हमारी यादाश्त कितनी तेजी से खत्म होती जा रही है. पुष्कर ने अपनी वॉल पर एस पी सिंह समारोह की पुरानी तस्वीर लगायी और आशुतोष का जिक्र किया तो हैरानी से एक ने टिप्पणी की- ये तो आम आदमी पार्टी में हैं ?
आशुतोष की आम आदमी पार्टी से जुडने की पहचान अपेक्षाकृत नई है. इसके पीछे बतौर मीडियाकर्मी लंबा अनुभव है. हमारी उंगलियों पर दर्जनों स्टोरी और घटनाएं गिनाने के लिए है.
लेकिन इस टिप्पणीकार के अलावा ऐसे सैकडों ऐसे लोग होंगे जिनके लिए आशुतोष मतलब आम आदमी पार्टी.. नमस्कार मैं आशुतोष और आप देख रहे हैं हमारा कार्यक्रम डंके की चोट पर या फिर कैमरामैन एक्स के साथ मैं आशुतोष, कश्मीर आजतक.
हम जिस दौर में जी रहे हैं, वहां जीते जी जिंदगी का बडा हिस्सा हमसे कट जाता है. ऐसे जैसे पेट्रोल पम्प में हर शख्स के लिए मीटर जीरो पर आकर शुरु होता है. अतीत की लीगेसी साथ नहीं होती. पहले पुरानी पहचान और काम का इतनी तेजी से भुला दिया जाना आसान नहीं हुआ करता था.
आजतक के चैनल हेड सुप्रिय प्रसाद का लीची से स्वागत करते मीडिया खबर के संपादक पुष्कर पुष्प
पत्रकारिता के महानायक एसपी सिंह अपने बुलेटिन में साहित्य, संस्कृति,गाँव, किसान और उनकी समस्याओं को भी जगह देते थे। उनके बारे में वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि वे प्रतिदिन अलग-अलग भाषाओँ के कई अखबार पढ़ते थे और दूर-दराज व ग्रामीण पृष्ठभूमि की खबर निकालकर उसपर स्टोरी करवाते थे.वरिष्ठ टीवी पत्रकार दीपक चौरसिया ने भी कई बार ये बात कही है. बहरहाल उनके कार्यक्रम में खेती-किसानी और बाग़-बगीचों को महत्व देते हुए, फूलों की बजाए लीची के गुच्छे से अतिथियों का स्वागत किया गया. इसका उद्देश्य मुजफ्फरपुर की शाही लीची को प्रमोट करना था. लीची बचाओ आंदोलन के तहत इस मुहिम की शुरुआत हुई.
मीडिया खबर डॉट कॉम के संपादक पुष्कर पुष्प सोशल मीडिया लिखते हैं – “मीडिया खबर कॉनक्लेव में वक्ता और अतिथियों का स्वागत लीची से किया गया।। हमने पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से उसे प्लास्टिक के गिफ्ट रैप में पैक भी नहीं कराया।।ये पहल सभी को बहुत पसंद आयी। लीची प्रदेश से होने की वजह से हमारा हृदय भी लीची-लीची हो गया।। ”
वहीँ मीडिया खबर मीडिया कॉन्क्लेव और एसपी सिंह स्मृति परिचर्चा के वक्ता और वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी लिखते हैं – “ज़्यादातर कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत बुके से ही किया जाता है। पुष्कर पुष्प ने इसमें सुखद बदलाव किया, अतिथियों का स्वागत लीची देकर किया। इससे पहले भी कई जगह कार्यक्रमों में स्वागत पौधे का गमला देकर किया गया। इस साल मिले ऐसे २ गमले मेरी बालकनी में सुशोभित हैं। मुझे लगता है कि कम से कम अकादमिक, शैक्षणिक, साहित्यिक कार्यक्रमों में पुस्तक, पौधे और जिस जगह कार्यक्रम हो, वहाँ की स्थानीय पहचान वाली वस्तु देकर अतिथियों का स्वागत करना सार्थक होता है। प्रभाव भी दीर्घजीवी होता है।”
पत्रकारिता के महानायक एसपी सिंह की 20 वीं पुण्यतिथि पर इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हर साल की तरह इस बार भी मीडिया खबर डॉट कॉम द्वारा मीडिया खबर मीडिया कॉन्क्लेव और एसपी सिंह स्मृति परिचर्चा का आयोजन किया गया. इसमें एसपी के साथ काम कर चुके कई वरिष्ठ पत्रकारों ने शिरकत की.
कॉन्क्लेव और परिचर्चा के दौरान मीडिया खबर की तरफ से संचार मंत्रालय से मांग की गयी कि एसपी सिंह पर डाक टिकट जारी किया जाए ताकि उनकी स्मृति को याद रखा जा सके.
