रमेश यादव
आपको याद होगा ।
शादी-विवाह में नाच-मंडली अौर बिरहा दंगल के दौरान दर्शक/ श्रोता
नाचने अौर गाने वालों को नोट देकर उपस्थित लोगों के बीच अपना प्रचार किया करते थे।
ये दोनों जीतनी बड़ी नोट पाते,उतने ही तहे दिल से उनकी शुक्रिया अदा करते ।
ठीक यहीं काम आज अख़बार,रेडियो अौर टीवी चैनल्स विज्ञापन लेकर कर रहे हैं। मौजूदा विज्ञापन उसी का एक आधुनिक रूप है।
जैसे नाचने अौर गाने वाले सिर्फ़ नोट के आधार पर संबंधित व्यक्ति की प्रशंसा में नतमस्तक हो जाते थे । वैसे ही मीडिया संस्थान जिस पार्टी से विज्ञापन हासिल कर रहे हैं,उसका बिना विश्लेषण किये अंधा-धुँध प्रचार-प्रसार कर उनका छवि निर्माण अौर महिमामंडन कर रहे हैं ।
सबसे ख़तरनाक होता है,आत्मा का सौदा करना ।
(लोकसभा चुनाव 2014 : राजनैतिक विश्लेषण अौर त्वरित टिप्पणी । ) 02/04/2014
आत्मबोध से साभार !
(स्रोत-एफबी)