आवाजाही : डिजिटल मीडिया में आजकल बड़ी उठापटक हो रही है. इसी कड़ी में ज़ी ग्रुप में भी एक बड़ी नियुक्ति हुई है. ख़बरों के मुताबिक़ टाइम्स ऑफ इंडिया वेबसाइट के एडिटर प्रसाद सान्याल ने टाइम्स ग्रुप का साथ छोड़ दिया है. उन्होंने अपनी नयी पारी ज़ी समूह के साथ बतौर ग्रुप डिजिटल एडिटर शुरू की है.
आईआईएमसी के एलुम्नाई प्रसाद सान्याल ने 2010 तक टीवी मीडिया में काम किया जिसमें एएनआई, नेटवर्क 18, एनडीटीवी और न्यूज एक्स शामिल हैं. वो एनडीटीवी की वेबसाइट के न्यूज़ एडिटर बने और वहां से टाइम्स ऑफ इंडिया की वेबसाइट के एडिटर के तौर पर टाइम्स ग्रुप आए थे.
बतौर ग्रुप डिजिटल एडिटर प्रसाद सान्याल ZEE समूह की तमाम न्यूज़ वेबसाइट्स का काम देखेंगे जिसमें हाल ही में एक्वॉयर किया गया इंडिया डॉट कॉम भी शामिल है. नयी पारी के लिए उन्हें शुभकामनाएं.
प्राचीनकाल से बिहार ज्ञान और शिक्षा का केंद्र रहा है। यहां एक से बढ़कर एक विभूतियों का जन्म हुआ जिन्होंने अपनी विद्वता से पूरी दुनिया को चमत्कृत कर दिया। लेकिन पिछले कुछ सालों से बिहार की शिक्षा व्यवस्था मजाक बन कर रह गयी है। अब हर साल मीडिया की सुर्खियों में टॉपर विवाद छाया रहता है। देश के तमाम समाचार चैनल पूरे देश के टॉपर को छोड़कर बिहार के टॉपर का मान-मर्दन करने में लगे रहते हैं।
बहरहाल शिक्षा जगत में हो रहे गोरखधंधे का पर्दाफाश होना ही चाहिए। लेकिन कम-से-कम पेश करने का तरीका ऐसा नहीं होना चाहिए कि उसकी चपेट में प्रतिभावान छात्र भी आ जाएं। नकरात्मक खबरों की तर्ज पर सकरात्मक खबरों को भी तवज्जो देनी चाहिए।
लेकिन ऐसा होता नहीं है। इसीलिए “वॉयस ऑफ बिहार” आगामी 23 जुलाई को बिहार की प्रतिभाओं को सम्मानित करने के लिए बिहार प्रतिभा सम्मान का आयोजन कर रहा है जिसमें संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा में सफल हुए अभ्यर्थियों सहित अन्य क्षेत्र में बिहार को गौरवान्वित करने वाले तमाम साथियो को सम्मानित किया जायेगा। इसका उद्देश्य बिहार की शिक्षा व्यवस्था की राष्ट्रीय पटल पर सकरात्मक छवि बनाना है।
ऐसा में सवाल उठता है कि क्या टॉपर विवाद खड़ा करने वाली राष्ट्रीय मीडिया बिहार की प्रतिभाओं के सम्मान में होने जा रहे ऐसे कार्यक्रमों की सुध लेगी और प्रतिभाओं को भी उसी तर्ज पर अखबार, प्रिंट और ऑनलाइन में रेखांकित करेगी जैसा नकरात्मक ख़बरों के मामले में रायता फैलाते हैं?