मीडिया खबर के इस मांग का समर्थन वहां मौजूद तमाम पत्रकारों ने किया और समर्थन में हस्ताक्षर भी किया. इस संबंध में जल्द ही संचार राज्य मंत्री मनोज सिन्हा से मिलकर उन्हें ज्ञापन सौंपा जाएगा. उस सिलसिले में मीडिया खबर डॉट कॉम के संपादक द्वारा लिखा गया पत्र और हस्ताक्षर अभियान की छायाप्रति –
एसपी पर डाक टिकट जारी करने की मांगएसपी सिंह पर डाक टिकट जारी हो, उसके समर्थन में हस्ताक्षर अभियान
रविवार को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में पहुंचे पत्रकारों ने एस पी याने सुरेंद्र प्रताप सिंह को दिल की गहराइयों से याद किया |मीडिया ख़बर के पुष्कर पुष्पइसके संयोजक थे | नौ साल से पुष्कर एसपी की याद में अपने बूते यह कार्यक्रम करते आ रहे हैं | पुष्कर को सलाम इसलिए कि न उन्होंने एसपी को देखा, न उनके साथ काम किया और न उनकी कोई रिश्तेदारी है |हम जैसों के लिए शर्म का अवसर भी कि दस-बीस बरस एसपी के साथ काम करने,उनके बेहद क़रीब रहने के बाद भी हम यह न कर पाए | आपसी मारकाट में,दिल्ली के दाँवपेंच में,नई पीढ़ी को कोसने और एक दूसरे की नौकरी लेने में लगे हम लोग शायद मंच पर बैठकर मुख्य अतिथि ,विशेष अतिथि और वरिष्ठ पत्रकार कहलाने में अपनी शान समझते हैं | बहरहाल अपने को लानत देते हुए कार्यक्रम की बात |
एसपी पी सिंह स्मृति परिचर्चा,2017
इसमें बड़ी संख्या में एसपी के चाहने वाले चिंतक ,विचारक और पत्रकार आए | सबसे पहला नाम जुगनू शारदेय का है ,जिनको हम रविवार में लगातार पढ़ते थे | अपने शब्दों के जादू से बांधकर रखा था उन्होंने | पूरे समय कभी चुप्पी से कभी बेचैनी से अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराते रहे | इसके बाद सांसद प्रभात झा,अहमदाबाद से आए साथी धीमंत पुरोहित,क़मर वहीद नक़वी,राहुलदेव,सतीश के.सिंह,सुप्रिय प्रसाद,नीरेंद्रनागर ऑन लाइन के पंडित हर्षवर्धनत्रिपाठी और पुष्पेंद्रपरमार, इंडियन एक्सप्रेस डिज़िटल के सीईओ संदीपअमर,एचसीएल टेक्नॉलोजी के वाइस प्रेजिडेंट अपूर्व चमड़िया, आजतक के सईद अंसारी और सच बताऊँ तो इतने चाहने वाले कि नाम भी कहाँ तक लूँ |
भावुक कर देने वालीं एसपी की यादें छिड़ीं,उनकी निर्भीक,बेबाक और मूल्य आधारित पत्रकारिता का विवेचन हुआ और आज की मीडिया मंडी में सोशल मीडिया,बाज़ार,ऑनलाइन मीडिया के हाल और संभावनाओं पर भी शानदार चर्चा हो गई | कई साल बाद ऐसे किसी आयोजन में गया | एक तकलीफ और कलेजे में ठंडी तीखी फाँस लेकर लौटा | एक-यह कि आज एसपी को अगर नई नस्ल जानना चाहे तो इंटरनेट पर क्या है ? हम लोग खुद कटघरे में खड़े हैं और दो-ऐसे आयोजन दिल्ली में ही होकर क्यों दम तोड़ देते हैं ? दिल्ली में तो देश के पत्रकारों का एक फीसदी भी नहीं है | हम इस तरह के आयोजनों को देश भर में क्यों नहीं फैला सकते ? चित्र इसी अवसर के हैं |
एसपी सिंह स्मृति परिचर्चा में दीप प्रज्वलनएसपी सिंह स्मृति परिचर्चा, 2017
एक बेहतर समाज की कल्पना एक पेशेवर पत्रकार होकर भी की जा सकती है. शोषित,दबे-कुचले और हाशिए के समाज की बात उसी न्यूजरुम के भीतर से की जा सकती है जहां से मीडिया संस्थान की बैलेंस शीट दुरुस्त होती है.
जरुरी नहीं कि बेहतर समाज के नाम पर कोई पत्रकार मसीहा का, देशभक्त का, प्रवक्ता का अतिरिक्त चोला ओढकर किसी अखाडे में जम जाए. न्यूजरुम को यज्ञशाला में तब्दील करने का नकली उपक्रम रचे. पाठक/दर्शक को जागरुक नागरिक के नाम पर पाखंडी और मॉब में तब्दील कर दे.
एक पेशेवर पत्रकार की पक्षधरता बिल्कुल स्पष्ट होती है- अपना अस्तित्व बचाए रखने, जीने के लिए जरुरत भर के संसाधन और समाज की जरुरत के अनुसार पत्रकारिता. उसका काम सिर्फ रिपोर्ट नत्थी करना भर नहीं, रिपोर्ट के माध्यम से समाज को और ज्यादा मानवीय और संवेदनशील बनाना है.
इस अर्थ में टीवी ग्लैमर का नहीं, सामाजिक जिम्मेदारी और जवाबदेही का माध्यम है. इस टीवी और चैनलों के प्रभाव से यदि नागरिक और लोकतंत्र कमजोर होने लग जाए और मीडियाकर्मी ताकतवर महसूस करने लगें तो समझिए एस पी सिंह की पत्रकारिता की मौत हो गयी है.
एस पी सिंह की पत्रकारिता से गुजरते हुए हमने यहीं सीखा, समझा. उसी के आसपास करने की कोशिश करते हैं, करते रहेंगे. आज जरुरत इस बात की ज्यादा है कि हम उस पत्रकारिता को कितना बचा पाते है ?