस्तान हम पर हमले करता रहा है। हर बार पहल पाकिस्तान की तरफ से ही होती रही है। एक अटलजी के जमाने में कारगिल के रूप में दिए गए करारे जवाब को छोड़ दें, तो हमारी सरकारें हैं कि हर बार ‘मेरे हमदम, मेरे दोस्त की’ कहानी बहुत जोर-शोर से चलाती रहती है। आप और हम दीन – हीन, बेबस और लाचार, बिल्कुल हमारे देश पर बोझ बने मनमोहन सिंह नामक एक आदमी की तरह सिर्फ देखने और सहने के अलावा कुछ नहीं कह सकते।
बहुत सारे सालों का इतिहास खंगालें और उसका विश्लेषण करें, तो एक बात जो सीधे तौर पर साफ होती है, वह यही है कि कश्मीर के लिए हम भारतीयों के दिलों में बहुत बड़ी जगह है। और यह भी सच है कि यह जगह जतनी बड़ी है, उतनी बड़ी तो वहां के रहनेवालों के दिलों में भी नहीं है। सारा जग जानता है कि सच और सिर्फ सच यही है कि कश्मीर के बहुत सारे लोगों के मन में भी भारत के मुकाबले पाकिस्तान के लिए ज्यादा जगह है। सारी दुनिया कश्मीर की खूबसूरती पर मरती है। हम भी उसे दिलो जान से चाहते हैं। लेकिन दिलों के दर्द की दास्तानों का दर्दनाक इतिहास भी यही रहा है कि दिल जिसे चाहता है, वह अकसर किसी और का ही होता है। सो, कश्मीर के बारे में भी अपने को तो कुछ कुछ ऐसा ही लगता है। हम उसे कितना भी अपना मानें, उसके पराए होने के बहुत सारे सामान हमारे सामने साक्षात जिंदा हैं। सबूत के तौर पर इतिहास और संविधान की याद कौन दिलाए? हमारे कश्मीर के नेता तो जीतकर जब दिल्ली आते हैं, या वहां की विधानसभा में जाते हैं, तो शपथ भी भारत के संविधान की नहीं, अल्लाह के नाम की लेते हैं। और अल्लाह के ये बंदे इतने काफिर हैं कि कश्मीर की अस्मिता को अक्षुण्ण रखने की अपनी उस कसम को ही भूल जाते हैं, जिसकी वजह से वे हमारे हिंदुस्तान में राज पाट भोग रहे हैं। वजह इसके पीछे यही है कि एक तो हमारे देश का नेतृत्व समझौता परस्त रहा है और दूसरा हम हर बार नीचा देखने के बावजूद तमाशा पाकिस्तान की तरफ से हमारे आंगन में होता ही देखना चाहते है। इसीलिए हमेशा यह लगता है कि हमारे नेता हमारे सैनिकों के सर कटा सकते हैं, लेकिन न तो खुद का सर उठा सकते हैं और न ही सैनिकों के सर मंगा सकते हैं।
(लेखक राजनीतिक विलेषक तथा वरिष्ठ पत्रकार हैं)