कार्यक्रम के संयोजक और वॉयस ऑफ बिहार के संस्थापक ‘ब्रजेश कुमार’ ने कार्यक्रम की जानकारी देते हुए कहा कि, ‘हाल के दिनों में बिहार की शिक्षा व्यवस्था की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छवि धूल – धूसरित हुई है. लेकिन टॉपर घोटाले जैसे एकाध घटनाओं की वजह से पूरे बिहार के प्रतिभावान छात्रों को शक की नज़र से देखना सही नहीं है. क्योंकि इससे इतर भी बिहार में एक-से-बढ़कर एक प्रतिभा मौजूद हैं जो देश-दुनिया में अपना नाम रौशन कर रहे हैं.उन्हीं के सम्मान में दिल्ली में बिहार प्रतिभा सम्मान का आयोजन किया जा रहा है ताकि इन प्रतिभाओं को भी दुनिया जान सके.’
आयोजकों के मुताबिक़ कार्यक्रम में बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक ‘अभयानंद’ मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित होंगे तो वहीँ विशिष्ट अतिथि के रूप में महाराष्ट्र के पूर्व गृह सचिव अमिताभ राजन भी मौजूद होंगे.
‘मन की बात-रेडियो पर सामाजिक क्रांति’ पुस्तक पर IGNCA में हुई लंबी परिचर्चा
प्रेस विज्ञप्ति
रेडियो पर अपने मन की बात के जरिये प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने पूरे देश को एकसूत्र में बांध दिया है। दिल्ली के इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र-IGNCA में ‘मन की बात- रेडियो पर सामाजिक क्रांति पुस्तक’ पर परिचर्चा में सभी वक्ता इस बात पर सहमत दिखे। वरिष्ठ पत्रकार और IGNCA के चेयरमैन रामबहादुर राय ने कहा कि देश में स्वामी विवेकानंद की धारा से पुनर्जागरण का एक दौर शुरू हुआ था जिससे हमें आजादी मिली थी और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पुनर्जागरण का एक नया दौर है जो देश को एक नये सांचे में गढ़ने वाला साबित होगा। राम बहादुर राय ने कहा कि पीएम मोदी के मन की बात पर लिखी गई पुस्तक को पढ़ने के बाद उन्हें IGNCA में इस पर परिचर्चा की आवश्यकता महसूस हुई।
इस परिचर्चा को तीन हिस्सों में रखा गया था जिनमें तीन विषय संस्कार और जागरूकता, देश और दिशा और समाज और संदेश पर साहित्य, कला, शिक्षा, चिकित्सा और पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़ीं कई जानी-मानी हस्तियों ने अपनी-अपनी बातें रखीं। मशहूर लोकगायिका और पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात का असर कुछ ऐसा है जिसे घटते हुए नहीं देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि मन की बात पारिवारिक और सामाजिक संस्कार को नये सिरे से स्थापित कर रही है जो देश की भावी पीढ़ियों को भी संजोने का काम करेगी। आज तक के एडिटर (स्पेशल प्रोजेक्ट्स) और सीनियर न्यूज एंकर सईद अंसारी ने कहा कि पीएम मोदी ने देश में संवादहीनता की खाई को भरा है। सईद ने कहा कि सबसे बड़ी बात ये है कि समाज के आखिरी छोर पर बैठे व्यक्ति के जीवन में भी मन की बात से सकारात्मक परिवर्तन आ रहा है। पहले सत्र में एम्स के पूर्व निदेशक तीरथ दास डोगरा ने मन की बात से जुड़ी पीएम की उस सलाह का जिक्र किया जो उन्होंने नशे की बुरी लत को