” पेड न्यूज़”बनाम “पेड कवरेज”
‘पेड न्यूज़’को समाचार पत्र ज्यों का त्यों प्रकाशित कर देते हैं-नेता/दल द्वारा प्रेषित सामग्री को बगैर काट-छांट के।जगह/आकार/प्रमुखता नोटों के वजन के अनुसार!आरंभ में तो नहीं, बाद में पाठक खबर और ‘भुगतानी खबर’ के फर्क को समझने लगे।’पेड न्यूज़’के आरंभ के वर्ष1995 का एक दिलचस्प वाक़या-एक प्रमुख हिंदी दैनिक के एक ही पृष्ठ पर, एक ही निर्वाचन-क्षेत्र से लड़ रहे दो अलग-अलग दल के दोनों उम्मीद्द्वारों को समाचार पत्र हजारों वोट के अंतर से जीता रहा था!संपादकीय कक्ष शर्मसार, लेकिन विज्ञापन विभाग मस्त!
खेद कि इनदिनों”पेड कवरेज” को ले कर टीवी चैनलों के पत्रकार नहीं, दर्शक शर्मसार हो रहे हैं।दर्शक तब परेशान हो उठते हैं जब वे अपने पसंदीदा पत्रकारों/एंकरों को भाट की भूमिका में नेता/दल विशेष की चरण-वंदना करते देखते हैं।सचाई से दूर, झूठ को परोसते देखते हैं।कारण कि पत्रकार/एंकर पूर्व लिखित”स्क्रिप्ट”का वाचन करने को विवश कर दिये जाते हैं।ऐसा नहीं होना चाहिए।
बेहतर हो, चैनलों में “पेड कवरेज़” के प्रसारण की जिम्मेदारी संस्थान के नियमित पत्रकारों/एंकरों की जगह या तो नेता/दल के अथवा विज्ञापन विभाग के कथित पत्रकार/एंकर संभालें।दर्शक फर्क समझ जाएंगे और ईमानदार पत्रकार/एंकर दर्शकों की नज़रों में गिरने से बच जाएंगे।