लेकर दी थी। डोगरा ने कहा कि पीएम सामाजिक बुराई से जुड़े इस मुद्दे पर इस तरह से बात रखते हैं जिस तरह से एक मनोवैज्ञानिक भी नहीं रख सकता। वहीं न्यूज 18 चैनल के डिप्टी मैनेजिंग एडिटर सुमित अवस्थी ने कहा कि पीएम के मन की बात की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इसने हमारी सांस्कारिक चेष्टा को जगाने का काम किया है। प्रख्यात शास्त्रीय नृत्यांगना और पद्मविभूषण सोनल मान सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारवासियों के अंदर स्वाभिमान को भरकर उनकी पीठ को सीधा करने का काम किया है। उन्होंने कहा कि मन की बात करते हुए पीएम मोदी एक भाई, मित्र, पिता और अभिभावक हर तरह की भूमिका में नजर आते हैं।
परिचर्चा के दूसरे सत्र में एमएफटी के डायरेक्टर संदीप मारवाह मन की बात पर बात करते हुए काफी जोश में नजर आए और कहा कि पीएम मोदी से बिना मिले भी लोग उनसे चिट्ठी-पत्री और मेल के जरिये अपनी बातें शेयर कर सकते हैं और पीएम उस पर जिस तरह से रिस्पॉन्स लेते हैं उसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं। उन्होंने कहा कि जिस तरह से स्वच्छता अभियान को पीएम मोदी ने पहली प्राथमिकता दी वो देश के लिए उनके संपूर्ण समर्पण के भाव को जाहिर करता है। वहीं सहारा आलमी चैनल के हेड लईक रिजवी ने कहा कि मन की बात ने देश की बेहतरी के लिए पीएम मोदी की उत्कट इच्छाशक्ति को जाहिर किया है। एम्स से संबद्ध डॉ. प्रसून चटर्जी ने कहा कि मन की बात में स्वास्थ्य के मुद्दों को लेकर पीएम मोदी की सलाह मेडिकल साइंस के मापदंडों पर भी हर तरह से खरी उतरती है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर और पद्मश्री दिनेश सिंह ने मन की बात में स्टार्टअप को लेकर पीएम मोदी के आह्वान का खास जिक्र किया। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है जब शिक्षण संस्थान औपचारिक डिग्री की पढ़ाई से आगे निकले और उस दिशा में बढ़े जहां सिर्फ नौकरी के लिए नहीं, बल्कि व्यवसाय के लिए भी पढ़ाई पर जोर हो।
परिचर्चा के तीसरे और आखिरी सत्र में IGNOU के वाइस चांसलर प्रो. रविंद्र कुमार ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में भारतीयता की पुनर्प्रतिष्ठा स्थापित होनी शुरू हुई है। परिचर्चा में अपनी बात रखते हुए इडिया न्यूज के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात लीक से हटकर है और इसलिए लोगों का पर उसका गहरा प्रभाव भी देखा जा रहा है। एनबीटी के चेयरमैन बलदेव भाई शर्मा ने कहा कि भारत के मन को पकड़ने का पहली बार किसी ने प्रयास किया है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने।
परिचर्चा का संचालन वरिष्ठ पत्रकार और कई पुस्तकों के लेखक हरीश चंद्र बर्णवाल ने किया जिन्होंने प्रस्तावना रखते हुए कहा कि मन की बात रेडियो पर प्रसारित होने वाला एक ऐसा कार्यक्रम है जिसके बारे में देश के 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग जानते हैं। उन्होंने पीएम के मन की बात को अपनी किताब मोदी सूत्र की उस लाइन के साथ जोड़ा कि ये अंधेरे में चलते इंसान के लिए एक मशाल है।
इस पुस्तक की प्रस्तावना जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे द्वारा लिखी गई है। लोगों में मन की बात को लेकर कुछ स्वाभाविक जिज्ञासाएं रही हैं…जैसे कैसे प्रधानमंत्री को इसका आइडिया आया,कैसे इसका नाम तय हुआ, यह कैसे तय हुआ कि यह कार्यक्रम कितने अंतराल पर होना चाहिए,इसकी रूपरेखा क्या हो? लोगों की ऐसी ही कई जिज्ञासाओं को ध्यान में रखते हुए ‘मन की बात – रेडियो पर सामाजिक क्रांति’ पुस्तक लिखी गई है। ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन द्वारा लिखी गई इस पुस्तक को LexisNexis ने प्रकाशित किया है।
‘मन की बात-रेडियो पर सामाजिक क्रांति’ पुस्तक पर IGNCA में हुई लंबी परिचर्चा
मीडिया खबर मीडिया कॉन्क्लेव और एसपी सिंह स्मृति परिचर्चा –
25 जून को मीडिया खबर मीडिया कॉन्क्लेव और एसपी सिंह स्मृति समारोह इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में संपन्न हुआ. इस मौके पर देशभर के दिग्गज पत्रकारों ने पत्रकारिता के महानायक एसपी सिंह को याद करते हुए एसपी सिंह परिचर्चा के विषय ‘टेलीविजन पत्रकारिता की राह पर ऑनलाइन पत्रकारिता’ पर अपने विचार रखे. लेकिन कॉन्क्लेव में तब हंगामा मच गया जब आजतक के मशहूर एंकर सईद अंसारी अपनी बात रखने आए. उन्होंने आते ही परिचर्चा के विषय पर सवाल उठाया. उनका पहला सवाल यही था कि,’टेलीविजन की राह पर ऑनलाइन पत्रकारिता’ का क्या मतलब है? इसे सकरात्मक तौर पर लिया जाए या नकरात्मक तौर पर? इसपर मीडिया खबर के संपादक ‘पुष्कर पुष्प’ ने कहा कि यहाँ नकरात्मक अर्थ में ही इस शब्द का इस्तेमाल किया गया है और हम ऑनलाइन मीडिया की विवेचनात्मक आलोचना करना चाहते हैं कि वह अपने रास्ते से भटककर टेलीविजन की राह पर चल पड़ा है. इसपर सईद अंसारी ने कहा कि टेलीविजन कौन से गलत राह पर चला गया है जो उसे आप गलत राह पर मान रहे हैं? क्या सही खबर को दिखाना गलत राह पर जाना है? फिर उन्होंने टेलीविजन न्यूज़ पर दिखायी गयी कुछ सकरात्मक ख़बरों का उदाहरण दिया. बस फिर क्या था, सभागार का माहौल गरमा गया और चारो तरफ से सवालों की बौछार हो गयी. पत्रकार अतुल चौरसिया ने विरोध दर्ज करते हुए कहा कि सईद अंसारी बहुत ही सेलेक्टिव स्टोरी पर बात कर रहे हैं जबकि टेलीविजन न्यूज़ में और भी बहुत कुछ हो रहा है.वरिष्ठ पत्रकार सतीश के सिंह और अनुरंजन झा ने भी इसपर ऐतराज जताया. लेकिन सईद अंसारी भी अपनी बात डंटे रहे और लगातार टेलीविजन का पक्ष लेते रहे है. कुल मिलाकर टेलीविजन न्यूज़ के नजरिए से उनका भाषण ज़ोरदार रहा. लेकिन इस दौरान हंगामा भी खूब बरपा. देखिए उस सत्र की कुछ तस्वीरें –
एसपी की याद में नौ साल से वैसे पत्रकार परिचर्चा का आयोजन करवाते हैं, जिनने एसपी को कभी आमने सामने ,देखा ही नहीं।मेरे दोस्त पुष्कर पुष्प का यह प्रयास नौ साल से जारी है। ये बात अलग है कि शुरू में एसपी के चेले इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने से भागते थे। उन से यह उम्मीद तो की ही नहीं जा सकती कि जिस एसपी के कारण मात्र से कुछ लोगो की पहचान पत्रकार के रूप में हुई, वे बस अहंकार ही पालते रह गए। उस लायक थे ही नहीं । खुद एसपी की बुनियाद के परजीवी से ज्यादा रहे नहीं ,अपनी साख बचा नहीं पाए ,तो क्या खाक एसपी को याद करते। पिछले साल हम लोगों ने ऐसा आयोजन ( वौइस् ऑफ मुजफ्फरपुर की टीम पुष्कर उस टीम के महत्वपूर्ण हिस्सा है) मुजफ्फरपुर में भी किया था।
खैर, हिंदी पत्रकारिता की जब भी तुलना अंग्रेजी पत्रकारिता से की जाती है तो शिकायत होती है कि हिंदी के पत्रकार ज्यादा जुनूनी होते है, मेहनती होते है, काबिल होते है लेकिन उनकी तनख्वा उनसे बेहद कम होती है,संसद में हिंदी अखवार की प्रति कभी नहीं लहराई जाती है। इस बात की कसक अक्सर हिंदी के पत्रकारों की होती है। आपको भरोसे के साथ कहूँ तो सरकार द्वारा उपलब्ध दस्तावेज़ों की बात यदि आप छोड़ दे तो मैने अक्सर पाया है, देखा है, खुद गवाह रहा हूँ अंग्रेजी अखबार के पत्रकार अक्सर किसी हिंदी अख़बार के एक्सक्लूसिव खबर को अगले दिन छापते है ,एक्सक्लूसिव बनाकर ।चुकी लगभग कोई अंग्रेजी का संपादक हिंदी अख़बार पढ़ता ही नहीं इस लिए उन्हें पता ही नहीं चलता की हिन्दी के अखबार में वो खबर दस दिन पहले छप चूकी है जो उनके रिपोर्टर ने आज एक्सक्लूसिव छापा है। यकीं मानिये जब हम अखबार में थे तो यह साप्ताहिक घटना होती थी। हम कई बार इस बात को लेकर परेशां होते थे ,फिर इसे परिपार्टी पर मज़ा लेकर अपना दर्द हल्का करते थे। मेरे कई पत्रकार साथी इसके गवाह है। जो भले ही इस पर चुप्पी लादे मगर याद कर रहे होंगे।
मतलब सत्ता के नज़दीक रह कर सत्ता के फायदे के लिए, विपक्ष के खिलाफ या फिर इसके उलट प्लांटेड स्टोरी ही अंग्रेज़ी पत्रकारिता की पहचान रही है। क्योंकि सत्ता के शिखर पर वही अखबार पढ़ी जाती है। हाँ टेलीविजन के आने के बाद यह परिपार्टी थोड़ी बदल गई है। बिना संघर्ष के एजेंडा पत्रकार ही सिर्फ अंग्रेजी में रहे शायद यही कारण है कि अंग्रेजी के किसी पत्रकार या संपादक की याद में वो सम्मान नहीं होता जो हर साल प्रभाष जोशी जी की याद में होता है, राजेंद्र माथुर की याद में होता है, सुरेंद्र प्रताप सिंह (sp) की याद में आयोजित किया जाता है। यह सम्मान आज तक किसी अंग्रेजी पत्रकार को नहीं मिल पाया। समझा जा सकता है सरकार , सत्ता या सत्ता के खिलाफ एजेंडा की पत्रकारिता और जुनूनी पत्रकारिता में क्या अंतर है। तहलका से लेकर एनडीटीवी की पत्रकारिता ने एक वक्त धमक तो खूब जमाया लेकिन कोई नाम लेवा कभी नही रहा। कुछ जेल से लौट कर जमानत पर है कुछ जमानत लेने वाले है।
यह सच है कि अंग्रेजी पत्रकारिता के दवाव में हिंदी की साख भी कमज़ोर हुई। लेकिन हिंदी के ज्यादातर संपादकों के अंदर जो नैतिक बल रहा वो एजेंडा पत्रकारों के अंदर नहीं रहा।शायद यही कारण है कि हिंदी के गौरवपूर्ण संपादक याद किये जाते है। अंगेजी वाले, पैसा,रसूख न जाने क्या क्या तो बना लिया साख नहीं बना पाए । अंग्रेजी के किसी संपादक को यूं याद नहीं किया जाता। राहुल देव जी शायद यही कहना चाहते थे।